
राष्ट्रीय जनता दल. ये पार्टी वैसे तो मुख्य रूप से सिर्फ बिहार की है, लेकिन इसका डंका पूरे देश में बोलता है. सबसे खास वजह है इस पार्टी के मुखिया लालू प्रसाद यादव. वो नेता जो अपने चुटकीले अंदाज और प्रभावशाली भाषणों के लिए जाने जाते हैं. हालांकि आजकल जेल में सजा काट रहे हैं और सुर्खियां भी सलाखों की कहानियों तक ही सीमित हो गई हैं. लेकिन लालू प्रसाद ने जब राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी का गठन किया था, तब उनका दमखम इतना था कि उस वक्त के बड़े-बड़े नेता भी लालू यादव की काट नहीं तलाश पाए थे.
कैसे हुआ आरजेडी का गठन?
आरजेडी का गठन 5 जुलाई 1997 को हुआ था. बिहार की इस पार्टी की स्थापना दिल्ली में की गई थी. स्थापना के वक्त लालू प्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह समेत 17 लोकसभा सांसद और 8 राज्यसभा सांसदों की मौजूदगी में बड़ी तादाद में कार्यकर्ता व समर्थक जुटे थे. स्थापना के साथ ही लालू प्रसाद यादव को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया और सजायाफ्ता होने के बावजूद वो आज भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर तैनात हैं.
इस तरह दिल्ली में आरजेडी का गठन हुआ. हालांकि इंपोर्टेंट ये नहीं है कि आरजेडी का गठन कब हुआ, इंपोर्टेंट ये है कि आरजेडी का गठन क्यों हुआ. दिलचस्प बात ये है कि आज लालू यादव जिस कारण सजा काट रहे हैं, आरजेडी के गठन की असली वजह भी वही थी.
इस पूरी कहानी को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा और लालू प्रसाद यादव की राजनीति को समझना पड़ेगा.
ऐसी रही लालू यादव की राजनीति
11 जून, 1948 को लालू प्रसाद यादव का जन्म बिहार के गोपालगंज में हुआ था, जहां से उन्होंने रायसीना तक का सफर तय किया. लालू के इस सफर का आगाज पटना यूनिवर्सिटी से हुआ था. यहीं से उन्हें एलएलबी की पढ़ाई की और यहीं से छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर रहते हुए वो जेपी आंदोलन से जुड़ गए. इसी दौरान वो जनता पार्टी के नेताओं के नजदीक आ गए. इसका नतीजा ये हुआ 29 साल की उम्र में ही वो लोकसभा सांसद बन गए.
लालू यादव ने 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीता था. आपातकाल के चलते कांग्रेस विरोधी लहर चली और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार बन गई. दो साल बाद ही ये सरकार गिर गई और जनता दल भी बिखर गया, केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गई.
लालू यादव ने भी अपना खेमा चुन लिया और उन्होंने 1980 में बिहार विधानसभा चुनाव में उतरकर क्षेत्रीय राजनीति पर फोकस कर लिया. 1985 में लालू विधानसभा में नेता विपक्ष बने. दूसरी तरफ केंद्र की राजनीति ने फिर करवट ली और वीपी सिंह के नेतृत्व में जेपी के वक्त के दलों को जुटाकर जनता दल का गठन किया गया. इसी बीच बिहार में 1989 में भागलपुर के दंगे हुए और लालू यादव खुद को सेकुलर छवि के नेता के रूप में स्थापित करने में कामयाब हो गए. इसका नतीजा ये हुआ कि जब 1990 में बिहार में बीजेपी के सहयोग से जनता दल की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री पद को लेकर बात ठन गई.
केंद्र में बीजेपी के मदद से चल रही जनता दल की सरकार संभाल रहे तत्कालीन पीएम वीपी सिंह चाहते थे कि राम सुंदर दास को कुर्सी मिले जबकि चंद्रशेखर रघुनाथ झा का समर्थन कर रहे थे, इस विवाद को खत्म करने के लिए डिप्टी पीएम देवी लाल ने लालू प्रसाद यादव का नाम आगे कर दिया. 10 मार्च 1990 को लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.
अपने ही हो गए लालू के खिलाफ
लालू यादव ने 23 सितंबर 1990 समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा रोक दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. बीजेपी ने लालू यादव के इस एक्शन पर करारा रिएक्शन दिया और केंद्र व बिहार की जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया. वीपी सिंह की सरकार तो गिर गई लेकिन लालू यादव ने डैमेज कंट्रोल कर अपनी ताकत दिखा दी. इस सियासी घटनाक्रम के दौरान चारा घोटाले की जांच भी चलती रही, जो आगे जाकर लालू यादव पर भारी पड़ गई.
