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बिहार में क्या इस बार टूट जाएगा लालू यादव का M-Y समीकरण का तिलिस्म? 

आरजेडी भले ही 15 साल से सत्ता से बाहर हो, लेकिन मुस्लिम-यादव ने उनका साथ नहीं छोड़ा था बल्कि मजबूती के साथ खड़ा रहा है. हालांकि, इस बार लालू के एमवाई समीकरण के तिलिस्म को तोड़ने के लिए विपक्ष ने कई तरह की घेराबंदी कर रखी है, जिनमें नीतीश कुमार से लेकर पप्पू यादव और असदुद्दीन ओवैसी तक की नजर है.

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 12 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 6:27 PM IST
  • बिहार में 16 फीसदी यादव और 16 फीसदी मुस्लिम
  • 3 दशक पहले लालू ने बनाया था एमवाई समीकरण
  • लालू के M-Y समीकरण पर विपक्षी दल की नजर

बिहार की सियासत में लालू यादव ने 90 के दशक में यादव-मुस्लिम (M-Y) का ऐसा राजनीतिक समीकरण बनाया, जिसके दम पर उनकी पार्टी ने 15 साल तक राज किया. आरजेडी भले ही 15 साल से सत्ता से बाहर हो, लेकिन मुस्लिम-यादव ने उनका साथ नहीं छोड़ा बल्कि मजबूती के साथ खड़ा रहा है. हालांकि, इस बार लालू के एमवाई समीकरण के तिलिस्म को तोड़ने के लिए विपक्ष ने कई तरह की घेराबंदी कर रखी है, जिनमें नीतीश कुमार से लेकर पप्पू यादव और असदुद्दीन ओवैसी तक की नजर है. ऐसे में देखना है कि आरजेडी का तीन दशक पुराना समीकरण में सेंधमारी विपक्ष कर पाएगा या नहीं? 

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बिहार की राजनीति में यादव और मुस्लिम काफी निर्णायक भूमिका में हैं. मुस्लिम-यादव सूबे में करीब 16-16 फीसदी हैं, जो 1990 के बाद से अभी तक लालू यादव के साथ मजबूती के साथ खड़ा हुआ है. 1989 के भागलपुर दंगों के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस के खिलाफ मतदान किया, जिसके कारण लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में जनता दल की सरकार बनी. इसके बाद लालू यादव की पार्टी ने 15 सालों तक बिहार पर शासन किया, जिसमें मुस्लिम-यादव फॉर्मूले की अहम भूमिका रही थी.

लालू के वोट बैंक पर एनडीए की नजर
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के यादव-मुस्लिम समीकरण पर नीतीश कुमार की नजर है. यही वजह है कि जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने 115 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया है, जिसमें उन्होंने 11 सीटों पर मुस्लिम और 19 सीटों पर यादव समुदाय से उम्मीदवार बनाया है. इस तरह से कुल 30 सीटों पर उन्होंने यादव-मुस्लिम को टिकट दिया है. इतना ही नहीं नीतीश कुमार की सहयोगी बीजेपी ने भले ही मुस्लिम को टिकट अभी तक न दिया हो, लेकिन एक दर्जन यादव कैंडिडेट जरूर उतारे हैं. 

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एनडीए ने लालू के मूल वोटबैंक में सेंधमारी की खास रणनीति बनाई है. बीजेपी भूपेंद्र यादव जैसे अपने दिग्गज रणनीतिकार के जरिए 2019 के लोकसभा चुनाव में यादव समुदाय का अच्छा खासा वोट हासिल करने में सफल रही थी. इस बार भी उसी रणनीति पर एनडीए के दोनों प्रमुख दल बीजेपी और जेडीयू चलते नजर आ रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि इस बार के सियासी जंग में यादव और मुस्लिम के वोट में एनडीए को कितनी सफलता मिलती है. 

ओवैसी की नजर भी लालू के मुस्लिम वोट पर 
असदुद्दीन ओवैसी का राजनीतिक आधार मुस्लिम मतदाता हैं. 2015 में बिहार के मुसलमानों ने ओवैसी की पार्टी AIMIM को पूरी तरह से नकार दिया था, लेकिन इस बार उन्होंने बसपा, उपेंद्र कुशवाहा, देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक सहित 6 पार्टियों के साथ गठबंधन कर रखा है. ओवैसी सीमांचल के किशनगंज, कटिहार और अररिया इलाके की मुस्लिम बहुत सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी उतारकर अपना समीकरण साधना चाहते हैं.

वहीं, ओवैसी के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. देवेंद्र प्रसाद यादव के समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक का फोकस यादव प्रत्याशियों पर है. इसके अलावा बसपा की नजर रविदास वोट पर है तो कुशवाहा की नजर अति पिछड़ा वोट पर है. यही वोट लालू यादव की पार्टी का है, जिसे ओवैसी-देवेंद्र मिलकर साधने की कवायद में है. 

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पप्पू यादव-SDPI की नजर यादव-मुस्लिम वोट पर
जन अधिकार पार्टी के संरक्षक और पूर्व सांसद पप्पू यादव ने भी चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और एमके फैजी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन बनाया है. इस गठबंधन की नजर भी लालू यादव के कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम पर है.

पप्पू यादव का राजनीतिक आधार यादव मतदाताओं पर है और कोसी इलाके में है. यह आरजेडी का भी मजबूत गढ़ है, जहां से यादव प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं. इसके अलावा पप्पू ने SDPI जैसी पार्टी के साथ हाथ मिलाया है, जिनका आधार मुस्लिम पर है. ऐसे में बिहार की कई सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम और यादव बनाम यादव कैंडिडेट होंगे, ऐसे में वोटों के बंटवारा होने की संभावना है. 

बिहार में यादव-मुस्लिम समीकरण 

बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम और 16 फीसदी यादव मतदाता हैं. यादव और मुस्लिम मिलकर सूबे के करीब 100 सीटों पर राजनीतिक असर डालते हैं. यही वजह है कि लालू यादव ही नहीं बल्कि नीतीश की जेडीयू और बीजेपी भी यादव समुदाय पर दांव खेलने से पीछे नहीं रहती है. 2015 में 61 यादव विधायक जीतने में कामयाब रहे थे.

आरजेडी ने 48 सीटों पर यादवों को टिकट दिए थे, जिनमें से से 42 जीतने में सफल रहे थे. नीतीश कुमार की जेडीयू ने 12 टिकट यादवों को दिए थे, जिनमें से 11 ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस ने 4 पर यादव प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से दो जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. ऐसे ही बीजेपी ने भी 22 टिकट यादव को दिए थे, जिनमें से 6 जीते थे. 

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दरअसल, बिहार में करीब 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. वहीं,  बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. 

मौजूदा समय में बिहार में 24 मुस्लिम विधायक हैं. इनमें से 11 विधायक आरजेडी, 6 कांग्रेस, 5 जेडीयू, 1 बीजेपी और 1 ने सीपीआई (एमएल) से जीत दर्ज की थी. बीजेपी ने दो मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा था, जिनमें से एक ने जीत दर्ज की थी. साल 2000 के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीते थे. ऐसे में देखना है कि लालू के तीस साल पुराना एमवाई समीकरण टूट पाता है या नहीं.

 

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