Advertisement

गुजरात में कांग्रेस की हार के कई कारण, राहुल गांधी के लिए भी बड़ा सियासी संदेश

गुजरात में कांग्रेस की बड़ी हार हुई है. जितनी अप्रत्याशित बीजेपी की जीत है, उतनी ही अप्रत्याशित कांग्रेस की हार भी मानी जाएगी. पार्टी के इस खराब प्रदर्शन के कई कारण माने जा रहे हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी (पीटीआई) कांग्रेस नेता राहुल गांधी (पीटीआई)
रशीद किदवई
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:52 PM IST

गुजरात चुनाव में जनता का जनादेश स्पष्ट है. 27 साल बाद एक बार फिर खुले दिल से बीजेपी को स्वीकार किया गया है. सिर्फ स्वीकार नहीं किया गया है, बल्कि 150 से भी ज्यादा सीटों वाला एक ऐसा बहुमत दिया है जो आज से पहले गुजरात में किसी पार्टी को नहीं मिला. अब बीजेपी के तो इस शानदार प्रदर्शन के कई कारण दिखाई पड़ते हैं, लेकिन कांग्रेस ने जो गुजरात में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है, उसकी समीक्षा होना भी जरूरी है.

Advertisement

कांग्रेस के हार के कई कारण

अगर ध्यान से देखा जाए तो इस बार के गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने एक तय रणनीति के तहत अपना प्रचार किया था. हाईकमान के बड़े नेताओं के बजाय लोकल लीडरशिप को आगे किया गया. लेकिन जो नतीजे आ रहे हैं, वो साफ दिखाते हैं कि कांग्रेस के साथ बड़ा खेल हो गया है. उसकी ये रणनीति सिर्फ फेल नहीं हुई है, बल्कि पूरी तरह खारिज कर दी गई है. असल में कांग्रेस ने गुजरात में जिन भी नेताओं को आगे किया, उनमें अनुभव की कमी थी, उनका गुजरात में कोई खास जनाधार नहीं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि कांग्रेस के गुजरात में सात कार्यकारी अध्यक्ष थे, वहां भी कई को तो इसी साल जुलाई में नियुक्त किया गया. ललित कगाथारा को ले लीजिए, पहली बार के विधायक हैं, इसी तरह राजुला के विधायक अंब्रीश दर, चोटिला के विधायक रुतविक मकवाना को भी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई. वहीं बड़े नेताओं में भी मध्य प्रदेश के कमल नाथ, राजस्थान से अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ से भूपेश बघेल को ज्यादा प्रमुखता दी गई. 

Advertisement

कुछ और नामों में शक्ति सिंह गोविल को भी शामिल किया जा सकता है. उनके अलावा भरत सोलंकनी, सिद्धार्थ पटेल, अर्जुन मोधवाडिया जैसे नेताओं की गुजरात में एक पैठ जरूर है, लेकिन क्योंकि एक टीम की तरह काम नहीं किया गया, ऐसे में जमीन पर पार्टी को उनकी लोकप्रियता का भी कोई फायदा नहीं मिला. एक और बड़ा अंतर जो कांग्रेस के इस बार के प्रचार में रहा वो हार्दिक पटिल और अल्पेश ठाकुर जैसे युवा नेताओं का साथ ना होना. 2017 में बीजेपी के खिलाफ जमीन पर कई मुद्दे अगर जोर पकड़ पाए थे, तो उसका बड़ा कारण हार्दिक और अल्पेश का जोरदार प्रचार था. लेकिन इस बार वो युवा जोश मिसिंग था और नतीजों में भी वो झलक रहा है.

आप से हाथ मिलाते तो स्थिति अलग?

गुजरात में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण आम आदमी पार्टी भी माना जा सकता है. कई सालों बाद राज्य में आप की तरफ से मुकाबले को त्रिकोणीय कर दिया गया था. नतीजों से पता चलता है कि उसका प्रदर्शन तो कुछ खास नहीं रहा, लेकिन उसने इतना जरूर कर दिया कि कांग्रेस और ज्यादा कमजोर हो गई. वोट शेयर के नजरिए से देखें तो अगर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से हाथ मिलाती या किसी तरह की कोई अंडरस्टैंडिंग बनती, उस स्थिति में बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी हो सकती थी. लेकिन अगर आप से भी हाथ मिलाने वाली स्थिति नहीं थी, तब एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मदद ली जा सकती थी.

Advertisement

दूसरे राज्यों से अगर सबक लिया जाता तो विपक्षी एकजुटता वाली बात को कांग्रेस याद रख सकती थी. गोवा में अगर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस साथ आते तो आसानी से बीजेपी को सरकार बनाने से रोका जा सकता था. लेकिन क्योंकि हर पार्टी को सिर्फ अपनी राजनीति करनी थी, अपने विस्तार से मतलब था, उस वजह से गोवा में बीजेपी की राह आसान हो गई. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भी कई राज्यों में चुनाव होने हैं, लेकिन उस तरह की विपक्षी एकजुटता दिखेगी, मुश्किल लगता है.

राहुल गांधी के लिए क्या संदेश?

वैसे कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर तो तेज किया है. राहुल गांधी जिस तरह से राज्य दर राज्य आगे बढ़ रहे हैं, जनता से संवाद स्थापित कर रहे हैं, वो सभी की नजर में जरूर आ रहा है. लेकिन नजर में आना और चुनाव के समय उस यात्रा से फायदा होना दो अलग बाते हैं. अगर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस को चुनाव नहीं जिता सकती है, उस स्थिति में इसका चलने का कोई मतलब नहीं. वहीं एक गैर गांधी अध्यक्ष का होना भी पार्टी के लिए कोई कमाल नहीं कर सकता, जब तक ये स्पष्ट नहीं हो जाए कि पार्टी में राहुल गांधी की क्या भूमिका रहने वाली है, वे खुद को किस रूप में काम करते हुए देखना चाहते हैं. बिना जिम्मेदारी लिए सिर्फ कुछ बड़े फैसले लेने से पार्टी की आगे की राह आसान नहीं बन सकती है.

Advertisement

आठ दिसंबर की तारीफ में कांग्रेस के लिए सिर्फ एक शुभ संकेत है. वो संकेत उस हिमाचल प्रदेश से आया है जहां पर रिवाज कायम रहा है और सत्ता परिवर्तन देखने को मिल गया है. उस राज्य में प्रियंका गांधी की माइक्रो मैनेजमेंट ने जमीन पर असर दिखाया है. वहां पर क्योंकि मोदी बनाम राहुल वाले नेरेटिव को भी ज्यादा हवा नहीं दी गई, उसका फायदा भी कांग्रेस को होता दिख गया है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement