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सिवान: देश को पहला राष्ट्रपति देने वाला जिला कैसे बन गया सियासत में बाहुबल का अड्डा?

देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली सिवान आज सियासत में धनबल और बाहुबल के कारण चर्चा में रहता है. बिहार में चुनाव है तो फिर सियासी जोरआजमाइश का मौसम भी आ गया है.

सिवान की सियासत में बाहुबलियों का जोर सिवान की सियासत में बाहुबलियों का जोर
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 7:30 AM IST
  • सिवान की सियासत में बाहुबलियों का जोर
  • देश के पहले राष्ट्रपति की जन्मस्थली है सिवान
  • कई अपराधों में बाहुबलियों पर आरोप

पश्चिमी बिहार में यूपी बॉर्डर से सटा जिला है सिवान. इस जिले ने देश को पहला राष्ट्रपति दिया. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म सिवान जिले के जीरादेई में हुआ था. वे दुनियाभर में अपनी विद्वता और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका के लिए जाने जाते थे. उनके कारण सिवान जिले का नाम पूरे देश में हुआ लेकिन आज बिहार का सिवान जिला अपराध, राजनीति में अपराधियों के दबदबे, गैंगवॉर और बाहुबलियों के इलाकों और वर्चस्व की जंग के लिए पूरे देश में कुख्यात है.

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बिहार में चुनाव का माहौल है तो ऐसे में फिर से धनबल और बाहुबल का जोर है. तमाम दलों के नेता टिकट पाने की जोरआजमाइश में लगे हैं और बाहुबली अपने और अपने समर्थकों का वर्चस्व जमाने में. आज इस जिले में दो बाहुबलियों के बीच का सियासी टकराव चर्चा का केंद्रबिंदु बना रहता है. एक तरफ सिवान के 'छोटे सरकार' के नाम से मशहूर मो. शहाबुद्दीन का जलवा है तो दूसरी ओर अजय सिंह का रुतबा जिनकी बीवी कविता सिंह ने शहाबुद्दीन की पत्नी को लोकसभा चुनाव में मात दी थी और अब सिवान की सांसद हैं.

1980 के दशक में बदलने लगी आबोहवा
1980 के दशक तक सिवान की सियासत में आपराधिक तत्वों का बोलबाला नहीं था. 1980 के दशक में कई अपराधों में नाम आने के बाद शहाबुद्दीन ने सियासत में एंट्री की और बाहुबल के दम पर दो बार विधायक और 4 बार सांसद रहे. एक दौर था जब तेजाब कांड हो, चंद्रशेखर हत्याकांड हो या सिवान में कोई भी अपराध शहाबुद्दीन का नाम हमेशा सुर्खियों में रहता था. जिले के अस्पताल हो, स्कूल हों या बैंक या फिर कोई भी दफ्तर हर जगह 'छोटे सरकार' के नाम से मशहूर शहाबुद्दीन का कानून चलता था.

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जेल में शहाबुद्दीन लेकिन सियासी रुतबा कम नहीं
शहाबुद्दीन की गिनती आरजेडी प्रमुख लालू यादव के करीबियों में होती है. लेकिन वक्त बदला और शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा हो गई, चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. पत्नी हीना शहाब को पहले ओमप्रकाश यादव और बाद में कविता सिंह ने चुनावी मुकाबले में मात दी. हालांकि जेल से भी शहाबुद्दीन का सियासी रुतबा कम नहीं हुआ है. पत्नी हीना शहाब आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हैं और बेटा ओसामा शहाब छात्र राजनीति में.

हमेशा से ऐसी नहीं थी सिवान की सियासत
ऐसा नहीं था कि सिवान की सियासत में हमेशा से बाहुबल का जोर हावी था. इस सीट से अब्दुल गर्फूर, जर्नादन तिवारी और वृषिण पटेल जैसे नेता जीतकर संसद पहुंचे हैं लेकिन 1980 के दशक में शहाबुद्दीन की सियासत में एंट्री के साथ ही यहां की आबोहवा बदलने लगी. दो दशक तक तो कोई और नेता यहां उभर ही नहीं पाया. बीच में माओवाद की बढ़ती समस्या और उससे लड़ने के शहाबुद्दीन के नारे ने लोगों के बीच हालांकि लोकप्रियता भी दिलाई. लेकिन इस दौरान काफी खूनखराबा हुआ.

दूसरे बाहुबली के उभार से शहाबुद्दीन का प्रभाव हुआ कम
शहाबुद्दीन के साम्राज्य को चुनौती मिली एक और बाहुबली अजय सिंह से. अजय सिंह की छवि इलाके में डॉन की है और हत्या-अपहरण समेत करीब तीस संगीन मामलों में आरोप हैं. अपनी मां और तब की विधायक जगमातो देवी की मौत के बाद जुलाई 2011 में अजय ने JDU से टिकट मांगा था लेकिन आपराधिक छवि को ध्यान में रख कर जेडीयू ने टिकट नहीं दिया था. इसके बाद अजय सिंह ने आननफानन में शादी की और पत्नी को टिकट दिलाकर विधायक का चुनाव जीतवाने में सफल रहे.

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अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह 2011 और 2015 में दरौंदा सीट से विधायक चुनी गईं जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को हराकर सांसद बनीं.

बिहार में इस बार फिर चुनाव है और सिवान जिले पर बर्चस्व के लिए दोनों ओर से जोर आजमाइश की पूरी आशंका है. सभी दलों की अपनी रणनीति है और सबका अपना गुणागणित. देखना होगा कि सिवान की 8 विधानसभा सीटों पर वोटर किसके पक्ष में अपना फैसला देता है?

 

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