
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृहराज्य गुजरात में बीजेपी के चुनाव प्रचार की कमान शनिवार से अपने हाथ में लेने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि मोदी गुजरात में 30 से ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे. अभी तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गुजरात में 33 जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलनों का आयोजन कर चुके हैं.
कार्यकर्ताओं को ‘फुल-एक्टिव मोड’ में लाने के बाद अब बीजेपी की रणनीति प्रधानमंत्री के गृह राज्य में ‘मोदी मैजिक’ को कैश करने की है. बीजेपी गुजरात चुनाव में एक तरफ हाईटेक प्रचार पर जोर दे रही है. वहीं जमीनी स्तर पर भी लोगों की नब्ज को लेकर लगातार फीडबैक ले रही है. बीजेपी ने गुजरात के सभी 182 विधानसभा क्षेत्रों में एक-एक कॉलसेंटर बनाया है.
बीजेपी इन कॉलसेंटर्स के जरिए अभी तक गुजरात में 1 करोड़, 80 लाख लोगों से संपर्क कर चुकी हैं. इस हाईटेक तकनीक से जहां बीजेपी चुनाव अभियान पर फीडबैक लेती है वहीं बीजेपी के पक्ष में वोट देने की अपील भी करती है. फीडबैक के आधार पर ही बीजेपी चुनावी रणऩीति की दिशा तय करती है.
बीजेपी की रणनीति के शाह खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह हैं. उनके चुनाव गेमप्लान में पन्ना प्रमुखों (पेज इंचार्ज) की भूमिका को बहुत अहमियत दी जाती है. पन्ना प्रमुख यानी वोटर्स लिस्ट के हर पेज के लिए पार्टी का अलग इंचार्ज. अमित शाह की रणनीति के तहत जितने भी चुनाव लड़े गए हैं, उनमें पन्ना प्रमुखों के कौशल का खासा आधार रहा. बता दें कि गुजरात की 182 सीटों के लिए राज्य में कुल 50,128 बूथ हैं. एक बूथ के लिए औसतन 18 पन्ना प्रमुख हैं. एक पन्ना प्रमुख पर कम से कम 60 और ज़्यादा से ज़्यादा 80 मतदाताओं की जिम्मेदारी है. उन्हें ये सुनिश्चित करना होता है कि उनके पन्ने का मतदाता पोलिंग बूथ तक आए और उसका वोट पार्टी उम्मीदवार को ही जाए. बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने 16 अक्टूबर को राज्य भर के पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन को संबोधित किया था.
इसके अलावा बीजेपी हर दिन ‘डोर टू डोर’ प्रचार पर भी बहुत जोर दे रही है. इस अभियान में 4 से 6 मंत्री हर दिन शामिल हो रहे हैं. जमीनी स्तर पर प्रचार के साथ सोशल मीडिया पर भी बीजेपी हर दिन नए कैम्पेन लेकर आ रही है. पहले चरण के मतदान के लिए अब 25 दिन का वक्त ही रह गया है. ऐसे में गुजरात अपने सियासी तरकश के हर तीर को दागना चाहती है.
गुजरात चुनाव प्रचार में जिस तरह कांग्रेस ने इस बार शुरू से हमलावर रुख अपना रखा है, उसे देखते हुए ये सही है कि बीजेपी को गुजरात के पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. यही वजह है कि बीजेपी के हर छोटे-बड़े नेता का रुख गुजरात की ओर है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात पर मोदी सरकार पर निशाना भी साध चुकी हैं कि आखिर एक राज्य के चुनाव के लिए क्यों पूरी केंद्रीय सरकारी मशीनरी को गुजरात भेजा जा रहा है.
जाहिर है गुजरात का चुनाव इस बार सिर्फ एक राज्य का सवाल नहीं बल्कि इससे देश की भावी राजनीति की दशा और दिशा तय होने का दारोमदार टिका है. वर्ष 2002 के बाद ये पहला मौका है जब गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी के चेहरा नहीं हैं. ऐसे में गृहराज्य में बीजेपी की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए खुद की साख का सवाल भी है.
हर एक की जुबां पर यही सवाल है कि गुजरात में इस बार सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा. क्या वही जनादेश आएगा जो बीते 22 साल से गुजरात के हर विधानसभा चुनाव में आता रहा है? यानी बीजेपी फिर लगातार छठी बार अपने इस गढ़ में कमल खिलाने में सफल रहेगी? या फिर कांग्रेस अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की लाइन और PODA (पाटीदार, ओबीसी, दलित, आदिवासी) के जाति कार्ड के दम पर इस बार बाजी पलटने में कामयाब रहेगी? ये जानने के लिए 18 दिसंबर का इंतजार करना होगा.