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गुजरात चुनाव: क्या राहुल के दांव पर खरे उतर पाएंगे मोढवाडिया?

पोरबंदर सीट से कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता अर्जुन मोढवाडिया पर एक बार फिर भरोसा दिखाया है.

चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी के साथ अर्जुन मोढवाडिया चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी के साथ अर्जुन मोढवाडिया
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

गुजरात में 1998 से लेकर 2012 तक हर बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस का पलड़ा उसके मुकाबले कमजोर रहा. नरेंद्र मोदी की एंट्री के बाद सूबे की राजनीति में भगवा परचम हर दिशा में उरूज पर आता चला गया. पार्टी इतनी मजबूत हो गई कि कांग्रेस को वापसी के आसपास भी आने का अवसर नहीं मिला. मगर, इस बार हालात जुदा हैं. नरेंद्र मोदी अब प्रधानमंत्री बन गए हैं. उनके सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार अमित शाह भी राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन गए हैं.

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गुजरात में बीजेपी की नीतियों का भी जमकर विरोध हो रहा है. पटेल, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समेत समाज के कई बड़े तबके सत्ताधारी दल के प्रति असंतुष्ट नजर आ रहे हैं. ऐसे में सियासी साहिल पर खड़ी कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति पर खासा जोर दिया है. 

चुनाव प्रचार से लेकर टिकट बंटवारे पर भी इसका असर नजर आया है. कांग्रेस ने प्रचार से लेकर उम्मीदवारों के चयन में भी आक्रामकता दिखाई है. बीजेपी के कद्दावर प्रत्याशी के रुतबे और कद को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अपने कैंडिडेट तय किए हैं.

इसकी बानगी जहां राजकोट पूर्व सीट पर देखने को मिली है. वहीं पोरबंदर में भी कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत फैसला लिया है. पोरबंदर सीट से कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता अर्जुन मोढवाडिया पर एक बार फिर भरोसा दिखाया है. बीजेपी की लिस्ट के बाद उम्मीदवारों के नाम तय करना भी कांग्रेस की इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रहा है.  

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पोरबंदर सीट का इतिहास

1995 में इस सीट पर बाबूभाई भीमाभाई बोखिरिया ने कांग्रेस के शशिकांत आनंदलाल को हराया था. इसके बाद 1998 में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार श्याल हीरालाल गगन को मात दी. हालांकि, 2002 का चुनाव उन्हें शिकस्त देकर गया. इस बार कांग्रेस ने अर्जुन मोढवाडिया को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने बाबूभाई को हरा दिया. 2007 में भी अर्जुन मोढवाडिया ने ही इस सीट से जीत दर्ज की. इसके बाद 2012 में बाबूभाई बोखिरिया ने कमबैक किया और वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. उन्होंने अर्जुन मोढवाडिया को करीब 17 हजार वोटों से शिकस्त दी.

बाबू बोखिरिया बीजेपी के ताकतवर मंत्री हैं , बावजूद इसके मोढवाडिया को कांग्रेस ने टिकट दिया है. हालांकि, वो पिछला चुनाव हार गए थे, लेकिन सियासी जानकार मानते हैं कि बाबू बोखिरिया को अर्जुन मोढवाडिया जैसे बड़े नेता ही हरा सकते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता के लिए कोई सुरक्षित सीट तलाशने के बजाय बाबू बोखिरिया के खिलाफ उतारकर यह चुनौती स्वीकार की है.

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