Advertisement

गुजरात डायरी: राजकोट में दो दिन, कई मुलाकातें और हजार बातें

पिछले कुछ समय से हर चुनाव में यही हो रहा है. मेरी बात का भरोसा ना हो रहा हो तो गूगल पर गुजरात या गुजरात चुनाव लिखकर सर्च कर लीजिएं आपको खुद दिख जाएगा. पहले पन्ने से पांचवे पन्ने तक यही मिलेगा कि फलाना नेता ने फ़लाना के बारे में क्या कहा? किसकी सभा में कुर्सियां ख़ाली गईं और किस ने मंदीर के रजिस्टर पर क्या लिख दिया.

लोगों से मुलाकात लोगों से मुलाकात
केशवानंद धर दुबे/विकास कुमार
  • राजकोट,
  • 01 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:44 AM IST

गुजरात में सियासी तापमान लगातार बढ़ रहा है. प्लान के मुताबिक राजकोट में एक ही दिन ठहरना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जिस रात निकलना था उस रात एकाएक ठंड और कंपकपी लगी और फिर शरीर का तापमान बढ़ गया. पूरी रात बुखार में तपता रहा. इस वजह से एक और दिन राजकोट में रुकना हो गया.

अब जब एक और दिन राजकोट में रुकना हुआ तो कोशिश रही कि ज्यादा से ज्यादा लोगों से मुलाकात हो. उनकी बातें दर्ज हों. उनकी कहानी बाहर आएं क्योंकि हर पांच साल में होने वाले चुनाव ‘जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए’ होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि इस मौके पर सबसे पीछे जनता की बातें, जनता के मुद्दे ही चले जाते हैं और केंद्र में आ जाता है- नेताओं के बयान.

Advertisement

चुनावी बहस के केंद्र में है नेताओं का बयान

पिछले कुछ समय से हर चुनाव में यही हो रहा है. मेरी बात का भरोसा ना हो रहा हो तो गूगल पर गुजरात या गुजरात चुनाव लिखकर सर्च कर लीजिए आपको खुद दिख जाएगा. पहले पन्ने से लेकर पांचवें पन्ने तक यही मिलेगा कि फलाना नेता ने फलाना के बारे में क्या कहा? किसकी सभा में कुर्सियां खाली गईं और किस ने मंदिर के रजिस्टर पर क्या लिख दिया.

यह भी पढ़ें- गुजरात डायरी: ‘सूरत सुखी है, क्योंकि वो जवान है और यहां प्रेम पर पहरा नहीं’

कहने का मतलब कि आमलोगों के मुद्दे, उनकी बातों को कहीं जगह नहीं मिल रही. aajtak..in की टीम ने इस तरफ एक छोटी से कोशिश की है. राजकोट प्रवास के दौरान हमने सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के छात्रों से बात की.

Advertisement

किसानों का नहीं मिलता फसल का सही दाम

हमने राजकोट की अनाज मंडी में किसानों से बात की और उनसे बात करते हुए यह अंदाजा हुआ कि गुजरात के विकास मॉडल में भी किसानों के लिए कुछ खास हुआ नहीं है. मंडी में मूंगफली बेचने आए किसान का कहना था कि वो पांच सौ के घाटे पर अपनी उपज बेच रहे हैं.

सरकारी खरीद की बात की तो उनका कहना था कि दो-चार दिन नंबर लगाना पड़ता है. फिर अगर अनाज बिक गया तो दो महीने बाद दाम मिलता है और ऐसे में हमारा तो सारा काम ही रुक जाता है. मंडी में किसानों से बात करने के दौरान इस बात का सहज अंदाजा लगता है कि राज्य के अन्नदाता खुश नहीं हैं.

राजकोट में हार्दिक पटेल की सभा

29 दिसम्बर की शाम राजकोट शहर में हार्दिक पटेल की चुनावी सभा थी. हम उस सभा में भी पहुंचे. शहर के बीचोबीच हो रहे इस सभा में अच्छी-खासी संख्या में लोग हार्दिक पटेल को सुनने आए थे. अगर संख्या का अंदाजा लगाऊं तो करीब दो हज़ार लोग तो थे ही और लोगों में उत्साह भी था. हार्दिक पटेल को लेकर मैंने एक बात नोटिस की है. युवाओं के बीच उनका जबरदस्त क्रेज है, लेकिन उम्रदराज लोग उनको बहुत पसंद नहीं करते हैं और यह भी कि इस चुनाव में हार्दिक एक महत्वपूर्ण फैक्टर के तौर पर मौजूद हैं.

Advertisement

हार्दिक के अलावे राजकोट में जिनकी चर्चा सबसे ज़्यादा है वे हैं राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपानी क्योंकि वो राजकोट के ही हैं और यहीं से चुनाव भी लड़ रहे हैं. पूरे शहर में उनके पोस्टर लगे हैं जिसमें उन्हें राजकोट का बेटा बताया गया है.

राजकोट की बिस्कुट चाट का स्वाद है निराला

देखिए, डायरी लिखते-लिखते मैं खुद राजनीतिक बातें करने लगा. मैंने तय किया है कि डायरी में इन बातों से बचूंगा. यहां कुछ ऐसी बातें आपको बताऊंगा जो आमतौर पर आपको पढ़ने को नहीं मिलती होंगी. सो, राजकोट आइएगा कभी तो यहां एक चाट की दुकान है वहां जाइएगा और बिस्कुट चाट खाइएगा. अच्छा बनाते हैं.

अब जिक्र उस घटना का करते हैं जिसकी वजह से मैं थोड़े अपराधबोध में हूं. राजकोट से अहमदाबाद आने के लिए बस लेने मैं सदर बाज़ार इलाक़े में गया था. बस आने में समय था सो सोचा कुछ खा-पी लिया जाए.

इधर उधर देखा तो एक ठेला दिखा जिस पर अंडे का कुछ-कुछ बन रहा था. वहां पहुंचा तो थोड़ी देर बाद अंडे बेच रहे भाई ने मुझसे कहा, ‘कहां से आए?’ ‘दिल्ली से’ मैंने जवाब दिया.

पूरी दिल्ली गुजरात में उतरी हुई है!

उन्होंने फिर कहा, ‘पूरी दिल्ली गुजरात में ही उतरी हुई है. आप किस चैनल से?’ मेरे लिए यह चौंकाने वाला था कि उन्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं प्रेस से हूं. ख़ैर मैंने उन्हें अपने संस्थान का नाम बताया. इसके बाद उन्होंने जो कहा वो आज के दौर में हो रही पत्रकारिता पर एक कड़ी टिप्पणी थी.

Advertisement

जस का तस लिखने की कोशिश करता हूँ, ‘अमीरों के इलाक़े में जाकर इंटरव्यू लोगे तो वो तो यही कहेंगे ना कि सब अच्छा है. बोलो? विकास उधर जाकर देखो ना जिधर हुआ ही नहीं. पुराने राजकोट जाओ ना? लेकिन आपलोग दिल्ली से आए यहां का कुछ मालूम ही नहीं तो दिखाओगे क्या, बोलो?’

पुराने राजकोट क्यों नहीं गया?

इसके बाद भी उन्होंने बहुत कुछ कहा जिसे हमने वीडियो में दर्ज किया है. वीडियो में अपना शक्ल दिखाने और नाम बताने से उन्होंने मना कर दिया. …लेकिन मुझे उनकी यही बात खाए जा रही है कि मैं एक बार पुराने राजकोट में क्यों नहीं गया? क्या मैं एक ऐसे इलाक़े की बात बाहर लाने से चूक गया जहां विकास का ‘गुजरात मॉडल’ की अभी तक नहीं पहुंचा है?

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement