चुनावी राजनीति पर नज़र रखने वाली एक संस्था एडीआर और बिहार इलेक्शन वॉच ने एक स्टडी की. इसमें 2005 के बाद से बिहार में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स का अध्ययन किया गया. इस अध्ययन से निकले आंकड़े बहुत हैरान करने वाले हैं. 2005 के बाद से बिहार में 10 हज़ार 785 कैंडिडेट्स ने लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ा, इनमें 30 प्रतिशत कैंडिडेट्स का क्रिमिनल रिकॉर्ड था. जबकि 20 प्रतिशत कैंडिडेट्स पर तो दर्ज मामले बहुत सीरियस थे. जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, किडनैपिंग, उगाही जैसे केस हैं. इसमें 2005 के बाद से बिहार के सांसद और विधायकों का भी अध्ययन किया गया. इनमें 57 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों के खिलाफ अपराधिक मामले थे. 36 प्रतिशत के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले थे यानी क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले लोगों को पार्टियां ना सिर्फ टिकट देती हैं, बल्कि ये चुनाव जीतकर संसद और विधानसभा में भी बैठ जाते हैं.
With Assembly election in Bihar merely three weeks away, political parties have started betting on potential winning candidates, including those with a criminal background. Data from the last three Assembly elections show that almost every party has relied on tainted candidates as crime appears to have a more electoral advantage.