
गुजरात के महिसागर जिले में विधानसभा की तीन सीटें हैं. जिसमें से एक लुणावाड़ा विधानसभा सीट भी है. लुणावाड़ा जिला मुख्यालय भी है और इसे लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं. यहां के संस्कृत पाठशाला में बड़े-बड़े विद्वान संस्कृत की पढ़ाई कर चुके हैं.
देश के संविधान का संस्कृत में रूपांतरण यहीं के विद्वान एम ए दवे ने किया है. आजादी के पहले लुणावाड़ा स्टेट था. गुजराती साहित्य की प्रथम नवल कथा "कृष्ण घेलो" स्टेट के दीवान नर्मदा शंकर मेहता ने लिखी थी.
लुणावाड़ा विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि
लुणावाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के विधायक प्रोफेसर हीराभाई पटेल ने 2007 और 2012 में जीत हासिल की थी. हालांकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं दिया गया और उनकी जगह कांग्रेस के कद्दावर नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दामाद परमदित्यजीत सिंह को उमीदवार बनाया गया था.
वो इस सीट से चुनाव हार गए थे. इस सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार मनोज पटेल की भी हार हुई थी और निर्दलीय ओबीसी जाति के उम्मीदवार रतन सिंह राठौड़ विजयी हुए थे.
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रतन सिंह राठौड़ ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें साल 2019 लोकसभा चुनाव में पंचमहाल सीट से उमीदवार बनाया था.
रतन सिंह राठौड़ के सांसद बनते ही लुणावाड़ा विधानसभा सीट पर 2019 में उपचुनाव हुआ और इसमें बीजेपी के ही जिग्नेश सेवक ने 11 हज़ार 952 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. जिग्नेश सेवक ने कांग्रेस के उम्मीदवार (बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल) गुलाब सिंह चौहान को हराया था.
लुणावाड़ा विधानसभा सीट पर वोटरों की संख्या
पुरूष मतदाता :- 145467
महिला मतदाता :- 138414
अन्य मतदाता :- 04
कुल मतदाता :- 283885
लुणावाड़ा विधायक :- जिग्नेश सेवक
जाति :- ब्राह्मण
पढ़ाई :- बीएससी एल एल बी
जन्म तारीख :- 10/11/1975
व्यवसाय :- खेती और बिजनस
जातीय समीकरण
लुणावाड़ा विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 2,83,885 मतदाता हैं जिनमें सबसे ज्यादा 34 फीसदी ओबीसी हैं और 20 फीसदी पाटीदार मतदाता है. सबसे ज्यादा ओबीसी मतदाता होने के बावजूद बीजेपी की तरफ से 2002 में विधायक रह चुके ओबीसी समाज के नेता कालूभाई मालीवाड़ 2007 में 84 वोट से और 2012 में 370 वोट से चुनाव हार चुके हैं.
2017 में कांग्रेस और बीजेपी को हराकर निर्दलीय ओबीसी उम्मीदवार रतनसिंह राठौड़ ने जीत दर्ज की थी. 2019 के उपचुनाव में गुलाब सिंह चौहान बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए थे और कांग्रेस ने 2019 के उपचुनाव में उन्हें उम्मीदवार भी बनाया था.
हालांकि ओबीसी जाति के होने के बाद भी वो चुनाव हार गए थे और सवर्ण जाति के जिग्नेश सेवक को जीत मिली थी. इस सीट पर जातिवाद का असर कम ही देखने को मिलता है.
ये भी पढ़ें: