
हिमाचल प्रदेश की सियासी जमीन पर ट्रेंड रहा है कि यहां हर पांच साल में सत्ता बदल जाती है. साढ़े तीन दशक से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है. पांच साल पहले बीजेपी ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका था. अब एक बार फिर से कांग्रेस कमबैक करती नजर आ रही है. एग्जिट पोल के मुताबिक कांटे की टक्कर में बीजेपी सरकार गंवाती तो कांग्रेस सत्ता में वापसी करती हुई दिख रही है. इसके बावजूद कांग्रेस के लिए चिंता कम नहीं है.
इंडिया टुडे- एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक कांग्रेस 44 फीसदी वोटों के साथ 30 से 40 सीटें मिलती दिख रही हैं. बीजेपी 42 फीसदी वोटों के साथ 24-34 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं, अन्य को 4-8 सीटें मिलती दिख रही हैं तो आम आदमी पार्टी का खाता खुलता नहीं दिख रहा है. एग्जिट पोल के आंकड़े अगर नतीजे में तब्दली होते हैं तो कांग्रेस भले ही प्रदेश में सरकार बनाती दिख रही हो, लेकिन उसके लिए आम आदमी पार्टी देश के बाकी राज्यों में सियासी चुनौती खड़ी करती जा रही है. ऐसे में कांग्रेस को हिमाचल की जीत की खुशी से ज्यादा एमसीडी में केजीरावाल का आना और गुजरात में AAP का तीसरी ताकत बनना चिंता का सबब बन गया है.
कांग्रेस का विकल्प बनती AAP
कांग्रेस भले ही हिमाचल की सत्ता में लौट रही हो, उसको यह जीत अपनी मेहनत के बदौलत नहीं मिल रही है. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का जो ट्रेंड रहा है, यह जीत उसी का नतीजा होगी. गुजरात विधानसभा और दिल्ली एमसीडी चुनाव में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है. कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह है कि उसकी राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे आम आदमी पार्टी कब्जाती जा रही है. देश में एक के बाद एक राज्य में कांग्रेस का सियासी जमीन पर आम आदमी पार्टी झाड़ू फेरती जा रही है.
बीजेपी के सामने कांग्रेस का विकल्प आम आदमी पार्टी बन रही है. दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है तो गुजरात में शिकस्त खानी पड़ रही है. दिल्ली में कांग्रेस के वोटबैंक को AAP अपने नाम करती जा रही है. दिल्ली में बीजेपी का अपना 35 फीसदी वोट उसके साथ है, लेकिन कांग्रेस का वोट AAP में पूरी तरह से शिफ्ट हो गया है. एग्जिट पोल के मुताबिक दिल्ली एमसीडी में AAP को 149-171 से सीटें तो बीजेपी को 69-91 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि कांग्रेस के खाते में महज 03 से 07 सीटें आ सकती हैं, जबकि अन्य के खाते में 05 से 09 सीटें जा सकती हैं. 2017 में कांग्रेस को 30 सीटें मिली थी.
आम आदमी पार्टी के बनने से पहले तक दिल्ली का सियासी संग्राम बीजेपी और कांग्रेस के बीच सिमटा हुआ था, लेकिन अब सियासी हालात बदल गए हैं. 2013 में आदमी पार्टी बनी और दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस विदा हो गई. इसके बाद से लगातार कांग्रेस का सियासी आधार सिमटता जा रहा है और अब यह दस फीसदी वोटों के करीब पहुंच गया गया है. दिल्ली में एक अंक में उसके पार्षद बन रहे हैं और दो विधानसभा चुनाव से एक भी विधायक नहीं जीत रहा है.
गुजरात में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का वोट खाकर अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराने में सफल होती दिख रही है. आप को गुजरात में 20 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है जबकि कांग्रेस को 26 फीसदी. इस तरह से गुजरात में हर पांचवां वोट केजरीवाल की पार्टी को मिला है. गुजरात में आम आदमी पार्टी तीसरी ताकत के तौर पर उभरती नजर आ रही है, जो कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है. इसकी वजह यह है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी को जो करीब 20 फीसदी के करीब वोट मिल रहा है, उसमें 16 फीसदी कांग्रेस और 4 फीसदी बीजेपी का है.
कांग्रेस का खिसकता कोर वोटबैंक
गुजरात में एग्जिट पोल के मुताबिक, आप को 20 फीसदी वोट शेयर मिले हैं. आंकड़ों के मुताबिक, एससी, एसटी, ओबीसी, ठाकोर, कोली, सवर्ण और मुसलमान सभी जातियों के वोटों में पार्टी ने सेंधमारी की है. इस तरह से कांग्रेस के कोर वोटबैंक में आम आदमी पार्टी ने जगह बनाया है. एससी, एसटी और मुस्लिम समुदाय के 30-30 फीसदी के करीब वोट मिल रहे हैं जबकि कोली, ओबीसी और ठाकोर समुदाय के वोट भी 14 से 19 फीसदी के करीब मिल रहे हैं.
दलित, आदिवासी, मुस्लिम और ओबीसी के वोट आम आदमी पार्टी को मिलना कांग्रेस के लिए चिंता पैदा करने वाला है, क्योंकि गुजरात में कांग्रेस का यह कोर वोटबैंक माने जाते हैं. इससे एक बात साफ है कि गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बनकर आम आदमी पार्टी उभरी है.
