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सहरसा विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की ओर से भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) के आलोक रंजन ने जीत दर्ज की है. उन्होंने महागठबंधन से राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) की प्रत्याशी लवली आनंद को हराया है. चुनाव में जीत का अंतर 19,679 रहा.
आलोक रंजन को जहां 1,03,538 लोगों ने वोट किया, वहीं लवली आनंद को कुल 83,859 वोट पड़े. शुरुआती चरण में कांटे की टक्कर रही. बीजेपी को 45.59 फीसदी लोगों का वोट मिला, तो वहीं लवली आनंद को 36.93 फीसदी लोगों का साथ मिला. तीसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार किशोर कुमार रहे, जिन्हें 12,592 वोट मिले. वहीं चौथे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी रंजीत कुमार राणा रहे, जिन्हें 9,994 वोट मिले.
61.10 फीसदी लोगों ने डाले थे वोट
एनडीए बनाम महागठबंधन की जंग में कड़ा मुकाबला देखने को मिला. सहरसा विधानसभा सीट पर पुरुष मतदाताओं की संख्या अधिक है. 3 लाख 60 हजार से अधिक मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं में पुरुषों की तादाद अधिक है. कुल वोटरों में 52.6 फीसदी है. पिछले चुनाव में 1 लाख 93 लाख 991 वोट पड़े थे. इस सीट के लिए तीसरे और अंतिम चरण में 7 नवंबर को 61.10 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया.
सहरसा जिले की सहरसा विधानसभा सीट वैसे तो कभी किसी एक दल का मजबूत किला नहीं बन सकी, लेकिन यह कांग्रेस का गढ़ रही है. 2005 से 2015 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कब्जे में रही इस सीट पर पिछले चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने जीत हासिल की थी.
सीट पर हुई थी सियासी टक्कर
महागठबंधन इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने को जोर लगाया लेकिन कामयाबी नहीं मिली. वहीं भाजपा भी अपनी खोई सीट पाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. पिछले चुनाव में आरजेडी के अरुण कुमार यादव विजयी रहे थे. इस बार यह सीट सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही खेमों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी.आरजेडी ने इस बार लवली आनंद को टिकट दिया. भारतीय जनता पार्टी ने आलोक रंजन को चुनाव मैदान में उतारकर सधी हुई चाल चली. जन अधिकार पार्टी ने रंजन प्रियदर्शी को उम्मीदवार बनाया था. इस सीट से 14 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने उतरे. इस बार समीकरण भी पिछले चुनाव से उलट रहे. पिछले चुनाव के दौरान महागठबंधन में आरजेडी की गठबंधन सहयोगी रही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) इस बार एनडीए में है. दूसरे, यादव बाहुल्य इस सीट पर जातीय समीकरण और शहरी क्षेत्र का प्रभाव भी वोटों के गणित को प्रभावित करता है. ऐसे में इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प रहने की उम्मीद भी थी.
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कांग्रेस ने लगाया था जीत का छक्का
सहरसा विधानसभा सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो यह सीट भी कभी कांग्रेस का गढ़ रही है. 1957 के विधानसभा चुनाव में विजय पताका फहराने वाली कांग्रेस ने इस सीट पर जीत का छक्का लगाया था. कांग्रेस के रमेश झा ने सबसे अधिक पांच बार विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. हालांकि, 1957 के चुनाव में रमेश झा को कांग्रेस उम्मीदवार विश्वेसरी देवी से मात खानी पड़ी थी. चार बार वे कांग्रेस, जबकि एक बार वे दूसरे दल से विधायक रहे थे.
साल 1995 में जनता दल के शंकर प्रसाद टेकरीवाल विधायक निर्वाचित हुए थे. साल 2000 में भी शंकर प्रसाद टेकरीवाल ही विधायक निर्वाचित हुए थे. टेकरीवाल इस बार आरजेडी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि, 2005 के चुनाव में भाजपा के संजीव कुमार झा ने टेकरीवाल का विजय रथ रोक दिया था.