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...तो सिविल सर्विस में होते जेपी नड्डा, इमरजेंसी ने बदल दी करियर की धारा

पढ़ाई में अव्वल होने के बाद भी उन्होंने राजनीति क्यों चुना, इससे जुड़े सवाल पर बात करते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि स्कूल के डिबेट में हिस्सा में लिया करता था. परिवार में देश के मुद्दों पर चर्चा होती थी. बिहार की हवा में ही राजनीति है.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 9:32 PM IST
  • BJP अध्यक्ष नड्डा ने अपने स्कूली दिनों की बात की
  • पढ़ाई में अव्वल होने के बाद भी इस वजह से राजनीति में आए नड्डा
  • जेपी नड्डा ने कहा- इमरजेंसी ने बदल दिए थे मेरे विचार

बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान होने में अब चंद दिन बचे हैं. पहले चरण के तहत 28 अक्टूबर को बिहार की 71 सीटों पर वोटिंग होगी. मतदान से पहले सभी पार्टियों ने अपने प्रचार में तेजी ला दी है. नेताओं के बीच जुबानी जंग भी काफी तेज हो चुकी है. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आजतक को एक बड़ा इंटरव्यू दिया.

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पढ़ाई में अव्वल होने के बाद भी उन्होंने राजनीति क्यों चुना, इससे जुड़े सवाल पर बात करते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि स्कूल के डिबेट में हिस्सा में लिया करता था. परिवार में देश के मुद्दों पर चर्चा होती थी. बिहार की हवा में ही राजनीति है. यहां की हर चीज में राजनीति है. जेपी नड्डा ने कहा कि मेरे बैच से 15 IAS अधिकारी निकले. आज दिल्ली में जितने भी सचिव बैठे हैं वो या तो मेरे बैच के हैं या सीनियर या जूनियर रहे हैं. मुझे सब IAS बनाना चाहते थे. जैसे ही आपातकाल लगा, मेरे विचार बदल गए. मैं UPSC की तैयारी कर रहा था, लेकिन आपातकाल के बाद मेरा इरादा बदल गया. 

इंटरव्यू के दौरान जेपी नड्डा ने अपने स्कूल के दिनों से लेकर छात्र राजनीति की भी बात की. नड्डा ने कहा, "मेरी पढ़ाई और खेल में रुचि थी. राजनीति के लिए कोई विचार नहीं रखता था. लेकन बिहार में 1972-73 में राजनीतिक उथपुथल हुई. मेरे पिताजी प्रोफेसर थे और यूनिवर्सिटी उसका केंद्र था. मैं तब यूनिवर्सिटी में ही था. साथियों में राजनीतिक चेतना थी और मैं भी उसमें आ गया. 74 में मैं 10वीं का छात्र था और मैं भी उसमें शामिल हुआ. मुझे याद है 18 मार्च 1974 का आंदोलन ने आगे चलकर एक विराट रूप ले लिया. 5 लाख लोगों ने सिग्नेचर कैंपेन चलाया था. मैं तब से ही उसमें शामिल था."

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स्कूल के हाउस कैप्टन भी रह चुके हैं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष 

अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए जेपी नड्डा ने कहा, "स्कूल के दिनों में मैं हाउस कैप्टन था और लॉन्ग रेस और स्प्रिंट दोनों का चैंपियन था. ऐसा देखने को बहुत कम मिलता है कि दोनों रेस में कोई एक ही शख्स चैंपियन हो. मैं स्विमिंग भी करता था. मैं जूनियर कैटिगरी में बिहार में चौथे नंबर पर रहा था. मेरे क्लास में लोग कहते थे कि नड्डा या तो क्लास में मिलेगा या स्विमिंग पूल में मिलेगा. मुझे प्रिंसिपल ने इजाजत दी थी कि मैं जब चाहूं यहां आकर स्विमिंग कर सकता हूं."

यूं राजनीति में बढ़ी नड्डा की दिलचस्पी

राजनीतिक चेतना कैसे जगी? इस सवाल के जवाब में नड्डा ने कहा कि जेपी (जयप्रकाश नारायण) ने मुझे सबसे पहले प्रेरित किया. 1974 में मैं 10वीं की परीक्षा दे रहा था. बीच के गैप में मैं अनशन पर बैठा रहता था. तब मैं 14 साल का था. उस समय सत्याग्रह चल रहा था. मैंने अपने पिताजी से पूछा कि क्या मैं जा सकता हूं. उन्होंने कहा कि जाओ. मेरी माताजी मुझे गांधी मैदान में आने वाले हर नेता की रैली में उंगली पकड़कर ले जाती थी. मैंने देवराज अर्स, निजलिंग गप्पा, कामराज जी, जगजीवन राम जी, अटल जी को देखा है. अटल जी तो गांधी मैदान के पर्याय हुआ करते थे. इनमें से कई लोगों के भाषण का ट्रांसलेशन होता था. शुरुआत के नाम कांग्रेस के बड़े नेता थे.

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बिहार से जुड़े एक सवाल पर नड्डा ने कहा, "बचपन कभी भुलाया नहीं जा सकता. मैंने बिहार में ही होश संभाला था. यहां की हवा में प्यार, आदर, संस्कार है जो मैं कभी भूला नहीं. हिमाचल जाने के बाद भी मैं पटना की बात करते हुए भी भावुक हो जाता हूं. मैं यहां से काफी कुछ सीखा हूं. जब भी मैं बचपन को याद करता हूं तो यहां की बातें और लोग याद आते हैं."

जेपी आंदोलन में भी शामिल हुए थे जेपी नड्डा

जेपी आंदोलन का एक किस्सा सुनाते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, "18 मार्च 1974 को हम लोग जेपी आंदोलन में शामिल थे. तब पानी की बौछार नहीं होती थी. आंसू गैस, लाठियां और गोलियां चलती थीं. मुझे याद है तब गोलियां चली थीं. मैं वहीं से निकला था. 5 जून को लंबा जुलूस गांधी मैदान से निकला था. नवंबर 1975 में जेपी पर लाठी चली थी. नानाजी देशमुख उनके बचाव में आए थे और उनकी कॉलर बोन टूट गई थी. मैं जयप्रकाश जी के घर पर गया था. नानाजी देशमुख ने 60 साल पूरे होने पर राजनीति का त्याग करने का आशीर्वाद मेरे सामने जेपी से लिया था. तब मुझे लगा था कि ये ऐसा क्यों कर रहे हैं. मैं नानाजी से आखिर समय तक जुड़ा रहा. और मुझे लगता है कि उन्होंने राजनीति के बाद सामाजिक जीवन में भी काफी काम किया."

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उस वक्त की बात बताते हुए नड्डा ने कहा कि डाक बंगला युवाओं का जमावड़ा था. चाय पीना, पान खाना, बहसें करना, वहां पर होता था. वहां पर तारिक अनवर, लालू जी, सुशील मोदी आते थे. इसके आगे सीनियर्स जमा होते थे. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, फणीश्वरनाथ रेणु, गोविंदाचार्य जमा होते थे. ये सब जेपी जी के प्रेरणास्रोत थे. राजनीति बिहार की हवा में है.

इमरजेंसी ने बदल दिए थे नड्डा के विचार

राजनीति में आने का किस्सा विस्तार से बताते हुए जेपी नड्डा ने कहा, "मेरे पिता प्रोफेसर थे. कुछ समय हिमाचल यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर रहे फिर यहां पटना से रिटायर हुए. मेरे परिवार में काफी हेल्दी डिसक्शन होता था. मेरे पिताजी कहते थे कि डिनर कोई स्किप नहीं करेगा. वहां पर काफी अच्छी बातें सीखने को मिलीं. हर्षद मेहता का स्कैम मैंने वहीं पर समझा. इंदिरा गांधी का गरीबी हटाओ का नारा मैंने उसी टेबल पर समझा. जेपी का आंदोलन और समग्र क्रांति का जिक्र भी वहां होता था. मेरे पिता के साथ मेरी बातचीत हुई."

उन्होंने आगे कहा, "मेरे बैच से 15 आईएएस ऑफिसर निकले हैं. आज दिल्ली में जो भी इंपोर्टेंट ऑफिसर बैठे हैं वो या तो मेरे क्लास फेलो रहे हैं या सीनियर या जूनियर. आईपीएस का भी यही हाल है. 15 लोग आईपीएस बने थे. ये सब मुझे आईएएस बनाना चाहते थे. मेरी बहुत मदद करते थे. जब भी एग्जाम आते थे ये लोग मुझे नोट्स दिया करते थे. मैंने कभी यूपीएससी का एग्जाम नहीं दिया. मैंने इकोनॉमिक्स, हिस्ट्री और पॉलिटिकल साइंस लिया था. लोग कहते थे कि ये सबजेक्ट मार्क्स लूज करने के लिए होते हैं. मैं तब यूपीएससी की तैयारी कर रहा था. जब एमरजेंसी आई तो मेरे विचार बदले. तब मैं इंटरमीडिएट का फर्स्ट ईयर में था. मैंने पिताजी से बात की उन्होंने कहा कि तुमको पॉलिटिकल साइंस लेना चाहिए. इसके बाद उन्होंने कहा कि तुमको लॉ लेना चाहिए."
 

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