गुजरात विधानसभा चुनाव में ट्रांइगल फाइट होने का फायदा बीजेपी को मिला है, क्योंकि सत्ता विरोधी वोट एक जगह जाने के बजाय आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच बट गया. दिल्ली एमसीडी चुनाव में बीजेपी और AAP की सीधी लड़ाई में कांग्रेस का वोटर भी केजरीवाल खेमे में शिफ्ट हो गया. इस तरह से एक के बाद एक राज्य में कांग्रेस की सियासी जमीन पर आम आदमी पार्टी अपने राजनीतिक फसल उगाती जा रही है. पंजाब में भी इसी तर्ज पर आम आदमी पार्टी ने अपनी जगह बनाई थी और अब सत्ता पर काबिज है.
कांग्रेस के लिए केजरीवाल चुनौती
देश की मौजूदा राजनीति में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए सियासी चुनौती बनते जा रहे हैं. कांग्रेस भले ही केजरीवाल को बीजेपी की बी-टीम का आरोप लगाती रही हो, लेकिन यह दांव उसके काम नहीं आ रहा है. एमसीडी का चुनाव जीतते हैं तो केजरीवाल यह बताने में भी सफल हो सकते हैं कि बीजेपी को रोकने में कांग्रेस नहीं आदमी पार्टी ही सक्षम है.
गुजरात की तरह से ही अगर देश के चुनाव हुए और केजरीवाल तीसरी ताकत के तौर पर चुनाव लड़ते हैं तो विपक्षी वोटों में बंटवारा होना तय है, जिसमें कांग्रेस के लिए आगे की राह काफी मुश्किलों भरी हो सकती है. दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी ने पहले ही कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन चुकी है. 2017 में पंजाब में आदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा और अकाली दल को पीछे छोड़ते हुए मुख्य विपक्षी दल बनी थी और पांच साल के बाद कांग्रेस को हटाकर सत्ता पर काबिज हो गई.
इसी फॉर्मूले पर केजरीवाल ने गुजरात में इस बार पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़कर अपने वोट परसेंट को बढ़ाया और खुद को कांग्रेस के करीब लाकर खड़ा कर दिया. ऐसे ही एमसीडी में भी केजरीवाल ने किया है. आम आदमी पार्टी अब गुजरात में बीजेपी, कांग्रेस के बाद तीसरी बड़ी ताकत बन गई है और उसकी आगे की नजर दिल्ली के सिंहासन पर है.
आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार कर रही है ताकि पीएम मोदी के विकल्प के रूप में खुद को स्थापित कर सकें. हरियाणा के निकाय चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. इस तरह से कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी लेती जा रही है. ऐसी ही स्थिति रही तो कांग्रेस के लिए आगे की सियासी राह काफी मुश्किलों भरी हो जाएगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.
इन राज्यों में अभी तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती रही है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने के लिए उतर रही है.इन राज्यों में त्रिकोणीय लड़ाई होती है तो गुजरात की तरह घमासान हो सकता है. ऐसे में कांग्रेस को अब बीजेपी के खिलाफ ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी से भी पार पाने की रणनीति तलाशनी पड़ेगी.
ब्रांड मोदी के सामने ब्रांड केजरीवाल
देश में नरेंद्र मोदी के सामने ब्रांड केजरीवाल उभरे हैं. केजरीवाल ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दिल्ली एमसीडी चुनाव में बीजेपी को मात दी और गुजरात में 20 फीसदी के करीब वोट हासिल करने में कामयाब रहे, उससे ब्रांड केजरीवाल को और भी मजबूती मिलेगी, जो उनके सियासी कद विपक्षी मंच पर मजबूत करेगा. तीन राज्यों के चुनाव नतीजे ऐसे वक्त आए हैं जब डेढ़ साल के बाद लोकसभा का चुनाव होने है. एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल का नाम और काम पर वोट मांगे हैं.
दिल्ली एमसीडी और गुजरात में आम आदमी पार्टी ने भी केजरीवाल के नाम पर चुनाव लड़ा था और उनके नाम पर ही वोट मांगे हैं. वो भी तब जब बीजेपी ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए मस्जिद के इमाम को सैलरी देने से लेकर दिल्ली दंगे तक के मुद्दे उछाले गए, लेकिन केजरीवाल की रणनीति के आगे एक भी काम नहीं आ सके.
केजरीवाल के दिल्ली विकास मॉडल के नाम पर वोट मांगे गए थे. ब्रांड मोदी के सामने आम आदमी पार्टी ब्रांड केजरीवाल को पेश कर रही है. इस तरह कांग्रेस के लिए सियासी चुनौती खड़ी हो जाएगी, क्योंकि कांग्रेस के पास फिलहाल पीएम मोदी-केजरीवाल के मुकाबले कोई चेहरा नहीं है.
हिमाचल प्रदेश में मिल रही जीत के बाद भी कांग्रेस के लिए खुशी से ज्यादा केजरीवाल की एमसीडी में जीत और गुजरात में एक मजबूत ताकत के तौर पर उभार परेशानी खड़ी कर दी है. कांग्रेस को अपने सियासी भविष्य के लिए ब्रांड मोदी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक की काट तलाशनी होगी. इस तरह से कांग्रेस के लिए अब दोहरी चुनौती खड़ो हो गई है.