
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात चुनाव से पहले और अब एक अलग अंदाज में दिख रहे हैं. राहुल गांधी ने आक्रामक कैंपेन किया, बीजेपी को कड़ी टक्कर दी. लेकिन जिस तरह से राहुल गुजरात में हार के बाद भी प्यार से मोदी पर निशाना साध रहे हैं. इससे देखकर मन में सवाल उठने लगा कि क्या कांग्रेस बदल रही है या फिर पांचवीं पीढ़ी का अंदाज भर है.
सवाल एक और भी है कि क्या बीते साढ़े तीन बरस बाद मोदी का अंदाज एकरसता पैदा कर रहा है और अब जनता-मीडिया को राहुल का अंदाज अच्छा लगने लगा. लेकिन इससे होगा क्या, और कॉर्बन कॉपी को जनता क्यों चुनेगी. यानी कॉर्बन कॉपी ओरिजनल को टक्कर तो दे सकती है पर ओरजनिकल हो नहीं सकती. राहुल गांधी के सामने सबसे बडा संकट यही है कि मोदी विरोध का राहुल तरीका मोदी स्टाइल है.
नीतियों के विरोध का तरीका जनता के गुस्से को मोदी के खिलाफ भुनाने का है. करप्शन विरोध का तरीका जनविरोधी ठहराने की जगह जवाब मांगने का है. यानी राहुल की राजनीति के केन्द्र में नरेन्द्र मोदी ही हैं और कांग्रेस की राजनीति के केन्द्र में राहुल राज है, तो फिर जनता कहा है और जनता के सवाल कहां हैं.
राहुल गांधी को अपनी हार में जीत दिखना ही सही है, क्योंकि पहली बार गुजरात में कांग्रेस के अच्छे परफॉर्मेंस ने विपक्ष में जोश भर दिया है. नरेंद्र मोदी के खिलाफ अब कहीं ज़्यादा मजबूती से विपक्ष लड़ेगा. आगे राहुल गांधी गुजरात वाले अपने चुनावी मॉडल पर ही चल सकते हैं. विपक्ष की दूसरी पार्टियां भी राहुल गांधी को नेता मानने पर मजबूर हो सकती है.
लेकिन ये भी कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है. क्योंकि साख का सवाल राहुल गांधी पर भी गुजरात में अच्छे परफॉर्मेंस के बावजूद उठेगा. पिछले 5 सालों में राहुल गांधी के प्रमुख चेहरे के साथ कांग्रेस रिकॉर्ड तोड़ 27 चुनाव हारी है. इस ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर ही सवाल ये है अगर गुजरात की तिकड़ी का सहारा ना होता, तो क्या कांग्रेस को राहुल गांधी 80 के नंबर तक भी पहुंचा पाते.