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गुजरात की राजनीति में पाटीदार समुदाय की एक अलग अहमियत रही है. बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाने वाला ये पाटीदार समाज 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी से कुछ हद तक छिटक गया था. 150 सीटों का दावा करने वाली बीजेपी 99 सीटों पर सिमट गई थी. अब फिर गुजरात में चुनावी बिगुल बज चुका है. एक बार फिर पाटीदार समाज और उसके वोट पर सभी पार्टियों की नजर है. बीजेपी ने भी पुरानी गलतियों से सीखते हुए पाटीदार को साधने के लिए कई बड़े फैसले किए हैं. उसी में एक फैसला है भूपेंद्र पटेल का गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना.
कौन हैं भूपेंद्र पटेल
भूपेंद्र पटेल का राजनीतिक करियर स्थानीय राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहा है. सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा रखने वाले भूपेंद्र पटेल 2010 से 2015 तक गुजरात के सबसे बड़े शहरी निकाय अहमदाबाद नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष थे. वे साल 2017 में गांधी नगर की घटलोदिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे. आनंदी बेन पटेल की सीट से ही भूपेंद्र को ये मौका दिया गया था और उन्होंने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. माना जाता है कि आनंदी बेन पटेल के कहने पर ही भूपेंद्र पटेल को इस सीट से चुनाव लड़वाया गया था, जिसके बाद जीतकर विधायक बने और चार साल के बाद सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुए.
गुजरात में कडवा पटेल
पिछले साल सितंबर में बीजेपी हाईकमान ने बड़ा फैसला लेते हुए विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर भूपेंद्र पटेल को राज्य की सत्ता सौंप दी थी. 2017 में पहली बार विधायक बने थे, कभी कोई मंत्रालय नहीं संभाला था, कोई बड़े नेता वाली लोकप्रियता भी उनके साथ नहीं थी. इसके बावजूद पार्टी ने 2022 के चुनावी रण से पहले भूपेंद्र पटेल पर दांव चला. इस एक फैसले ने स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि बीजेपी किसी भी कीमत पर पाटीदारों को नाराज नहीं कर सकती है. ऐसे में उनको साथ जोड़े रखने के लिए एक पाटीदार चेहरे को आगे किया गया.
गुजरात में 182 में 71 सीटों पर पाटीदार निर्णायक भूमिका निभाते हैं. वहां भी 52 सीटों पर उनकी आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा रहती है. दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र में तो हार-जीत का अंतर भी ये पाटीदार समाज ही तय कर जाता है. 2017 के चुनाव में पटेल बहुल सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में बीजेपी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था. उसके खाते में 54 में से सिर्फ 23 सीटें गई थीं. माना गया था कि पाटीदार आंदोलन की वजह से बीजेपी को ये सियासी नुकसान पहुंचा था.
नितिन से ज्यादा भूपेंद्र पर भरोसा क्यों?
गुजरात में पाटीदार समुदाय लेउवा पटेल और कडवा पटेल उपजातियों में बंटा हुआ है. गुजरात में 70 फीसदी लेउवा पटेल हैं, वहीं 30 फीसदी कडवा पटेल. भूपेंद्र पटेल कडवा पटेल से आते हैं, ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने नाराज चल रहे उस 30 प्रतिशत कडवा पटेल को अपने पाले में करने की कोशिश की है. हालांकि, नितिन पटेल को भी कडवा पटेल का बड़ा नेता माना जाता है. रुपाणी के इस्तीफे के बाद उन्हें भी सीएम पद के लिए दावेदार माना जा रहा था, लेकिन सीएम कुर्सी भूपेंद्र पटेल को मिली.
भूपेंद्र पटेल की उनकी जमीनी नेता वाली छवि है और पटेल समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास को समर्पित संगठन सरदारधाम विश्व पाटीदार केंद्र के ट्रस्टी भी हैं. यह संस्था राज्य के कडवा पटेलों के बीच शक्ति का केंद्र माना जाता है. भूपेंद्र पटेल का ये कनेक्शन बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है. इस सब के ऊपर पाटीदार आरक्षण आंदोलन का चेहरा रहे हार्दिक पटेल अब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ चुके हैं.
गुजरात में आम आदमी पार्टी की नजर भी पाटीदार वोटों पर है, जिसके चलते पार्टी की कमान गोपाल इटालिया को दे रखी है, जो पाटीदार समुदाय से आते हैं. पिछले साल सूरत के नगरपालिका चुनाव में आम आदमी पार्टी के खाते में 27 सीटें गई थीं. ऐसे में बीजेपी के लिए एक नई चुनौती आम आदमी पार्टी बन रही है. बीजेपी को उम्मीद है कि केडवा पटेल मुख्यमंत्री के रूप में भूपेंद्र आप की उस चुनौती को जमीन पर कमजोर करने का काम कर सकते हैं.
पीएम मोदी के भरोसेमंद सिपाही भूपेंद्र पटेल
भूपेंद्र पटेल का पाटीदार बैकग्राउंड तो सियासी रूप से मायने रखता ही है. इसके अलावा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी भरोसेमंद माना जाता है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भूपेंद्र पटेल अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन की भूमिका थे. ऐसे में नरेंद्र मोदी और भूपेंद्र पटेल के बीच में बेहतरीन तालमेल देखने को मिला था. सोमवार को वलसाड में हुई चुनौवी रैली में पीएम मोदी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि नरेंद्र के लिए भूपेंद्र को बड़े अंतर से जिताना है, मेरा रिकॉर्ड तोड़ने में मेरी मदद करें.
कैसा रहा भूपेंद्र पटेल का कार्यकाल?
भूपेंद्र पटेल का मुख्यमंत्री रहते हुए जिस तरह का परफॉर्मेंस रहा है, उसे देखते हुए भी बीजेपी को उम्मीद है कि गुजरात चुनाव में उसे बड़ी जीत मिलेगी. वहीं, विजय रुपाणी के मुख्यमंत्री रहते वक्त कुछ मुद्दों पर विवाद देखने को मिला था. एक तरफ कोविड मिसमैनेजमेंट ने गुजरात सरकार की कोर्ट में फजीहत करवाई थी. दूसरी तरफ बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील और विजय रुपाणी के बीच में कई मौकों पर तकरार देखने को मिली थी. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले आपसी मतभेद ना रहे और बेहतर समन्वय हो सके, इसलिए भूपेंद्र पटेल पर दांव चला गया है. इसके अलावा जातीय समीकरणों के लिहाज से भी भूपेंद्र पटेल बीजेपी के लिए चुनावी मौसम में ज्यादा मुफीद हैं. विजय रुपाणी जैन समुदाय से आते हैं, जिसकी आबादी ज्यादा नहीं है जबकि पाटीदार काफी अहम है. इन्हीं कारणों के चलते भूपेंद्र पटेल को सीएम कुर्सी सौंपी गई, लेकिन अब 2022 में उनकी असल परीक्षा है.