
एलिसब्रिज विधानसभा गुजरात की एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां 50 सालों से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है. 1995 के बाद से बीजेपी इस सीट पर कभी नहीं हारी और गुजरात में भाजपा की सबसे मजबूत पकड़ वाली सीट में से एक मानी जाती है.
राजनीतिक स्थिति
1 मई 1960 को गुजरात की स्थापना के बाद 1962 में गुजरात में विधानसभा के चुनाव हुए और पहली बार चुनाव में इंदुमती चिमनलाल जो कांग्रेस की उम्मीदवार थीं उन्होंने जीत हासिल की थी. 5 साल के बाद साल 1967 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार आरके पटेल ने कांग्रेस के उम्मीदवार को पटखनी देकर जीत हासिल की थी.
हालांकि साल 1972 में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में चली गई और कांग्रेस के हरिप्रसाद व्यास ने जीत दर्ज की. एलिसब्रिज विधानसभा सीट पर कांग्रेस की यह दूसरी और आखरी जीत थी क्योंकि सन 1972 की जीत के बाद कांग्रेस कभी भी इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई. उसके बाद 1975 से लेकर 1990 तक अलग-अलग दल के नेताओं ने यहां से जीत दर्ज की.
साल 1995 में भाजपा के युवा नेता हरेन पंड्या ने 35 साल की उम्र में पहली बार बीजेपी की टिकट पर इस सीट पर जीत दर्ज की जिसके बाद 1998 में भी हरेन पंड्या दूसरी बार यहां से चुनाव जीते और केशुभाई पटेल की सरकार में गृह मंत्री भी बने थे.
2002 में नरेंद्र मोदी की एंट्री के बाद हरेन पंड्या का राजनीतिक कद कम होने लगा क्योंकि हरेन पंड्या केशुभाई गुट के नेता थे और नरेंद्र मोदी की एंट्री के बाद हरेन पंड्या को लगा कि उन्हें 2002 में टिकट नहीं दिया जाएगा.
इसके बाद वो चुनावी मैदान में से हट गए लेकिन एलिसब्रिज विधानसभा सीट पर भाजपा की पकड़ कमजोर नहीं हुई. हरेन पंड्या के हट जाने के बाद भी भाजपा ने इस सीट पर अपनी पकड़ कायम रखी और पिछ्ली बार 2017 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो भाजपा ने 85000 से भी ज्यादा मतों के अंतर से यह सीट अपने नाम कर ली.
एलिसब्रिज विधानसभा सीट का गणित
एलिसब्रिज विधानसभा सीट अहमदाबाद जिले के शहरी इलाके में है और इस विधानसभा क्षेत्र में अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया ऐतिहासिक ब्रिज भी है जो साबरमती नदी पर बना हुआ है. इसी पुल के नाम पर विधानसभा क्षेत्र का नाम भी एलिसब्रिज रखा गया है. साथ ही इस इलाके में गुजरात की सबसे पुरानी कॉलेज यानी कि गुजरात कॉलेज भी है जिसकी स्थापना 1879 में की गई थी. इसके अलावा अंबालाल साराभाई, उनके पुत्र विक्रमभाई साराभाई ( देश के जाने माने वैज्ञानिक और ISRO के संस्थापक ) के लिए भी यह क्षेत्र जाना जाता है.
सामाजिक तानाबाना
भारत की राजनीति में चुनावों में सामाजिक समीकरण काफी महत्वपूर्ण होता है पर अहमदाबाद शहर की इस सीट पर जातिवाद की राजनीति हावी नहीं होती है क्योंकि यहां रहने वाले ज्यादातर लोग काफी आधुनिक संस्कृति में यकीन रखते हैं और चुनाव में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दों के आधार पर वोट देते हैं.
गुजरात में अक्सर चुनाव में हिंदू-मुस्लिम दंगों का जिक्र होता रहता है और यह विधानसभा क्षेत्र उन इलाकों में से है जो पहले हुए धार्मिक दंगों का गवाह रह चुका है. यही वजह है कि ज्यादातर लोग धार्मिक मुद्दों के आधार पर बीजेपी के साथ रहना ही पसंद करते हैं. चुनाव के दौरान रोजगार, रोटी, कपड़ा, विकास जैसे दूसरे मुद्दों से भी ऊपर धार्मिक मुद्दा इस क्षेत्र में काफी असर करता है.
इस सीट पर सोशल इंजीनियरिंग की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा बनिया (शाह), ब्राह्मन, पटेल और मुस्लिम मतदाता हैं. 1962 में विधानसभा की स्थापना से ही इस सीट पर सवर्ण जाति के उम्मीदवारों का दबदबा देखने को मिला है जो अभी भी जारी है.
एलिसब्रिज विधानसभा सीट पर पर कितने वोटर
यदि मतदाताओं की संख्या की बात की जाए तो साल 2017 के अनुसार इस विधानसभा में कुल 2,42,758 मतदाता है जिसमें 1,22,243 पुरुष मतदाता जबकी 120513 महिला मतदाता है. वहीं, 2 मतदाता अन्य कैटेगरी में शामिल है. हालांकि अब मतदाताओं की संख्या 2022में बढ़ चुकी है जिसका सटीक आंकड़ा अभी तक सार्वजनिक नही किया गया है.
2017 में इस सीट पर 64.66 % वोटिंग हुई थी जिसमें बीजेबी को भारी बहुमत के साथ जीत मिली थी. यहां इस बार भी भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है और इसे सबसे सेफ सीट माना जा रहा है.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
यदि विधायक के रिपोर्ट कार्ड की बात की जाए तो यहां 60 साल के राकेश शाह शांत मिजाज के विधायक माने जाते हैं. राकेश शाह पर कोई भी आपराधिक केस दर्ज नहीं है. उनकी संपत्ति की बात की जाए तो 2017 में उन्होंने जो चुनावी हलफनामा दाखिल किया था उसके मुताबिक उनकी संपत्ति एक करोड़ से ज्यादा है और उन्होंने 1982 में गुजरात कॉलेज से बीकॉम में ग्रेजुएशन किया है. राकेश शाह कारोबारी घराने से जुड़े हुए हैं.
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