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पिता के नक्शे कदम पर चिराग पासवान, बिहार चुनाव में 15 साल पुराने फॉर्मूले पर काम

महागठबंधन से जीतनराम मांझी अलग होकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए हैं, जिसके चलते एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान चिंतित हैं. ऐसे में चिराग पासवान अपने पिता राम विलास पासवान के नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं. एलजेपी बिहार में 15 साल पुराने सियासी फॉर्मूले के तहत चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति अपना सकती है.

चिराग पासवान, अमित शाह, राम विलास पासवान चिराग पासवान, अमित शाह, राम विलास पासवान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 08 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 8:30 AM IST
  • एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर सियासी संघर्ष
  • जेडीयू के खिलाफ LJP प्रत्याशी उतार सकती है
  • 2005 में LJP ने आरजेडी के खिलाफ ऐसा किया

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर गठबंधन के हर रोज नए समीकरण बन रहे हैं. महागठबंधन से जीतनराम मांझी अलग होकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए हैं, जिसके चलते एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान चिंतित हैं. ऐसे में चिराग पासवान अपने पिता राम विलास पासवान के नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं. एलजेपी बिहार में 15 साल पुराने सियासी फॉर्मूले के तहत चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति अपना सकती है. 

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चिराग पासवान की अध्यक्षता में सोमवार को एलजेपी की बिहार प्रदेश संसदीय बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें पार्टी नेताओं ने कहा कि एलजेपी को जेडीयू के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने चाहिए. बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष राजू तिवारी ने बताया कि 143 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की सूची बनाकर जल्द केंद्रीय संसदीय बोर्ड को देनी है. गठबंधन पर और सीटों के बंटवारे पर फैसला चिराग पासवान को लेना है. 

क्या है फॉर्मला

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर जिस तरह से एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने तेवर सख्त कर लिए हैं. इससे साफ जाहिर है चिराग आगमी चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में नहीं लड़ना चाहेंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि चिराग अपने पिता के 15 साल पुराने राजनीतिक फॉर्मूले के तौर पर अपने कदम बढ़ा सकते हैं. 2005 का फॉर्मूला का ऐसा है, जिसके तहत एलजेपी केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा भी बनी रहे और बिहार में उससे अलग होकर चुनावी किस्मत भी आजमा ले. 

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दरअसल, 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए में आरजेडी और एलजीपी दोनों शामिल थे. फरवरी, 2005 में राम विलास पासवान ने कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा होते हुए भी बिहार चुनाव में आरजेडी के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ ऐसा नहीं किया. राम विलास पासवान ने कांग्रेस प्रत्याशियों को समर्थन किया था. आरजेडी के राजनीतिक समीकरण को एलजेपी ने बिगाड़ दिया था, जिसके चलते सत्ता में नहीं आ सकी. 

फरवरी 2005 के चुनाव में आरजेडी ने 210 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 सीटें हासिल की थी और एलजेपी 178 सीटों पर लड़कर 29 सीटें जीती थी. वहीं, जेडीयू को 55 और बीजेपी को 37 सीटें मिली थी. बिहार में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका था और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया था. इसके कुछ महीने बाद दोबारा चुनाव हुए तो नीतीश कुमार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहे थे. हालांकि, अब देखना होगा कि चिराग क्या सियासी फैसला लेते हैं. 

नीतीश पर गरम, बीजेपी पर नरम

चिराग पासवान 15 साल के बाद इसी फॉर्मूले को आजमाने की कवायद में हैं. चिराग जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार को लेकर तो हमलावर हैं, लेकिन बीजेपी को लेकर नरम रुख अख्तियार किए हुए हैं. एलजेपी के संसदीय दल की बैठक में भी इस बात को लेकर चर्चा हुई है कि जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारना चाहिए. एक तरह से एलजेपी बिहार में जेडीयू के खिलाफ चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतरने का दांव खेल सकती है, लेकिन बीजेपी की सीटों पर प्रत्याशी उतारने के बजाय समर्थन करने की रणनीति को अपना सकती है. इस तरह से एलजेपी केंद्र में एनडीए का हिस्सा बने रहते हुए केंद्रीय मंत्री की सीट भी बचा लेगी और जेडीयू से अपना हिसाब किताब भी बराबर कर लेगी. 

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एलजेपी के सदस्यों की राय है कि पार्टी को नीतीश के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहिए. सदस्यों का कहना है कि जेडीयू कह रही है कि उनका गठबंधन बीजेपी से है ना कि एलजेपी से. ऐसे में पार्टी को जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखानी चाहिए. हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिवसीय दौरे पर मंगलवार को पटना पहुंच रहे हैं. माना जा रहा है कि जेपी नड्डा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुलाकात करेंगे और एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर कोई फॉर्मूला भी तय करेंगे, जिससे एलजेपी की भी प्रतिष्ठा बनी रहे और जेडीयू की साख भी स्थापित रहे.

 


 

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