
आजादी के बाद बिहार में लगातार कांग्रेस की सरकार बन रही थी. लेकिन सूब में साल 1967 में पहली बार कांग्रेस की सरकार न बनकर एक मिलीजुली सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने महामाया प्रसाद सिन्हा. उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी दिलचस्प है, क्योंकि वह अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक होते हुए भी सीएम बन गए थे. हालांकि उनकी मिलीजुली सरकार एक साल के अंदर ही गिर गई.
लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद 1966 में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं और 1977 तक पद पर काबिज रहीं. लेकिन 1966 में इंदिरा गांधी ने रुपये का अवमूल्यन किया. उनके इस फैसले का जोरदार विरोध हुआ और देश में राजनीतिक माहौल उनके खिलाफ होने लगा. हालांकि 1967 के लोकसभा चुनाव के बाद इंदिरा गांधी दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनीं. लेकिन इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त चुनौती मिली और केरल, पंजाब, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की कमर टूट गई.
1967 के बिहार चुनाव में कांग्रेस को 128 सीटें
वर्ष 1967 में बिहार में चौथा विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस को बहुमत नहीं मिली. इससे पहले हुए तीनों चुनावों में कांग्रेस को बहुमत मिली थी. इस विधानसभा चुनाव में कुल 318 सीटों में से कांग्रेस को 128 सीटों पर जीत मिली. इसके अलावा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 68 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी. जनसंघ को 26 सीटें, सीपीआई को 24 सीटें और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 18 सीटें मिलीं. जबकि इस चुनाव में निर्दलीय को 33 और अन्य को 13 सीटों पर जीत मिली.
पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन
साल 1967 के चुनाव में 128 सीट जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी. इसके बाद पार्टी में विधायक दल के नेता का चुनाव हुआ. इस चुनाव में महेश प्रसाद को एक वोट अधिक मिला और उन्होंने विनोदानंद झा को शिकस्त दी. लेकिन कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल ने महेश प्रसाद को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया.
महामाया प्रसाद सिन्हा बने मुख्यमंत्री
कहा जाता है कि चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस अंदरूनी कलह की शिकार थी. कांग्रेस के ही दो बड़े नेताओं ने तत्कालीन राज्यपाल अनंत शयनम पर दबाव बनाया था कि अगर महेश बाबू को सरकार बनाने का न्यौता दिया तो कांग्रेस के 32 विधायक पार्टी छोड़ देंगे. इसलिए राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने के लिए नहीं बुलाया. फिर उस समय की विपक्षी पार्टियां एकजुट हो गईं.
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, सीपीआई, जन क्रांति दल और प्रजा समाजवादी आदि पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई. हालांकि कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी और उसके नेता कर्पूरी ठाकुर की मुख्यमंत्री के पद पर दावेदारी बनती थी, लेकिन अन्य पार्टियां तैयार नहीं हुईं. ऐसे में जन क्रांति पार्टी के महामाया प्रसाद सिन्हा के नाम पर सभी दल सहमत हो गए. पार्टी के अकेले विधायक होने के बाद भी महामाया प्रसाद मार्च 1967 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, जबकि कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री.
एक साल के अंदर गिर गई सरकार
गैर कांग्रेस पार्टियों की मिलीजुली सरकार 33 सूत्री न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर चल रही थी. महामाया की सरकार बनते ही राज्य को सूखा और बाढ़ का सामना करना पड़ा. इसमें सूबे की हालत खराब हो गई. हालांकि मिलीजुली सरकार के मंत्रियों ने इन संकट का कड़ी मेहनत और ईमानदारी से सामना किया और काबू भी पाया. इसके बाद इस सरकार की तारीफ भी हुई. लेकिन सरकार के कुछ सत्ता लोभी नेताओं की महत्वाकांक्षा के कारण जनवरी 1968 में यह सरकार गिर गई.