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कर्नाटक की VVIP शिकारीपुरा सीट: येदियुरप्पा का गढ़ तोड़ना मुश्किल

यह बीजेपी के सीएम फेस येदियुरप्पा के चुनाव लड़ने की वजह से राज्य की वीवीआईपी सीटों में शामिल है. यह शिमोगा जिले में आता है और बेंगलुरु-मैसूर क्षेत्र में है.

बीजेपी के सीएम फेस येदियुरप्पा बीजेपी के सीएम फेस येदियुरप्पा
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2018,
  • अपडेटेड 8:39 AM IST

कर्नाटक के शिकारीपुरा निर्वाचन क्षेत्र जो बीजेपी का अभेद्य गढ़ माना जाता है. यह बीजेपी के सीएम फेस येदियुरप्पा के चुनाव लड़ने की वजह से राज्य की वीवीआईपी सीटों में शामिल है. यह शिमोगा जिले में आता है और बेंगलुरु-मैसूर क्षेत्र में है.

गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा की 222 सीटों के लिए 12 मई को मतदान हुए और इसके नतीजे 15 मई को आएंगे. दो सीटों पर मतदान टाल दिए गए हैं.

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35 साल से येदियुरप्पा काबिज

येदियुरप्पा ने 1983 में इस सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 1985 उप-चुनाव, विधानसभा चुनाव 1989, 1994, 2004, 2008 और 2013 में जीत हासिल की. वह यहां से आठ बार चुनाव लड़ चुके हैं और सिर्फ एक बार हारे हैं. हालांकि साल 2013 में वह कर्नाटक जनपक्ष (KJP) से उम्मीदवार थे, जो दल उन्होंने बीजेपी से अलग होकर बनाया था. तब बीजेपी कैंडिडेट एस.एच. मंजुनाथ थे, जिन्हें महज 2383 वोट हासिल हुए थे.

साल 2014 में येदियुरप्पा शिमोगा क्षेत्र लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे बी.वाई. राघवेंद्र बीजेपी से विधायक चुने गए.

बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ कांग्रेस ने जी. मालतेश को उम्मीदवार बनाया था, जबकि जनता दल सेकुलर से एचटी बालीगर मैदान में थे. आम आदर्मी पार्टी ने चंद्रकांत एस. रेवांकर को उतारा था. अन्य क्षेत्रीय दलों तथा निर्दलियों को मिलाकर यहां से कुल 9 कैंडिडेट चुनाव मैदान में थे.

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चुनाव आयोग ने इस क्षेत्र में 228 पोलिंग स्टेशन बनाए थे. यहां कुल 184956 मतदाता हैं, जिनमें 93923 पुरुष और 90958 महिला मतदाता हैं.

शिकारीपुरा निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादातर लिंगायत , कुरुबा, गुडिगर्स, लिंगायत, मुस्लिम, ईसाई, दलित रहते हैं. सबसे ज्यादा तादाद लिंगायतों की है. शिकारीपुरा ऐतिहासिक स्थानों और प्राकृतिक आकर्षण से घिरा हुआ है.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य में भाजपा का सबसे असरदार चेहरा रहे येदियुरप्पा पर पूरे प्रदेश में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्हें अपने गढ़ और पुरानी सीट शिकारीपुरा को भी बचाना था. कांग्रेस और जनता दल (एस) कैंडिडेट ने यहां मुकाबले को तिकोना बनाने की पूरी कोशि‍श की. वे कितना कामयाब हुए यह 15 मई को पता चलेगा.

येदियुरप्पा और बीजेपी की पारंपरिक सीट और सुरक्षित गढ़ होने की वजह से विपक्षियों के लिए इस किले में सेंध लगाना मुश्किल सा दिखाई पड़ता है. इस विधानसभा क्षेत्र में लिंगायतों की तादाद कुल आबादी की आधी से भी ज्यादा है और उनका एकमुश्त समर्थन येदियुरप्पा को मिलता रहा है. इसके अलावा क्षेत्र के अन्य वर्गों के लोग भी येदियुरप्पा को वोट देते रहे हैं, क्योंकि वह सीएम फेस रहते हैं. 

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