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किसी दल को डराती हैं, तो किसी की उम्मीद जगाती हैं... हिमाचल की ये 18 सीटें

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की सीधी लड़ाई है. ऐसे में सूबे की 68 में से 18 सीटें ऐसी हैं, जहां पर पिछले चुनाव में जीत-हार का अंतर 2000 से कम वोटों का रहा है. ये सीटें किसी दल को डरा रही हैं तो किसी को जीत की उम्मीद भी दे रही हैं.

जयराम ठाकुर और प्रतिभा सिंह जयराम ठाकुर और प्रतिभा सिंह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 02 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. ऐसे में हिमाचल की डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी है, जहां पर कुछ वोट अगर इधर से उधर हुए सारा गणित बिगड़ जाएगा. ये वो सीटें हैं, जहां पर पिछले चुनाव में हार-जीत का अंतर 120 वोटों से लेकर 2000 के बीच था. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस अपने-अपने बागी नेताओं के निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने से सहमी हुई हैं. 

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बीजेपी के 21 नेताओं ने टिकट नहीं मिलने से बगावती तेवर अपना लिया है और निर्दलीय ही चुनावी मैदान में है. ऐसे ही कांग्रेस के छह नेता निर्दलीय उतरे हैं. बीजेपी को बगावत का सामना सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है. हिमाचल एक ऐसा राज्य है, जहां पर जीत-हार के बीच का अंतर अक्सर कुछ वोटों का होता है और पिछले साढ़े तीन दशकों से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. ऐसे में कम अंतर वाली सीटें कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए खतरे की घंटी और उम्मीद की आस भी दे रही हैं.

18 सीटें पर जीत-हार का अंतर

2017 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत-हार का अंतर महज कुछ वोटों का रहा है, जिसमें 120 वोटों से 2000 के बीच था. कम अंतर वाली 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी तो 9 सीटें पर कांग्रेस का कब्जा है. इसके अलावा एक सीट सीपीएम के विधायक राकेश सिंघा जीते थे.  इन सीटों पर अगर 1000 वोट भी अगर इधर से उधर हुए या फिर किसी अन्य के खाते में गए तो सीटों को बचाना मुश्किल हो जाएगा. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही कम अंतर वाली सीटों को लेकर सजग है, लेकिन कुछ सीटों पर बागियों के उतरने से चिंता बढ़ गई है. 

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कांग्रेस की कम अंतर वाली सीटें 

कांग्रेस के चार विधायक 2017 में एक हजार से कम वोटों से जीते थे, जिनमें किन्नौर से कांग्रेस के जगत सिंह नेगी सबसे कम 120 वोट के अंतर से जीते. इसके अलावा बड़सर से कांग्रेस के इंद्रदत्त लखनपाल 439 वोट से जीते, डलहौजी से कांग्रेस की आशा कुमारी 556 वोट, सोलन से कांग्रेस के धनीराम शांडिल 671 मत से जीते थे. वहीं, श्रीनैनादेवीजी से रामलाल ठाकुर 1042 वोट, नालागढ़ से लखविंद्र राणा 1242 वोट और फतेहपुर में सुजान सिंह पठानिया 1284 वोट से जीत पाए थे. कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर 1538 वोट और सुजानपुर से राजेंद्र राणा 1919 वोट से जीते थे. 

बीजेपी की कम अंतर वाली सीट

बीजेपी हिमाचल में कम अंतर से आठ सीटें जीती थी, जिसमें कसौली से डॉ. राजीव सैजल, नगरोटा सीट से अरुण कुमार, जुब्बल-कोटखाई से नरेंद्र बरागटा, शिमला शहरी से सुरेश भारद्वाज, इंदौरा सीट से रीता धीमान, लाहौल-स्पीति से रामलाल मारकंडा, जसवां-परागपुर से विक्रम सिंह और चंबा से पवन नय्यर वोट से जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसमें एक सीट बीजेपी उपचुनाव में कांग्रेस के हाथों गवां चुकी है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीटें सबसे ज्यादा चुनौती बनी हुई है. 

बीजेपी के टेंशन बनी ये सीटें

बीजेपी ने कम अंतर वाली जीती हुई सीटों को बचाए रखने के लिए अपने मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया है, लेकिन निर्दलीय उनके उतरने से चुनौती खड़ी हो गई है. बीजेपी ने शिमला शहरी सीट सुरेश भारद्वाज, चंबा से पवन नय्यर, देहरा से विधायक होशियार सिंह का टिकट काट दिया है. नालागढ़ से पूर्व विधायक केएल ठाकुर,  इंदौरा से पूर्व विधायक मनोहर धीमान, किन्नौर से तेजवंत नेगी, कुल्लू से राम सिंह और चंबा से इंदिरा कपूर निर्दलीय चुनावी मैदान में है. 

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नाचन सीट से ज्ञान चंद, धर्मशाला से विपिन नैहरिया, अनिल चौधरी, कांगड़ा से कुलभाष चौधरी, मनाली से महेंद्र ठाकुर, बड़सर से संजीव शर्मा, हमीरपुर से नरेश दर्जी, भोरंज से पवन कुमार, रोहडू़ से राजेंद्र धीरटा, बंजार से पूर्व सांसद महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर, आनी से विधायक किशोरी लाल सागर, किन्नौर से तेजवंत नेगी, फतेहपुर से कृपाल परमार, सुंदरनगर से रूप सिंह ठाकुर के बेटे अभिषेक ठाकुर, बिलासपुर से सुभाष शर्मा, मंडी से प्रवीण शर्मा निर्दलीय चुनावी मैदान में है. बीजेपी के लिए यह सीटें सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन गई हैं. 

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में जीत और हार का अंतर बहुत कम रहता है. पिछले विधानसभा चुनाव में करीब डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी है, जहां पर जीत हार का अंतर 120 वोटों से 2000 के बीच रहा है.  ऐसे में अगर कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने बागी नेताओं को वोटिंग से पहले तक समझाने में सफल नहीं रहती तो चिंता खड़ी कर सकी. बागी नेता अगर 1000 और 2000 हजार वोट हासिल करने में किसी तरह कामयाब रहते हैं तो वो अपनी पार्टी के जीत की राह में रोड़ा बन सकते हैं. इसीलिए बीजेपी अपने बागी नेताओं को मनाने में जुटी है, लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी इस संकट से कैसे निपटती है. 
 

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