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बीजेपी के नेताओं को एलजेपी से टिकट, नीतीश के दो मंत्रियों की राह विकट

बिहार की सियासी रणभूमि में उतरी लोक जनशक्ति पार्टी फैक्टर नीतीश कुमार की जेडीयू के लिए टेंशन का सबब बन गया है. नीतीश कुमार के दो मंत्रियों के खिलाफ बीजेपी से जुड़े रहे नेताओं के एलजेपी से उतरने से उनकी सियासी राह मुश्किलों भरी नजर आने लगी है, क्योंकि पिछले चुनाव में ही ये दोनों मंत्री मामूली वोटों से जीत हासिल कर पाए थे.

जेडीयू नेता जय कुमार सिंह और नीतीश कुमार जेडीयू नेता जय कुमार सिंह और नीतीश कुमार
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 14 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 1:50 PM IST
  • नीतीश के दो मंत्रियों के खिलाफ BJP के बागी मैदान में
  • दिनारा सीट पर बीजेपी के बागी नेता राजेंद्र सिंह उतरे हैं
  • सिकटा सीट पर बीजेपी के पूर्व विधायक मैदान में उतरे

बिहार चुनाव में रोहतास-आरा-बक्सर जिलों से सटी  दिनारा विधानसभा सीट सूबे की हॉट सीट बनी हुई है. यहां से नीतीश कुमार के मंत्री जय सिंह उम्मीदवार हैं. बीजेपी के बागी राजेंद्र सिंह ने एलजेपी से उतरकर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. ठीक ऐसे ही सिकटा सीट पर भी नीतीश के मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज आलम मैदान में हैं, जहां उनके खिलाफ बीजेपी के बागी दिलीप वर्मा ने एलजेपी से ताल ठोक रखी है. बीजेपी ने भले ही उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, लेकिन वे नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगते नजर आ रहे हैं. 

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दिनारा बनी हॉट सीट

एनडीए सीट शेयरिंग में दिनारा विधानसभा सीट जेडीयू के खाते में गई है, जिसके चलते नीतीश कुमार ने अपने मौजूदा विधायक जय सिंह पर भरोसा जताया है जबकि आरजेडी से विजय मंडल यहां से प्रत्याशी हैं. बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष और संघ प्रचारक रहे राजेंद्र सिंह ने एलजेपी से टिकट लेकर यहां के चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. 

2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू-आरजेडी साथ थे लेकिन जय सिंह को यहां से जीतने में पसीने छूट गए थे. जेडीयू के जय कुमार सिंह को 64 हजार 699 मत मिले जबकि बीजेपी के राजेंद्र सिंह के हिस्से में 62 हजार 8 वोट आए. साफ है कि जय कुमार सिंह महज 2691 मतों से जीते थे. अब राजेंद्र सिंह एलजेपी से मैदान में हैं जिसके चलते जेडीयू के जय सिंह का राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाता नजर आ  रहा है. 

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नामांकन के बाद ही राजेंद्र सिंह ने कह दिया था कि बीजेपी और आरएसएस उनके नस-नस में हैं. उनके समर्थक नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाकर राजनीतिक माहौल अपने पक्ष में बनाने में जुटे हैं. अगर वो बीजेपी के कैडर वोट को थोड़ा बहुत भी साधने में कामयाब रहे तो जेडीयू के लिए हैट्रिक लगाना आसान नहीं होगा. 

सिकटा सीट पर फंसा पेच
बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज आलम पश्चिमी चंपारण जिले की सिकटा विधानसभा सीट से विधायक हैं. जेडीयू ने एक बार फिर से खुर्शीद को सिकटा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है, जहां से बीजेपी के पूर्व विधायक दिलीप वर्मा एलजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए हैं. महागठबंधन की ओर से सीपीआई माले के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता किस्मत आजमा रहे हैं. 

2015 में हुए विधानसभा चुनाव में सिकटा सीट से जेडीयू को जीतने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े थे. खुर्शीद उर्फ फिरोज आलम को 69 हजार 870 वोट मिले थे जबकि बीजेपी के दिलीप वर्मा को 67 हजार 35 वोट हासिल हुए थे. इस तरह से खुर्शीद को महज 2835 वोटों से जीत मिली थी. 2015 का कांटे का मुकाबला अब चूंकि त्रिकोणीय हो गया है इसलिए खुर्शीद आलम की परेशानियां बढ़ी हुई हैं.
 
एलजेपी प्रत्याशी दिलीप वर्मा के समर्थक भी नरेंद्र मोदी जिंदाबाद का नारा लगा रहे हैं. दिलीप वर्मा बीजेपी विधायक रह चुके हैं. कैडर पर उनकी पकड़ है. वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो जेडीयू के लिए यह सीट जीतना मुश्किल हो जाएगा. 

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खुर्शीद आलम ने aajtak.in से कहा कि सिकटा क्षेत्र की जनता के साथ-साथ बिहार की जनता यह अच्छे से जानती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी मजबूती से खड़े हैं. जनता ने भी तय कर लिया है कि उसे अपना वोट मोदी और नीतीश के किस उम्मीदवार को देना है. बिहार में 15 साल से नीतीश कुमार ने जो काम किए हैं, वो जगजाहिर हैं. उन्हीं कामों को लेकर हम वोट मांग रहे हैं. सिकटा की जनता भी जानती है कि जो पार्टी का नहीं हो सका है वो जनता का क्या होगा?

 

 

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