1995 के विधानसभा चुनाव में भी जनता दल को जीत मिली और लालू यादव मुख्यमंत्री बने. लेकिन 1997 में जब लालू यादव का नाम चारा घोटाले में आया और उनके नाम अरेस्ट वॉरेंट जारी हो गया तो जनता दल में ही उनके खिलाफ आवाज उठने लगी. यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री पद थे, वही गुजराल जिन्हें 1992 में लालू यादव की मदद से राज्यसभा की सदस्यता मिली थी. लेकिन गुजराल भी सीबीआई से लालू को नहीं बचा पाए.
जनता दल की कमान अपने पास ही चाहते थे लालू
4 जुलाई की शाम पीएम इंद्र कुमार गुजराल ने दिल्ली में अपने आवास पर नेताओं की बैठक बुलाई. लालू भी इसमें शामिल हुए. लालू यादव ने कहा कि वो सीएम पद से इस्तीफा दे देंगे लेकिन जनता दल का अध्यक्ष उन्हें ही रहने दिया जाए. सीबीआई की गिरफ्त में लालू घिर चुके थे, लिहाजा उनकी एक नहीं सुनी गई. इसका नतीजा ये हुआ कि अगले ही दिन 5 जुलाई को लालू यादव ने अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बना ली. इसके बाद लालू यादव ने एक और दांव चलते हुए 25 जुलाई को अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया. इस तरह लालू ने अपनी अलग पार्टी भी खड़ी कर ली और सत्ता भी बचा ली.
साल 2000 में आरजेडी बनी नंबर वन
लालू यादव ने अपने दम पर 1997 में जिस आरजेडी को खड़ा किया था, उसने अगले ही विधानसभा चुनाव में कमाल कर दिया. उस वक्त झारखंड बिहार का ही हिस्सा था और वहां 324 विधानसभा सीट हुआ करती थीं. 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 324 में से 124 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी 67, कांग्रेस 23, जेडीयू 21 और समता पार्टी 34 सीटों पर सिमट गई. आरजेडी के पास बहुमत नहीं था, ऐसे में थोड़ी सियासी उथल-पुथल भी देखने को मिली. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी. बिहार में नीतीश को बीजेपी ने समर्थन दिया, कुछ दूसरे दल भी साथ आ गए. नीतीश कुमार सीएम बने, लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए और 7 दिन ही सीएम पद पर रह सके. लालू यादव ने जबरदस्त मैनेजमेंट कर सत्ता अपने हाथ ले ली और 2005 तक पांच साल फिर राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रहीं.
दूसरी तरफ लालू यादव ने 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और केंद्र की यूपीए सरकार में वो रेल मंत्री बन गए. 2005 में विधानसभा चुनाव हुआ. आरजेडी के सामने समता पार्टी-लोक शक्ति पार्टी व अन्य के विलय से अक्टूबर 2003 में बनी जनता दल यूनाइटेड थी. आरजेडी महज 54 सीटों पर सिमट गई जबकि जेडीयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी को 55 सीट मिलीं. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. तब से अब तक यानी 15 साल से नीतीश ही बिहार चला रहे हैं.
इस बीच 2015 में आरजेडी ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और गठबंधन की सरकार बनाई. लेकिन नीतीश ने जल्द ही आरजेडी से नाता तोड़ दिया और फिर बीजेपी को साथ लेकर बिहार की कुर्सी संभाल ली.
अब जबकि लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला केस में ही जेल की सजा काट रहे हैं, उनके बेटे तेजस्वी यादव व तेज प्रताप यादव नीतीश कुमार और बीजेपी की संयुक्त सत्ता को चुनौती दे रहे हैं. आलम ये है कि रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता जिन्होंने दिल्ली में बैठकर लालू के साथ आरजेडी बनाई थी, वही अब आरजेडी से इस्तीफा दे चुके हैं और लालू 1997 की तरह ही फिर से चारा घोटाला के साये में रहकर अपनी पार्टी को खड़ा करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. जबकि उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव पूरी तरह से पार्टी का कामकाज देख रहे हैं. लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप भी अपनी पार्टी के साथ आगे बढ़ रहे हैं.