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कांग्रेस को सत्ता में लौटाएगी चामुंडेश्वरी में सिद्धारमैया की वापसी?

सिद्धारमैया ने अपनी पुरानी और परंपरागत चामुंडेश्वरी सीट पर दो चुनाव के बाद वापसी की है, जिसके चलते इस सीट पर कर्नाटक की ही नहीं, बल्कि देश की नजर है.

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मुख्यमंत्री सिद्धारमैया
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 10 मई 2018,
  • अपडेटेड 8:39 AM IST

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया दो विधानसभा सीटों से किस्मत आजमा रहे हैं. वे दक्षिण कर्नाटक की विधानसभा सीट चामुंडेश्वरी और नॉर्थ कर्नाटक की बदामी विधानसभा सीट से चुनावी रणभूमि में उतरे हैं. सिद्धारमैया ने अपनी पुरानी और परंपरागत चामुंडेश्वरी सीट पर दो चुनाव के बाद वापसी की है, जिसके चलते इस सीट पर कर्नाटक की ही नहीं, बल्कि देश की नजर है.

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इस विधानसभा क्षेत्र का नाम पहाड़ की चोटी पर मौजूद देवी चामुंडेश्वरी के नाम पर है. इन्हें मैसूर की प्रमुख देवी माना जाता है. चामुंडेश्वरी सीट पर जेडीएस के जीटी देवगौड़ा का कब्जा है. 2013 में वे कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर विधायक बने थे. जेडीएस ने एक बार फिर उन्हें सिद्धारमैया के सामने उतारा है. जबकि बीजेपी ने एसआर गोपाल राव पर दांव लगाया है. इसके अलावा भारतीय जनशक्ति कांग्रेस के एमएस प्रवीण और सामान्य जनता पार्टी के एम मदेशा सहित 15 उम्मीदवार मैदान में हैं.

2013 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस के जीटी देवगौड़ा को 75 हजार 864 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार एम सत्यनारायण को 68 हजार 761 वोट मिले थे. इस तरह से जीडीएस ने 7 हजार 103 मतों से जीत दर्ज की थी. चामुंडेश्वरी सीट ऐसी हैं जहां बीजेपी कभी भी जीत नहीं सकी है. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर रही थी.

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चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट 1967 में बनी थी. ये दक्षिण कर्नाटक के मैसूर क्षेत्र में आती है. इस सीट पर अब तक 12 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस ने सबसे ज्यादा बार जीत हासिल की है. कांग्रेस ने यहां से 7 बार चुनाव जीता है. जबकि 5 बार दूसरी पार्टियों ने जीत हासिल की है.  

सिद्धारमैया ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत चामुंडेश्वरी सीट से 1983 में की थी. उस समय उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस के दिग्गज नेता डी जय देवराज को मात दी थी. तब से वह यहां से पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं, जबकि दो बार उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा.

जातीय गणित

चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट के जातीय गणित के लिहाज से सिद्धारमैया की राह आसान नहीं है. इस सीट पर करीब ढाई लाख मतदाता हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 70 हजार वोक्कालिगा समुदाय के हैं, जबकि ओबीसी, दलित, मुस्लिम वोटरों की संख्या तकरीबन 1 लाख  है. इसके अलावा 30 हजार लिंगायत हैं जबकि कुरबा सुमदाय की संख्या करीब 35 हजार है.

सिद्धारमैया इस उम्मीद में हैं कि लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने का उनकी सरकार का फैसला इस समुदाय को कांग्रेस पार्टी और उनकी तरफ आकर्षित करने में काफी मददगार साबित होगा. इसके अलावा उन्हें मुस्लिम, ओबीसी और दलित मतों से अपनी जीत की उम्मीद है.

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कर्नाटक के इस हिस्से में (मैसूर इलाके में) बीजेपी का मजबूत आधार नहीं है. साथ ही पार्टी ने अब तक इस विधानसभा क्षेत्र से कभी जीत भी हासिल नहीं की है. वे एक बार ही दूसरे नंबर पर रही है. इस सीट पर जेडीएस के जीटी देवगौड़ा के उम्मीदवार होने के कारण जाहिर तौर पर सिद्धारमैया का असली मुकाबला उन्हीं से है.

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