
कोरोना संकट के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है और नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए ने एक बार फिर जीत हासिल की है. यह चुनाव कई मायनों में बेहद दिलचस्प रहा, खासकर चुनाव परिणामों को लेकर. नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा पर हार-जीत का अंतर महज 12 वोटों का रहा. तो इसी तरह एक सीट ऐसी भी रही जहां पर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार जीत के अंतर में महज 4 वोट का ही इजाफा हो सका.
हिलसा विधानसभा सीट पर मतगणना शुरू होने के बाद से ही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रत्याशी और विधायक शक्ति सिंह यादव लगातार बढ़ता बनाए हुए थे. लेकिन अंतिम दौर तक पहुंचते-पहुंचते जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के प्रत्याशी कृष्णमुरारी शरण ने बढ़त बना ली और अंतिम चरण की मतगणना के बाद जब परिणाम घोषित किया गया तो कृष्णमुरारी शरण ने महज 12 वोटों के अंतर से जीत हासिल की.
इसी तरह पूर्वी चंपारण जिले के गोविंदगंज विधानसभा सीट पर जीत के अंतर का एक दिलचस्प रिकॉर्ड बना. गोविंदगंज विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के सुनील मणि तिवारी विजयी हुए. उन्होंने लगभग एकतरफा मुकाबले में कांग्रेस ब्रजेश कुमार को हरा दिया. सुनील मणि तिवारी ने यह मुकाबला 27,924 मतों के अंतर से जीता.
लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में गोविंदगंज सीट पर हार-जीत का अंतर 27,920 का था और इस अंतर के साथ लोक जनशक्ति पार्टी के राजू तिवारी ने जीत हासिल की थी. खास बात यह है कि राजू तिवारी ने तब कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को ही 27,920 मतों के अंतर से हराया था. और इस बार सुनील मणि तिवारी ने ब्रजेश कुमार को 27,924 मतों के अंतर से हरा दिया. दोनों चुनाव में हार-जीत के अंतर को देखा जाए तो यह अंतर महज 4 वोटों का ही रहा.
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सुनील मणि तिवारी को 65544 यानी 43.22 फीसदी वोट मिले तो ब्रजेश कुमार को 24.81 फीसदी वोट मिले. जबकि 2015 के चुनाव में एलजेपी के राजू तिवारी को 54.5% वोट और ब्रजेश कुमार को 34.2% वोट हासिल हुए थे. इस बार ब्रजेश के वोट में भी गिरावट देखी गई. पिछली बार के विधायक और एलजेपी प्रत्याशी राजू तिवारी तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें महज 31,300 वोट ही मिले.
इस बार भी 3 हजार से ज्यादा नोटा वोट
इस सीट पर नोटा के पक्ष में वोटों पर नजर डालें तो 2015 के चुनाव 3,441 लोगों ने वोट किया था. जबकि 2020 के चुनाव में 3 हजार से ज्यादा 3,002 वोट नोटा के पक्ष में पड़े.
इसी तरह बिहार के गुरूआ विधानसभा सीट पर हार-जीत का अंतर 2015 के चुनाव परिणाम के ही बेहद करीब ही रहा. गुरुआ से आरजेडी के विनय कुमार ने जीत हासिल की. उन्होंने 6,599 मतों के अंतर से बीजेपी के राजीव नंदन को हराया. जबकि 2015 के चुनाव में बीजेपी के राजीव नंदन ने जेडीयू के रामचंद्र प्रसाद सिंह को 6,515 मतों के अंतर से हराया था. इस तरह हार-जीत में इस बार अंतर 84 मतों का रहा.
बिहार में अंतिम चुनाव परिणाम की बात करें तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को 243 में से 125 सीटों पर जीत हासिल हुई है जबकि आरजेडी की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटों पर जीत मिली.