
सभी पार्टियों और नेताओं की ओर से वोटर्स को लुभाने की आखिरी कोशिश के साथ सोमवार को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का प्रचार खत्म हो गया. बिहार की सत्ता में बने रहने के लिए पार्टियों का पाला बदलना कोई नया नहीं है. राज्य विधानसभा की 243 सीटों के लिए जारी मौजूदा चुनाव प्रक्रिया भी पार्टी और गठबंधन बदलने के खेल से अछूती नहीं है.
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने उन पार्टियों का जायजा लिया जिन्होंने पिछले चार विधानसभा चुनावों (2005-2020) में बीजेपी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच सबसे ज्यादा आवाजाही की.
इस सूची में सबसे ऊपर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) हैं, जिन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच बार-बार अपना पाला बदला.
जनता दल (यूनाइटेड)
फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आया यानी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. अक्टूबर 2005 में दोबारा चुनाव हुए. इसके लिए जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया और जीत हासिल की. इस चुनाव में जेडीयू को 88 सीटें और 20 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
इस चुनाव में एनडीए गठबंधन ने 35 फीसदी वोट शेयर के साथ 243 में से 143 सीटें हासिल कीं. इसके उलट, आरजेडी गठबंधन 31 फीसदी वोटों के साथ सिर्फ 65 सीटें जीत सका. एनडीए की इस महत्वपूर्ण जीत ने बिहार में लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन का अंत कर दिया. जेडीयू नेता नीतीश कुमार सीएम और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी डिप्टी सीएम बने.
2007 में एनडीए सरकार ने दलित वोट-बैंक को लुभाने के लिए एक और सोशल इंजीनियरिंग शुरू की और सबसे वंचित दलित समुदायों की पहचान के लिए महादलित आयोग का गठन किया. 22 दलित समुदायों में से आयोग ने 18 को बेहद वंचित के रूप में सूचीबद्ध किया और इसे महादलित नाम दिया गया. 2009 में पासवानों को छोड़कर सभी दलित समुदायों को महादलित की सूची में शामिल कर लिया गया.
महादलित रणनीति ने 2010 के विधानसभा चुनाव में काम किया और जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने भारी जीत दर्ज की. गठबंधन ने 39.1 फीसदी मतों के साथ 206 सीटें जीतीं. इस चुनाव में जेडीयू ने 115 सीटें और बीजेपी ने 91 सीटें जीतीं.
2013 में जेडीयू ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के विरोध में बीजेपी के साथ अपना 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया.
2015 में नीतीश कुमार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अपने कट्टर विरोधी लालू प्रसाद यादव के साथ आ गए. जेडीयू ने आरजेडी के साथ चुनावी गठबंधन किया और चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की. महागठबंधन को 178 सीटें मिलीं. बीजेपी के साथ एनडीए में एलजेपी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) थीं. एनडीए गठबंधन को सिर्फ 58 सीटों पर जीत मिली.
हालांकि, 2015 में विधानसभा चुनाव जीतने के दो साल बाद नीतीश कुमार ने आरजेडी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाते हुए नीतीश ने गठबंधन तोड़ दिया और फिर से बीजेपी के साथ सरकार बनाई. ये वही बीजेपी थी जिसे 2015 के चुनाव में नीतीश ने सांप्रदायिक पार्टी बताकर आलोचना की थी और 71 सीटें जीती थीं.
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नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव- दोनों ही जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’ के अनुयायी रहे हैं, जिन्होंने कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध किया था और सामाजिक न्याय के चैंपियन के रूप में उभरे थे. उन्होंने बिहार की राजनीति को उच्च जाति के प्रभुत्व वाले दलों- कांग्रेस और बीजेपी से मुक्त कराने का वादा किया था. लेकिन पिछले दो दशकों के दौरान राजनीतिक आकांक्षाओं और सत्ता की चाहत ने उन्हें कांग्रेस और बीजेपी के खेमे में ही ला खड़ा किया है.
लोक जनशक्ति पार्टी
जेडीयू नेता रामविलास पासवान ने साल 2000 में एलजेपी का गठन किया था. उस समय एलजेपी एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन गुजरात दंगों के बाद पासवान ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और एनडीए से बाहर चले गए. उसके बाद से एलजेपी ने गठबंधन के लिए आरजेडी से लेकर एनडीए तक का हर दरवाजा खटखटाया है.
2005 के बिहार चुनाव के खंडित जनादेश का कारण एलजेपी को माना गया जिसे 12.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 29 सीटें मिली थीं. एलजेपी किंगमेकर बन गई थी क्योंकि सरकार बनाने लायक बहुमत न आरजेडी के पास था, न ही जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के पास था. हालांकि, पार्टी किसी भी गठबंधन के साथ आने में विफल रही. अक्टूबर 2005 में जब दोबारा चुनाव हुए तो एलजेपी अपनी सीटें बरकरार नहीं रख सकी. उसे सिर्फ 10 सीटों से संतोष करना पड़ा.
2010 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ गठबंधन में शामिल हो गई. मुस्लिम और एससी वोटों के लिए आरजेडी ने एलजेपी का स्वागत किया. एलजेपी एक बार फिर से कोई कारनामा कर पाने में विफल रही. इसे 6.7 फीसदी वोट शेयर के साथ सिर्फ 3 सीटें ही मिल सकीं. हालांकि, हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव हारने वाले राम विलास पासवान 2010 में ही लालू प्रसाद यादव के समर्थन से राज्य सभा के लिए चुने गए थे.
2015 में एलजेपी, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में फिर से शामिल हुई और पिछले चुनाव के मुकाबले एक सीट और गवां दी. 2015 के चुनाव में पार्टी का वोट शेयर भी 6.7 से घटकर 4.8 फीसदी पर आ गया.
हार्ट की सर्जरी कराने वाले रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर, 2020 को निधन हो गया. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में उनके बेटे चिराग पासवान एनडीए गठबंधन अलग 137 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
अन्य पार्टियां
वाम दलों सहित कई अन्य छोटे-छोटे राजनीतिक दल हैं जो अक्सर पाला बदलते रहते हैं. उदाहरण के लिए जाति आधारित पार्टियां- जैसे उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन में सीट विवाद के कारण शामिल नहीं हो सकी. हम एनडीए गठबंधन में शामिल हो गई, जबकि आरएलएसपी एक तीसरे गठबंधन ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट का हिस्सा है.
2015 के विधानसभा चुनाव में सभी वामपंथी दल सीपीआई (एमएल) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के साथ आ गए थे. लेकिन 2020 के चुनाव में वाम दलों ने महागठबंधन के साथ हाथ मिलाया है.