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केजरीवाल के समक्ष अपना किला बचाने की चुनौती
दिल्ली की राजेंद्र नगर विधानसभा सीट पर लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कब्जा रहा है. इस सीट पर 1993 से लेकर 2003 तक बीजेपी के उम्मीदवार पूरण चंद योगी जीत हासिल करते रहे. 2008 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर समीकरण बदला और कांग्रेस के रमाकांत गोस्वामी जीतने में सफल रहे.
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मगर 2013 में जब फिर विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी के उम्मीदवार आर. पी. सिंह ने राजेंद्र नगर से जीत हासिल की. हालांकि 2015 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल की लहर चली और नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली इस सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार विजेंदर गर्ग विजय जीत हासिल करने में कामयाब रहे.
राजेंद्र नगर विधानसभा सीट की तस्वीर
राजेंद्र नगर विधानसभा सीट पर कुल आबादी में अनुसूचित जाति का अनुपात 21.75 फीसदी है. 2019 की मतदाता सूची के मुताबिक 1,75,628 मतदाता 177 मतदान केंद्रों पर वोटिंग करेंगे. 2015 के विधानसभा चुनाव में 62.99% मतदान हुए जबकि बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को क्रमशः 35.94%, 7.81% और 53.39% वोट मिले.
विधानसभा चुनाव 2015
विजेंदर गर्ग विजय (AAP)- 61,354 (53.39%)
आर. पी. सिंह (बीजेपी)- 41,303(35.94%)
ब्रह्म यादव (कांग्रेस)- 8,971(7.80%)
विधानसभा चुनाव 2013
आर. पी. सिंह (बीजेपी)- 35,713(35.82%)
विजेंदर गर्ग विजय (AAP)- 33,917(34.02%)
रामा कांत गोस्वामी(कांग्रेस)- 20,817(20.88%)
2013-2015 में चली थी केजरीवाल की लहर
बहरहाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समक्ष अपना सबसे मजबूत किला बचाने की प्रबल चुनौती है.
पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल का जादू इस बार चलेगा या नहीं इस पर पूरे देश की निगाहें हैं. केजरीवाल अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान विशेषकर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों को गिनाते हुए इस बार भी पूरे आत्मविश्वास में हैं जबकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पिछला करिश्मा दोहराना मुश्किल नजर आ रहा है.
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वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही ‘AAP’ का गठन हुआ था और उस चुनाव में दिल्ली में पहली बार त्रिकोणीय संघर्ष हुआ जिसमें 15 वर्ष से सत्ता पर काबिज कांग्रेस 70 में से केवल आठ सीटें जीत पाई जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार बनाने से केवल चार कदम दूर अर्थात 32 सीटों पर अटक गई. ‘आप’ को 28 सीटें मिली और शेष दो अन्य के खाते में रहीं.
बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के प्रयास में कांग्रेस ने ‘AAP’ को समर्थन दिया और केजरीवाल ने सरकार बनाई. लोकपाल को लेकर दोनों पार्टियों के बीच ठन गई और केजरीवाल ने 49 दिन पुरानी सरकार से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा और फरवरी 2015 में ‘AAP’ने सभी राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 70 में से 67 सीटें जीतीं. बीजेपी तीन पर सिमट गई जबकि कांग्रेस की झोली पूरी तरह खाली रह गई.
वोटिंग और मतगणना कब?
दिल्ली की पहली विधानसभा का गठन 1993 में हुआ था और इस बार यहां पर सातवां विधानसभा चुनाव कराया जा रहा है. इससे पहले राजधानी दिल्ली में मंत्रीपरिषद हुआ करती थी. दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार महज एक चरण में मतदान हो रहा है. 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे जबकि 11 फरवरी को मतगणना होगी. छठी दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 22 फरवरी 2020 को समाप्त हो जाएगा.