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गोपालगंज जिले की बरौली विधानसभा को पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर का गढ़ कहा जाता है. चाचा गफूर के नाम से जाने वाले बिहार के एकमात्र मुस्लिम CM अब्दुल गफूर इस विधानसभा क्षेत्र से चार बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. इस विधानसभा की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि यहां से चार बार के विधायक अब्दुल गफूर बिहार के 15वें मुख्यमंत्री बने थे. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा कर लिया था, लेकिन 2015 के चुनाव में आरजेडी के खाते में ये सीट आई. इस बार फिर मुकाबला बीजेपी और आरजेडी के बीच माना जा रहा है.
गोपालगंज को दी नई पहचान
कांग्रेस में सक्रिय रहे अब्दुल गफूर 1952 में बिहार विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधायक बने. इसके बाद 1957 के चुनाव में उन्हें एक बार फिर जीत मिली, लेकिन 1962 में कांग्रेस ने यहां से गोरख राय को टिकट दिया. गोरख राय ने स्वतंत्र पार्टी के हजारी साह को हराकर बड़ी जीत दर्ज की. इसके बाद 1977 और 1980 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से एक बार फिर अब्दुल गफूर ने जीत का परचम लहराया. बरौली विधानसभा से चार बार विधायक रहे और गोपालगंज से चुनकर दो बार संसद भी पहुंचे. इसका गोपालगंज को बहुत बड़ा फायदा मिला. जब वे बिहार के मुख्यमंत्री बने तो गोपालगंज को जिला का दर्जा दिलाया. बताया जाता है कि उस समय इस पूरे जिले में सड़कों का जाल बिछाया गया. उन्हीं के समय में सरफरा-मांझी पथ जैसे कई हाईवे का निर्माण हुआ.
बीजेपी ने लगाई सेंध
चाचा गफूर और कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली बरौली विधानसभा पर वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सेंध लगाने में कामयाब हुई. बीजेपी के रामप्रवेश राय ने इस सीट से जीत दर्ज की और उसके बाद लगातार चार चुनाव में जीतते हुए 2010 तक कब्जा बरकरा रखा. पर कहते हैं कि राजनीति है, कब क्या हो जाए, जनता का रुख किधर घूम जाए, किसी को नहीं पता. वर्ष 2015 के चुनाव में कुछ ऐसा ही हुआ और बीजेपी को ये सीट गंवानी पड़ी. यहां से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रत्याशी नेमतुल्लाह ने बीजेपी विधायक रामप्रवेश को हरा दिया.
इस बार लड़ाई नहीं आसान
बरौली विधानसभा की बात की जाए, तो इस बार चुनावी लड़ाई यहां आसान नहीं दिख रही है, क्योंकि गंडक नदी में आई बाढ़ से विभिषिका से बरौली और मांझा के कई गांव तबाह हो गए हैं. बरौली प्रखण्ड के कई गांव में इन दिनों बाढ़ का पानी हर तरफ फैला हुआ दिखा रहा है. यहां के ग्रामीण ईस्ट एंड वेस्ट कॉरिडोर, सरफरा मांझी पथ, गंडक मुख्य नहर, रतन सराय रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पॉलीथिन शीट के नीचे अपना जीवन बसर कर रहे हैं.
बाढ़ से प्रभावित कई ग्रामीण ऐसे भी मिले, जिन्हें सरकार द्वारा दी जाने वाली छह हजार रुपये की सहायता राशि भी नहीं मिली है. खुले में जीवन बसर करने को मजबूर इन ग्रामीणों में नेताओं के खिलाफ आक्रोश देखने को मिल रहा है. अब देखना ये होगा कि एनडीए और महागठबंधन यहां से किस प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारता है.
100 बरौली विधानसभा
वर्ष जीते हारे
1952 अब्दुल गफूर (कांग्रेस) अंशित सिन्हा
1957 अब्दुल गफूर (कांग्रेस) हजारी साह (निर्दलीय)
1962 गोरख राय (कांग्रेस) हजारी साह (स्वतंत्र पार्टी)
1967 भूलन राय (निर्दलीय) विजुल सिंह (भाकपा)
1969 विजुल सिंह (भाकपा) व्यास प्रसाद सिंह (लोकदल)
1972 ब्रजकिशोर नारायण सिंह (अर्स कांग्रेस) विजुल सिंह (भाकपा)
1977 अब्दुल गफूर (कांग्रेस) मोहम्मद रसूल (जनता पार्टी)
1980 अब्दुल गफूर (कांग्रेस) मोहम्मद रसूल (जनता पार्टी)
1985 अदनान खां (कांग्रेस) रामप्रवेश राय (भाजपा)
1990 धु्रवनाथ चैधरी (निर्दलीय) रामप्रवेश राय (भाजपा)
1995 मोहम्मद नेमतुल्लाह (जनता दल) रामप्रवेश राय (भाजपा)
2000 रामप्रवेश राय (भाजपा) मोहम्मद नेमतुल्लाह (राजद)
2005 फरवरी रामप्रवेश राय (भाजपा) मोहम्मद नेमतुल्लाह (राजद)
2005 अक्टूबर रामप्रवेश राय (भाजपा) मोहम्मद नेमतुल्लाह (राजद)
2010 रामप्रवेश राय (भाजपा) मोहम्मद नेमतुल्लाह (राजद)
2015 मोहम्मद नेमतुल्लाह (राजद) रामप्रवेश राय (भाजपा)