
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. राज्य की सियासी बाजी जीतने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. सिद्धारमैया के सहारे कांग्रेस अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है, तो वहीं बीजेपी बीएस येदियुरप्पा के चेहरे को आगे करके दोबारा से सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी है. लेकिन कर्नाटक की सियासत के संयोग कुछ और कहानी बयान कर रहे हैं. राज्य में पिछले 33 सालों में सत्ताधारी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है. इतना ही नहीं, 2013 को छोड़कर केंद्र में सत्तारूढ़ दल कभी भी राज्य में बहुमत हासिल नहीं कर सकी.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव की सियासी रणभूमि में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला होता हुआ नजर आ रहा है. 1972 से पहले इसे मैसूर राज्य के नाम से जाना जाता था, लेकिन पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया. कर्नाटक के चार दशक के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए तो 1983 और 1985 में लगातार दो बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इसके बाद से जब भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.
मैसूर से कर्नाटक नाम पड़ने के बाद 1972 में पांचवां विधानसभा चुनाव और 1978 में हुए छठे चुनाव में कांग्रेस जीत दर्ज कर सत्ता पर अासीन हुई. आपातकाल के बाद1983 में हुए राज्य के सातवें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने 95 सीटें जीतीं और रामकृष्ण हेगड़े ने अन्य छोटे दलों के साथ मिल कर राज्य में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई. हालांकि, ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी. इसके बाद 1985 के चुनाव में जनता पार्टी ने 139 सीटों के साथ शानदार सफालता हासिल की. ये वही दौर था जब केंद्र की सत्ता पर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. इसके बावजूद कर्नाटक में उनका जादू नहीं चल सका और राज्य की सत्ता में नहीं आ सकी.
1989 में कर्नाटक के सातवें विधानसभा चुनाव हुए, जनता पार्टी की विदाई हुई और कांग्रेस ने जबर्दस्त जीत के साथ सत्ता में वापसी की. राज्य के इतिहास में अब तक की सबसे ज्यादा 178 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया, जिसे कोई दल अभी तक तोड़ नहीं सका. इसके बाद 1994 में विधानसभा चुनाव हुए में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल ने 115 सीटें जीतकर सरकार बनाई. जबकि केंद्र की सत्ता में पी वी नरसिंहराव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी.
पांच साल के बाद 1999 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों जनता दल को करारी हार का समाना करना पड़ा. कांग्रेस ने 132 सीटें जीतकर राज्य की सत्ता में वापसी की. ये वही समय था, जब केंद्र की सत्ता में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन एनडीए की सरकार थी.
2006 में हुए विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. बीजेपी 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं. कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई जो राज्य की पहली गठबंधन की सरकार बनी. वहीं केंद्र की सत्ता में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी. इसके बाद जेडीएस ने बीजेपी के साथ सरकार बनाया और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बने.
2008 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए जेडीएस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी 110 सीटों के साथ सत्ता पर विराजमान हुई और सीएम की कमान बीएस येदियुरप्पा को मिली. दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी. 2008 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी. इसके बावजूद कांग्रेस महज 80 सीटों पर सिमट गई.
पांच साल के बाद 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. जबकि कांग्रेस 122 सीटों के साथ बहुमत दर्ज करके सत्ता पर विराजमान हुई. 1999 के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता में वापसी की थी. पिछले तीन दशकों में पहली बार रहा कि केंद्र की सत्ता में रहने वाली पार्टी की राज्य में सरकार बनी.
कर्नाटक की सियासत 2018 में नई इबारत लिखेगी या फिर अपना पुराना इतिहास दोहराएगी. राज्य की सत्ता पर कांग्रेस काबिज है और केंद्र की सत्ता पर बीजेपी.