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जीरादेई विधानसभा: राजेंद्र बाबू की धरती पर कितना मजबूत कुशवाहा का किला?

लंबे समय से रमेश कुशवाहा भाकपा माले से जुड़े रहे हैं. यही वजह है कि कुशवाहा को माले कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिलता है.

दीपक कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 10:28 AM IST
  • पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि है जीरादेई
  • इस सीट से 2015 विधानसभा में जेडीयू को मिली है जीत
  • एक बार फिर सीट जेडीयू के खाते में जाने की उम्मीद

अगर कोई सवाल पूछे कि सिवान किसके नाम से जाना जाता है तो यकीनन आपका जवाब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद होगा. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद न सिर्फ देश के प्रथम राष्ट्रपति थे बल्कि सिवान के जीरादेई में उनकी जन्मभूमि भी है. जीरादेई इस खास अतीत के अलावा सियासी उठापटक के लिए भी जाना जाता है.

ये वही इलाका है, जहां से सिवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन पहली बार विधायक बने थे और इसके बाद सियासी साये में आतंक के कारनामों को अंजाम दिया. जीरादेई का भूगोल तब बदल गया जब मैरवा विधानसभा का हिस्सा इससे जुड़ा. वर्तमान में इस विधानसभा से जेडीयू के रमेश सिंह कुशवाहा विधायक हैं. दिलचस्प बात ये है कि इस बार के चुनावी संग्राम में एक बार फिर रमेश सिंह कुशवाहा का किला मजबूत होता दिख रहा है. 

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रमेश कुशवाहा मजबूत क्यों?

- स्थानीय पत्रकार सुधीर तिवारी के मुताबिक लंबे समय से रमेश कुशवाहा भाकपा माले से जुड़े रहे हैं. यही वजह है कि कुशवाहा को माले कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिलता है. जीरादेई विधानसभा में पड़ने वाले नौतन और मैरवा प्रखंड में माले की अच्छी खासी पकड़ भी है. इस क्षेत्र के बीच रमेश कुशवाहा काफी सक्रिय रहते हैं. एक तथ्य ये भी है कि बिहार चुनाव में राजद और माले के बीच गठबंधन होने की स्थिति को देखकर स्थानीय लोग नाराज हैं. आपको बता दें कि सिवान जिले में राजद और माले की अदावत काफी पुरानी है. इस अदावत की जड़ भी जीरादेई है.

- वैसे तो जीरादेई सीट पर अलग—अलग राजनीतिक पार्टियों से उम्मीदवारी का दावा करने वालों की एक लंबी लिस्ट है. लेकिन कोई भी ऐसा दावेदार नहीं दिख रहा जो रमेश कुशवाहा के किले को भेदने में सक्षम हो. 

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- रमेश कुशवाहा की गंभीर और खामोश तरीके से काम करने की शैली भी लोगों को प्रभावित करती रही है. सिवान संसदीय क्षेत्र में रमेश कुशवाहा एकमात्र एनडीए नेता हैं जो जिले के गठबंधन नेताओं के विवाद पर बयानबाजी नहीं करते हैं. आपको बता दें कि सिवान संसदीय क्षेत्र में बीते कुछ महीनों से एनडीए नेताओं के बीच जुबानी जंग चल रही है. 

माले से जुड़े रहे हैं रमेश कुशवाहा

- स्थानीय पत्रकार सुधीर तिवारी बताते हैं कि जीरादेई विधानसभा में रमेश कुशवाहा की छवि हेल्पलाइन नंबर की तरह है. कहने का मतलब ये है कि वो हर वक्त लोगों के बीच मौजूद रहने का प्रयास करते हैं. 

2015 का हाल

2015 विधानसभा चुनाव में राजद और जेडीयू गठबंधन मिलकर चुनाव लड़े थे. ऐसे में जीरादेई में बीजेपी की पुरानी नेत्री और पूर्व विधायक आशा पाठक को जेडीयू के रमेश कुशवाहा ने 6 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया था. गौरतलब है कि अब भाजपा और जेडीयू का गठबंधन हो चुका है. 

जेडीयू के खाते में जाने की उम्मीद
ऐसा कहा जा रहा है कि जीरादेई विधानसभा सीट जेडीयू अपने खाते में रखने पर जोर देगी. अगर यह सीट जेडीयू के खाते में रहती है तो जेडीयू एक बार फिर रमेश कुशवाहा पर दांव लगाएगी. हालांकि, जेडीयू के ही एक अन्य नेता चंद्रकेतू सिंह भी इस सीट पर दावा ठोक रहे हैं. इसके अलावा जेडीयू से विवेक शुक्ला का दावा है कि पार्टी उन्हें टिकट देगी. 

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BJP में भी कम नहीं उम्मीदवार
अगर बात की जाए BJP कि तो जैसे-जैसे चुनाव आ रहा है, पार्टी की ओर से जीरादेई के लिए उम्मीदवारों की एक लंबी लिस्ट बनती जा रही है.  भाजपा के किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष बिट्टू सिंह ने खुद को उम्मीदवार घोषित किया है. बिट्टू सिंह जीरादेई विधानसभा में प्रचार भी कर रहे हैं. इसके अलावा पूर्व जिला पार्षद विनोद तिवारी भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. विनोद तिवारी आपराधिक परिवार से आते हैं, इसलिए जोखिम लेने की गुंजाइश कम है.  वहीं, BJP के समर्थकों का मानना है कि टिकट आशा पाठक को मिलना चाहिए. समर्थकों का तर्क है कि पाठक परिवार जीरादेई विधानसभा के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा है. वहीं, आशा पाठक विधायक भी रह चुकी हैं. 

राजद का हाल
अगर राजद की बात करें तो पार्टी की ओर से अजय सिंह चौहान टिकट की रेस में हैं. वहीं, माले की ओर से टिकट के लिए अमरजीत सिंह कुशवाहा का नाम सबसे आगे चल रहा है. बहरहाल, देखना अहम है कि जीरादेई सीट राजद अपने खाते में रखती है कि माले के लिए छोड़ देती है. अगर ये सीट माले के खाते में जाती है तो जेडीयू के रमेश सिंह कुशवाहा की राह आसान हो सकती है.

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