गुजरात में बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत भले ही घटा, लेकिन सूबे की सत्ता से कोई बेदखल नहीं कर सका. गुजरात में दो दशक से बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन 2014 में उनके पीएम बन जाने के बाद कोई बड़ा चेहरा पार्टी के पास नहीं है.
गुजरात तीन दशक से बीजेपी का अभेद्य दुर्ग बना हुआ है और पार्टी ने इस बार लक्ष्य 150 से ज्यादा सीटें जीतने का प्लान बना रखा है, जिसके लिए एक-एक बाद एक दांव चल रही है, लेकिन मोरबी पुल हादसे में 134 लोगों की मौत ने उसे बैकफुट पर ला दिया है.
चुनाव के ऐलान से पहले ही बीजेपी समान नागरिक संहिता पर कमिटी बनाने का दांव खेल चुकी है. इसके अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंग्लादेश से आए हुए हिंदू-सिख-ईसाई समुदाय के लोगों को दो जिले में नागरिकता देने का भी नोटिफिकेशन जारी कर दिया था.
गुजरात में बीजेपी पहली बार 1995 में सत्ता में आई, जिसके बाद से वह काबिज है. साल 1995 में बीजेपी को 121, साल 1998 में 117, साल 2002 में 127, साल 2007 में 116, साल 2012 में 115 और साल 2017 में 99 सीटें मिली थीं.
गुजरात में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस बार खामोशी के साथ चुनाव प्रचार कर रही है. पार्टी ने इन दिनों पांच यात्राएं निकालीं. जो कच्छ के भुज, सौराष्ट्र के सोमनाथ, उत्तरी गुजरात के वडगाम, मध्य गुजरात के बालासिनोर और दक्षिण गुजरात के जंबूसर से शुरू हुई हैं. इन यात्राओं के जरिए पार्टी 5,432 किलोमीटर की दूरी तय कर 175 विधानसभा सीटों को कवर किया गया.
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी के लिए जमकर पसीना बहाया और सीटों की संख्या में इजाफा किया. 2012 में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थीं तो 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 77 हो गया.
2017 के विधानसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला देखने को मिला था, लेकिन उस समय पार्टी के पास हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेताओं की तिकड़ी थी. युवा तिकड़ी के अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल अब बीजेपी के साथ हैं और जिग्नेश ही कांग्रेस के संग खड़े हैं.
कांग्रेस की 5 दिनी यात्री में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह शामिल की भी हिस्सेदारी दिखी. आजादी के बाद से लंबे समय तक कांग्रेस गुजरात की सत्ता पर काबिज रही, लेकिन पिछले 27 वर्षों से वह सत्ता का वनवास झेल रही है. कांग्रेस इस बार चुनाव में वापसी के लिए बेताब है. साल 2000 में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस सियासी तौर पर लगातार कमजोर होती चली गई है.
आम आदमी पार्टी ने गुजरात में पूरी ताकत झोंक रखी है और अरविंद केजरीवाल लगातार दौरे कर रहे हैं ताकि राज्य में कांग्रेस की जगह वो ले सके. इसके लिए तमाम लोकलुभाने वादे भी कर रहे हैं. केजरीवाल ने मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा जैसे चुनावी वादे किए हैं.
सूबे में आम आदमी पार्टी सियासी विकल्प बनने के लिए उतरी है. गुजरात की विधानसभा में मुश्किल से पांच-छह सीटों को छोड़कर बाकी सीटें भाजपा-कांग्रेस की झोली में जाती हैं, लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के चुनाव मैदान में उतरने के चलते मुकबला त्रिकोणीय हो सकता है.
इस बार कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी शहरी इलाकों सीटों पर बीजेपी को मजबूत टक्कर दे सकती है. आम आदमी पार्टी पंजाब में मिली बड़ी जीत के बाद लगातार गुजरात पर फोकस कर रही है और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का दावा करते हैं.
पंजाब के विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद से ही आम आदमी पार्टी आगामी चुनावों को लेकर बेहद उत्साहित है. इसलिए AAP ने अपनी पूरी ताकत गुजरात चुनाव में लगा दी है. सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर पंजाब के सीएम भगवंत मान तक यहां चुनाव प्रचार कर रहे हैं. इसके अलावा स्थानीय नेताओं की रैलियों में भी काफी भीड़ जुटती नजर आ रही है.