Advertisement

गधा और कुत्ता नहीं, हिमाचल चुनाव में बंदर बना मुद्दा

चुनाव वाले राज्यों में पशुओं की कुछ ज्यादा ही पूछ हो जाती है. गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट की वजह से उनका कुत्ता ‘पीडी’ सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. ऐसा ही कुछ इसी साल के शुरू में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखा गया था.

प्रतिकात्मक तस्वीर प्रतिकात्मक तस्वीर
सतेंदर चौहान
  • शि‍मला,
  • 31 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 5:52 PM IST

चुनाव वाले राज्यों में पशुओं की कुछ ज्यादा ही पूछ हो जाती है. गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट की वजह से उनका कुत्ता ‘पीडी’ सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. ऐसा ही कुछ इसी साल के शुरू में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखा गया था.

तब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने बयान के जरिए चुनावी जंग में ‘गधा’ उतार दिया था. हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को मतदान होना है. इस पर्वतीय राज्य में भी एक ‘पशु’ मुद्दा बना हुआ है और वो है ‘बंदर’. सही कहा जाए तो ‘बंदरों का आतंक’ भी हिमाचल में बड़ा चुनावी मुद्दा है.    

Advertisement

हिमाचल में बंदर को मुद्दा किसी नेता ने नहीं बनाया है. बल्कि यहां के लोग बंदरों के आंतक से इस कदर परेशान है कि वो चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बंदरों से निजात दिलाने का वादा सबसे पहले ले रहे हैं. यानी हिमाचल में महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसा ही अहम बन गया है बंदरों का मुद्दा. बागबान-किसान तो इसलिए परेशान हैं कि बंदर उनकी फसलों-बागीचों को नष्ट कर जाते हैं.

कहानी यही नहीं खत्म होती, बंदर शिमला और राज्य के अन्य पर्यटन स्थलों पर भी जम कर उत्पात मचाते हैं. देश-विदेश से आने वाले सैलानी भी इन बंदरों से बहुत खौफ खाते हैं. पलक झपकते ही ये बंदर खाने का सामान झटक कर ले जाते हैं. विरोध किए जाने पर ये बंदर हमला करने से भी नहीं चूकते. राज्य में अनेक लोग बंदरों के हमलों में घायल हो चुके हैं. कुछ लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं.   

Advertisement

पांच साल से हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है. इससे पहले पांच साल बीजेपी का राज्य में राज था. लेकिन बंदरों की समस्या से ना तो बीजेपी और ना ही कांग्रेस पार पा पाई. शासन-प्रशासन के लिए बंदर लगातार बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं. हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार ने बंदरों को लोगों से दूर रखने के लिए पारंपरिक टोटकों के साथ आधुनिक तकनीक को भी आजमाया लेकिन बंदरों के आगे एक नहीं चली.   

बीते साल अप्रैल में शिमला में बंदरों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए हिमाचल प्रदेश वन्य प्राणी विभाग ने आधुनिक जुगाड़ ढूंढा. इसके लिए शिमला में BSNL बिल्डिंग पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत Ultrasonic Monkey Repellent Sound Device को लगाया गया. सोचा तो यही गया था कि इस डिवाइस से बंदर वहां से कई किलोमीटर दूर भाग जाएंगे. लेकिन बंदरों के आगे ये डिवाइस भी कुछ खास नतीजा नहीं दे  पाई. उधर, हिमाचल के देहाती इलाकों में रहने वाले लोगों की मांग थी कि अगर ये डिवाइस बंदरों को भगाने में कारगर रहती है तो किसानों को भी इसे मुहैया कराया जाए.

मुख्य संरक्षक वन (वन्य जीव) पी एल चौहान भी बंदरों की समस्या को जटिल मानते हैं. वहीं, बीजेपी नेता और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर भी हिमाचल चुनाव के तीन मुख्य मुद्दों में एक मुद्दा ‘बंदरों के आतंक’ को भी मानते हैं. ठाकुर हिमाचल चुनाव में कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए तीन बड़े मुद्दों में ‘भ्रष्टाचार’, ‘विकास के बदले विनाश’ और ‘बंदरों का आतंक’ गिनाते हैं.   

Advertisement

हिमाचल में हर साल करीब 70 फीसदी ग्रामीण इलाकों में बंदर करोड़ों रुपए की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. शिमला जैसे शहरों में बंदरों के आतंक की वजह से बच्चों ने खुले में खेलना बंद कर दिया है. अकेले शिमला शहर में ही डेढ़ हजार से अधिक बंदरों ने उत्पात मचा रखा है. पूरे हिमाचल की बात की जाए तो राज्य में 4 लाख से अधिक बंदर हैं.  

ज्यादा समय नहीं हुआ जब बंदरों के आतंक का मुद्दा हिमाचल प्रदेश विधानसभा में जोरशोर से गूंजा था. हिमाचल प्रदेश वन्य प्राणी विभाग ने आतंक का पर्याय बन चुके बंदरों को मारने के लिए बंदरों को वर्मिन (हानिकारक हिंसक पशु) घोषित करने की मांग की थी. केंद्र ने बंदरों को वर्मिन घोषित करते हुए उन्हें मारने की अनुमति दी है. इसके लिए अधिसूचना भी जारी कर दी है. लेकिन शुरू में शिमला नगर निगम के अधीन आने वाले इलाकों में ही उत्पाती बंदरों को मारा जा सकता है. अब इन इलाकों में कोई भी बिना वन्य प्राणी विभाग की इजाजत लिए बंदरों को मार सकता है. बंदरों को सिर्फ 6 महीने के लिए ही वर्मिन घोषित किया गया है.

बहरहाल, जो भी हो ‘बंदर’ ने हिमाचल के सियासी संग्राम में ‘गदर’ मचा रखा है.

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement