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Gujarat Election 2022: सूरत की पूर्वी विधानसभा सीट पर क्या बीजेपी इस बार लगा पाएगी जीत की हैट्रिक

सूरत के पूर्वी विधानसभा सीट पर बीते दो चुनाव से बीजेपी को जीत मिल रही है, ऐसे में जहां सत्ताधारी पार्टी के लिए यहां जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती है वहीं कांग्रेस इस सीट पर एक बार फिर से वापसी की कोशिश में जुटी हुई है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
संजय सिंह राठौर
  • सूरत,
  • 17 जून 2022,
  • अपडेटेड 11:50 PM IST
  • सूरत पूर्वी विधानसभा सीट पर बीजेपी को मिली है लगातार दो बार जीत
  • कांग्रेस के लिए फिर से इस सीट को पाने की चुनौती

गुजरात में आने वाले चंद महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसकी तैयारी में सभी पार्टियां जुट गई हैं. ऐसे में आज हम आपको सूरत शहर की पूर्वी विधानसभा सीट के राजनीतिक गणित के बारे में बताएंगे.  भाजपा के क़द्दावर नेता अरविंद भाई राणा वर्तमान में इस सीट से विधायक है. 

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में अरविंद भाई राणा ने कांग्रेस के नितिन भाई भरुचा को 13,347 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी. इस विधानसभा क्षेत्र से अरविंद भाई राणा से पूर्व रणजीत भाई गिलिटवाला विधायक रहे और गुजरात सरकार में मंत्री भी बने थे.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

सूरत के पूर्व विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो यहां का मतदाता बीजेपी समर्थक ही रहा है. यही वजह है कि 2012 और 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को यही यहां जीत हासिल हुई है.

2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रणजीत भाई गिलिटवाला विधायक बने थे. उन्हें गुजरात सरकार के मंत्रिमंडल में भी जगह मिली थी. रणजीत भाई गिलिटवाला ने कांग्रेस के कदीर भाई पीरजादा को 15,789 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी. यह विधानसभा क्षेत्र मूलतः सूरत के बाशिंदों की मानी जाती है.

सूरत के पूर्वी विधानसभा क्षेत्र का परिचय 

सूरत लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सूरत की पूर्व विधानसभा सीट शहर की चार विधानसभा सीटों में से एक है. साल 2008 से पहले सूरत शहर में मुख्य रूप से  विधानसभा सीट हुआ करती थी जिसमें सूरत पूर्व, सूरत पश्चिम, सूरत उत्तर और चौर्यासी विधानसभा सीट शामिल था.

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महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात बनने के बाद 1962 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस के ईश्वरलाल देसाई चुनाव जीते थे. उसके बाद लगातार यह सीट कांग्रेस की झोली में रही थी. साल 1975 में  काशीराम भाई राणा भारतीय जनसंघ की टिकट से विधायक का चुनाव जीते थे. 

1980 के विधानसभा चुनाव में काशीराम भाई को हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस के जसवंत चौहान ने जीत दर्ज की थी. 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मदनलाल कापड़िया ने जीत दर्ज की थी. 

इस विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की यह पहली जीत थी. साल 2002 में फिर से कांग्रेस के मनीष भाई गिलिटवाला ने इस सीट से जीत हासिल की थी लेकिन 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रणजीत भाई गिलिटवाला दो बार यहां से विधायक बने थे. उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में अरविंद भाई राणा यहां से विधायक बने थे.

सामाजिक ताना-बाना और चुनावी मुद्दा

सूरत की पूर्वी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा मतदाता मुस्लिम समाज से आते हैं जबकि हिंदुओं में राणा समाज के सबसे ज्यादा मतदाता है. पूरे पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में 77 हजार 365 मुस्लिम मतदाता है जबकि हिंदुओं में राणा समाज से 35 हज़ार 427, खत्री समाज से 14 हज़ार 286, घांची समाज से 6 हज़ार 259, ब्राह्मण समाज के हज़ार लोग मुख्य रूप से मतदाता हैं.

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सूरत पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के समस्या की बात करें तो संकरी रास्ते और संकरी गलियां है.  ट्रैफिक जाम की  समस्या इस क्षेत्र में हमेशा बनी रहती है लेकिन जिस तरह से सूरत के बाहरी इलाकों में विकास कार्य हुआ है वैसा काम इस क्षेत्र के आंतरिक हिस्सों में नहीं हुआ है. साफ सफाई के मामले में भी क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है. कुल मिलाकर यहां स्वच्छ पानी, बिजली, गटर और रास्ते मुख्य चुनावी मुद्दे हैं.

सूरत महानगर पालिका द्वारा विधानसभा क्षेत्र में सभी प्रकार की जन सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा चुकी है लेकिन फिर भी विपक्षी पार्टियां अपने हिसाब से चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ेंने की तैयारी में जुटी हुई है..

मतदाताओं की सूची

सूरत पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में कुल वोटरी की संख्या 2 लाख 15 हजार 722 है. इनमें से 1 लाख 9 हजार 250 पुरुष मतदाता हैं जबकि 1 लाख 6 हजार 459 महिलाएं है. अन्य 13 मतदाताओं को मिलाकर 2 लाख 15 हजार 722 मतदाता हैं.

विधायक का परिचय

नाम : अरविंद भाई शांतिलाल राणा
जन्म : 28.09.1961
शिक्षा  : 12वीं पास
संपत्ति : 2 करोड़ 66 लाख
व्यापार : प्रिंटिंग प्रेस
केस : 0

2022 की चुनावी स्थिति

सूरत के 12 विधानसभा सीटों में से सिर्फ़ सूरत पूर्वी विधानसभा सीट ही ऐसी है जहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने की वजह से कांग्रेस के जीतने के चांस ज्यादा रहते हैं. हालांति कांग्रेस के पक्ष में निर्णायक परिणाम नहीं आ पाते हैं. 

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