
हिमाचल प्रदेश के मौसम में ठंड बढ़ने के साथ ही सियासी पारा भी बढ़ता जा रहा है. 12 नवंबर को होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी सियासी दलों में भी सरगर्मी तेज है. बीजेपी अपनी सत्ता को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही है तो कांग्रेस वापसी के लिए बेताब है. हालांकि हिमाचल के पांच दशक के सियासी इतिहास में पहली बार सूबे के तीन बड़े नेताओं के बिना विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार सियासी मैदान में नहीं नजर आएंगे.
बीजेपी के लिए हिमाचल में पहला चुनाव है जब दो बड़े दिग्गज नेताओं के बिना कांग्रेस से दो-दो हाथ करेगी. शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल हिमाचल की सियासत में बीजेपी के दिग्गज नेता रहे हैं. बीजेपी के दोनों ही दिग्गज हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. पार्टी ने अपने इन दोनों नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका रखा और युवा नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में उतरी है.
हिमाचल में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा और छह बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का निधन हो चुका है. हिमाचल में कांग्रेस अपने दिग्गज नेता के बगैर विधानसभा के चुनावी मैदान में सत्ता की वापसी के लिए हाथ-पैर मार रही है. ऐसे में कांग्रेस की कमान भले ही वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह संभाल रही है, लेकिन पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ रही. ऐसे में माना जा रहा है कि हिमाचल में पीढ़ी परिवर्तन के बाद दोनों ही बड़े दल अपने नई पीढ़ी के नेताओं के भरोसे चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. इसे हिमाचल की सियासत में नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है.
जयराम ठाकुर का उदय
पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नाम पर लड़ा था. बीजेपी को सत्ता में वापसी कराने में धूमल सफल रहे थे, लेकिन खुद सुजानपुर विधानसभा सीट से हार गए थे. ऐसे में हिमाचल के मुख्यमंत्री का ताज जयराम ठाकुर के सिर सजा था. इसके बाद से प्रेम कुमार धूमल की सियासी हैसियत धीरे-धीरे सिमटने लगी तो जयराम ठाकुर की ताकत बढ़ने लगी. पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद जयराम ठाकुर ने सिर्फ जनता ही नहीं, बल्कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच विश्वास बनाया है.
धूमल को नहीं मिला टिकट
हिमाचल की सियासत में प्रेम कुमार धूमल का अपना कद है. धूमल ने अपना राजनीतिक सफर आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी के साथ शुरू किया था. अस्सी के दशक में विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन 1998 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद सियासी बुलंदी को छूते चले गए. 1998 में हिमाचल के पहली बार मुख्यमंत्री बने और फिर 2007 में प्रेम कुमार धूमल ने दूसरी पार सत्ता की कमान संभाली. साल 2017 में धूमल अपनी ही सीट हार जाने के चलते मुख्यमंत्री नहीं बन सके, लेकिन राजनीतिक रूप से खुद को सक्रिय रखा. ऐसे में माना जा रहा था कि 2022 के चुनावी मैदान में फिर से उतरेंगे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें टिकट नहीं दिया. धूमल की उम्र 78 साल हो चुकी है और ऐसे में उनकी राजनीतिक यात्रा पर विराम लगने की भविष्यवाणी किए जाने लगी है.
BJP के दिग्गज 'OUT', युवा चेहरे 'IN'
हिमाचल के पहले गैर कांग्रेस सीएम बने शांता कुमार बीजेपी के दिग्गज नेता हैं. दो बार हिमाचल के सीएम और केंद्र में मंत्री रहे शांता कुमार सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं, लेकिन माना जाता है कि प्रदेश की सियासत में उनका दबदबा अभी भी है. शांता कुमार को हिमाचल के उन नेताओं में गिना जाता है जो प्रदेश की जनता की नब्ज को अच्छे से समझते हैं. ऐसे में शांता कुमार के बिना विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. प्रेम धूमल और शांता कुमार जैसे बीजेपी के दिग्गज हिमाचल की चुनावी पिच से इस बार आउट हुए तो युवा चेहरों को आगे रखा है.
हिमाचल में बीजेपी की राजनीतिक से नए चेहरों के लिए मौका है. इस फेहरिश्त में तीन बड़े नाम- वर्तमान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हैं. जेपी नड्डा राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की कमान संभाल रखी है तो अनुराग ठाकुर केंद्र में हिमाचल का नेतृत्व कर रहे हैं. मोदी सरकार में वो मंत्री हैं. वहीं, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ और मजबूत कर रहे हैं, लेकिन उनकी असल अग्निपरीक्षा 2022 के विधानसभा चुनाव में होनी है.
जयराम ठाकुर 2017 में धूमल के हार जाने से 'एक्सीडेंटल सीएम' बने थे, लेकिन अब उन्हें सियासी कसौटी पर खरा उतरना होगा. यह चुनाव उनके पांच साल के कामकाज पर होगा और हिमाचल में हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को तोड़ने की चुनौती है. उपचुनाव में बीजेपी को जीत नहीं दिला सके है, जिसके चलते बीजेपी के सामने अपनी सत्ता को बचाए रखने की कड़ी चुनौती है. इस चुनौती से पार पाने में सिर्फ जयराम ठाकुर नहीं बल्कि अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा की जिम्मेदारी होगी.
कांग्रेस में वीरभद्र के बाद अब कौन?
कांग्रेस की बात करें तो छह दशकों के बाद पहली बार दिग्गज दिवंगत नेता वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल के चुनावी मैदान में उतरी है. 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के चेहरे पर लड़ा, लेकिन पार्टी को जीत नहीं दिला सके. इस तरह से वीरभद्र सिंह का सियासी सफर 2017 में ही थम गया था और 2021 में उनका निधन हो गया. हिमाचल में कांग्रेस के पास अब वीरभद्र सिंह जैसा कद्दावर नेता नहीं है, जिसके सहारे हिमाचल में जीत का परचम फहरा सके. कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को पार्टी की कमान जरूर दे रखी है, लेकिन सीएम का चेहरा किसी को भी नहीं बनाया है.
प्रतिभा सिंह को हिमाचल में कांग्रेस की कमान मिलते ही पार्टी में असंतोष बढ़ने लगा और पार्टी के कई बड़े और पुराने चेहरे साथ छोड़ गए हैं. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष से लेकर विधायक भी शामिल हैं. कांग्रेस भरोसेमंद और कद्दावर नेताओं की कमी से जूझ रही है. हालांकि, सुखविंद्र सिंह सुक्खू, कौल सिंह ठाकुर, मुकेश अग्निहोत्री, रामलाल ठाकुर और आशा कुमारी खुद को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं. साथ ही वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी अपनी जगह बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
नई पीढ़ी के भरोसे कांग्रेस और बीजेपी
हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पूरा दमखम लगा रही है, लेकिन किसी ने भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया. बीजेपी सूबे की सत्ता में होते हुए भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के चेहरे पर दांव नहीं खेल सकी और न ही किसी दूसरे नेता को आगे किया है. ऐसे ही कांग्रेस भी सामूहिक नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी है ताकि पार्टी नेताओं के बीच गुटबाजी न पैदा हो सके. इस तरह बीजेपी में शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल और कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के बिना हो रहे चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों में अब नई पीढ़ी के हाथों में कमान होगी. ऐसे में देखना है कि हिमाचल की सियासी बाजी कौन मारता है.