
हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. सूबे की 68 विधानसभा सीटों के लिए 324 उम्मीदवार मैदान में हैं. नामांकन वापसी के बाद कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां 'अपनों' से ही घिर गई है. इस बार के चुनावी मैदान में जिन्हें टिकट नहीं मिला है, उन्होंने निर्दलीय ताल ठोक दी है. इस तरह से हिमाचल की हर तीसरी सीट पर बागी कैंडिडेट सिरदर्द बन गए हैं.
बीजेपी के 21 नेताओं ने टिकट न मिलने से बगावती तेवर अपना लिया है और निर्दलीय चुनावी मैदान में है. ऐसे ही कांग्रेस के छह नेता निर्दलीय उतरे हैं. कांग्रेस के 11 नेताओं ने बागी रुख अख्तियार कर रखा था, जिनमें से पांच को मनाने में पार्टी सफल रही. बीजेपी को बगावत का सामना सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है. बीजेपी से टिकट नहीं मिलने से चलते बागी हुए चार पूर्व विधायकों समेत बीजेपी ने 5 नेताओं को पार्टी से छह साल के लिए सस्पेंड कर दिया है. कांग्रेस ने भी अपने पांच बागी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में पिछले साढ़े तीन दशकों से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. यह ऐसा राज्य है, जहां पर जीत और हार के बीच का अंतर अक्सर कुछ वोटों का होता है. यही वजह है कि बीजेपी के लिए बागी सबसे बड़ी चिंता का सबब बन गए हैं. कांग्रेस और बीजेपी ने पहले अपने-अपने बागी नेताओं को साधने के लिए समझाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी तो एक्शन लेना शुरू कर दिया है.
कांग्रेस के इन नेताओं ने दिखाया बागी तेवर
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से छह बागी नेता चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं. कांग्रेस से बगावत कर पच्छाद सीट से निर्दलीय विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गंगूराम मुसाफिर चुनाव लड़ रहे हैं. सुलह से पूर्व विधायक जगजीवन पाल, चौपाल से पूर्व विधायक सुभाष मंगलेट, ठियोग से विजय पाल खाची, आनी से परस राम और जयसिंहपुर से सुशील कौल निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं. ऐसे में कांग्रेस ने अपने दोनों पूर्व विधायकों समेत सभी छह बागी नेताओं को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा सिरदर्द बने बागी
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता उसके ही नेता बन गए हैं. हिमाचल प्रदेश की 21 सीटों पर बीजेपी नेता निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोंक रखी है. नाचन सीट से ज्ञान चंद, धर्मशाला से विपिन नैहरिया, अनिल चौधरी, कांगड़ा से कुलभाष चौधरी, मनाली से महेंद्र ठाकुर, बड़सर से संजीव शर्मा, हमीरपुर से नरेश दर्जी, भोरंज से पवन कुमार, रोहडू़ से राजेंद्र धीरटा और चंबा से इंदिरा कपूर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
बंजार से पूर्व सांसद महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर, आनी से विधायक किशोरी लाल सागर, देहरा से विधायक होशियार सिंह, नालागढ़ से पूर्व विधायक केएल ठाकुर, इंदौरा से पूर्व विधायक मनोहर धीमान, किन्नौर से तेजवंत नेगी, फतेहपुर से कृपाल परमार, सुंदरनगर से रूप सिंह ठाकुर के बेटे अभिषेक ठाकुर, बिलासपुर से सुभाष शर्मा, मंडी से प्रवीण शर्मा और कुल्लू से राम सिंह निर्दलीय चुनावी मैदान में है.
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और सीएम जयराम ठाकुर तक ने बागी नेताओं को मनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके. ऐसे में बीजेपी ने अपने बागी नेताओं पर एक्शन लेकर कड़ा संदेश देने की कवायद की है, लेकिन यह दांव पार्टी के लिए उलटा भी पड़ सकता है.
कम अंतर वाली सीटों पर बिगड़ न जाए खेल
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में जीत और हार का अंतर बहुत कम रहता है. पिछले विधानसभा चुनाव में करीब डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी है, जहां पर जीत हार का अंतर 120 वोटों से 2000 के बीच रहा है. कम अंतर वाली 8 सीटें बीजेपी और 9 सीटें कांग्रेस के पास है. सीपीएम के एकमात्र एक विधायक राकेश सिंघा की जीत का मार्जिन 2000 वोट से कम था. ऐसे में अगर कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने बागी नेताओं को वोटिंग से पहले तक समझाने में सफल नहीं रहती तो चिंता खड़ी कर सकी. बागी नेता अगर 1000 और 2000 हजार वोट हासिल करने में किसी तरह कामयाब रहते हैं तो वो अपनी पार्टी के जीत की राह में रोड़ा बन सकते हैं. इसीलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां अपने-अपने बागी नेताओं को मनाने में जुटी हैं?