Advertisement

गुजरात: मोदी के खिलाफ खड़े होने वाले इन 3 चेहरों का अब क्या होगा?

गुजरात में कांग्रेस के मौजूदा प्रदर्शन का काफी हद तक श्रेय उस तिकड़ी को जाएगी जिसने गुजरात में पिछले 22 साल के दौरान पहली बार लड़ाई का तरीका बदला.

मोदी ने गुजरात की लड़ाई जीत ली है. मोदी ने गुजरात की लड़ाई जीत ली है.
अनुज कुमार शुक्ला
  • नई दिल्ली/अहमदाबाद,
  • 18 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 3:31 PM IST

गुजरात में विधानसभा की सभी 182 सीटों के रुझान आ गए हैं. बीजेपी को बहुमत से ज्यादा सीटें मिलती दिख रही है. हालांकि कांग्रेस उतनी मजबूती से नहीं उभर पाई जैसा पार्टी ने दावा किया था. पर, ये कांग्रेस के लिए पिछले चुनाव से बहुत बेहतर माना जा सकता है. कांग्रेस के मौजूदा प्रदर्शन का काफी हद तक श्रेय उस तिकड़ी को जाएगा जिसने गुजरात में पिछले 22 साल के दौरान पहली बार लड़ाई का तरीका बदला. पिछले कुछ सालों में गुजरात में पहली बार नए तरह की सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन को खड़ा किया. इस तिकड़ी में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर शामिल थे. चुनाव के नतीजे अब गुजरात में इस तिकड़ी के भविष्य और राजनीति पर भी सवाल करते नजर आ रहे हैं.

Advertisement

#1. हार्दिक के लिए साख बनाए रखने की चुनौती?

पाटीदार आंदोलन को खड़ा करने और उसका नेतृत्व करने वाले 24 साल के हार्दिक पटेल की साख दाव पर थी. उन्हें गुजरात में केशुभाई के बाद पटेलों का विकल्प माना गया. हार्दिक ने खुद चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन कांग्रेस का पुरजोर समर्थन किया. कांग्रेस के साथ उनकी मौजूदगी ने गुजरात की लड़ाई को बेहद दिलचस्प बना दिया. अब जबकि बीजेपी छठी बार सरकार बनाने में कामयाब हो गई है, हार्दिक को अपना कद बचाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. सबसे बड़ी चुनौती तो आरक्षण के लिए 'पाटीदार अनामत आंदोलन समिति' का खड़ा किया आंदोलन होगा.

दरअसल, पाटीदारों में आरक्षण के मुद्दे पर अब पहले जैसा समर्थन हासिल करना हार्दिक के लिए काफी कठिन कार्य साबित हो सकता है. पाटीदारों में पहले से ही आपसी नेतृत्व का संकट है. यह आंदोलन की शुरुआत में दिखा. चुनाव में बीजेपी ने भी हार्दिक के साथी नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफलता हासिल की. कहना नहीं होगा कि पाटीदारों के नेतृत्व का विकल्प बनना हार्दिक के लिए एक टेढ़ी खीर है.

Advertisement

सीटें कम लेकिन 2012 से बड़ी है गुजरात में BJP की ये जीत

#2. अब कहां जाएंगे जिग्नेश मेवानी

गुजरात में जो दूसरा सबसे बड़ा चेहरा उभरकर सामने आया वह जिग्नेश मेवानी का था. ऊना में दलित उत्पीड़न के मामले को 36 साल के जिग्नेश ने देशव्यापी आंदोलन के तौर पर खड़ा किया. 'आजादी कूच' जैसा आंदोलन चलाया. उन्होंने जानवरों की लाश का निस्तारण करने वाले दलितों को एकजुट कर इस काम का विरोध किया. जिग्नेश कांग्रेस में शामिल नहीं हुए, लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्होंने बनासकाठा जिले की बडगांव सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और करीब 18,150 मतों के अंतर से जीत हासिल की. दलितों के बीच जिग्नेश एक नेतृत्व के तौर पर उभरे हैं. जिग्नेश की राजनीतिक यात्रा पर गौर करें तो इस तरह की दलित राजनीति का उभार गुजरात में देखने को नहीं मिली है. अब नतीजों के बाद इस राजनीति को दिशा देना और संगठित रखना उनके लिए बड़ी चुनौती है.

#3. अल्पेश ठाकोर

अल्पेश ठाकोर ने गुजरात में पिछड़ों का एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया. 39 साल के अल्पेश ने पाटीदारों की ओबीसी आरक्षण की मांग का विरोध किया और ओबीसी एकता मंच बनाया. जिग्नेश के साथ आकर गुजरात में बीजेपी सरकार के खिलाफ ओबीसी-दलित राजनीति खड़ा करने की कोशिश की. हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले अल्पेश कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर राधनपुर से विधानसभा चुनाव जीता. चूंकि अल्पेश पाटीदार आंदोलन की खिलाफत करते आए हैं, कांग्रेस में रहकर उनकी अपनी राजनीति प्रभावित हो सकती है.

Advertisement

चुनाव में राहुल के 21 दिन: सौराष्ट्र में झोंकी ताकत, पहले चरण के फोकस में सेंट्रल गुजरात

#क्या हो सकता है तीनों के लिए सुरक्षित विकल्प

विधानसभा चुनाव का समय तीनों के लिए महत्वपूर्ण है. कांग्रेस के साथ बने रहना तीनों के लिए फायदेमंद है, पर इसमें कुछ ऐसे पेंच हैं जिसके अलग दुष्प्रभाव भी हैं. तीनों राज्य में बीजेपी के प्रतिरोध का चेहरा हैं ऐसे में इनके लिए कांग्रेस जैसे विकल्प के साथ बने रहना फायदेमंद है. बीजेपी के खिलाफ दो बड़े और युवा चेहरे विधानसभा के अंदर मुखर होंगे और हार्दिक के रूप में एक बड़ा चेहरा विधानसभा के बाहर खड़ा होगा.

हालांकि तीनों के वैचारिक-राजनीतिक टकराव इसमें रोड़ा साबित हो सकते हैं. दरअसल, अल्पेश ओबीसी राजनीति का चेहरा हैं. वो ओबीसी कोटे में पाटीदारों की हिस्सेदारी का लगातार विरोध करते रहे हैं. इस वक्त कांग्रेस में हैं. हार्दिक भी कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन उनके आंदोलन में कांग्रेस किस तरह साथ आएगी, अल्पेश का पाटीदार आंदोलन को लेकर रुख क्या होगा और जिग्नेश गुजरात में दलितों के लिए कैसे बड़ा विकल्प पेश करेंगे? आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा. कहना नहीं होगा कि नतीजों के बाद इन्हें अपने समाज से ही कई तरह के दबाव का सामना करना पड़ेगा.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement