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सिद्धारमैया का मोदी के दांव से ही बीजेपी को पटखनी देने का प्लान

सिद्धारमैया भी मोदी की तर्ज पर कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में दो सीटों से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अब ये देखना होगा कि सिद्धारमैया मोदी के दांव से बीजेपी को पटकनी दे पाते हैं या फिर खुद ही इस चक्रव्युह का शिकार बनते हैं?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 26 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 11:04 AM IST

कर्नाटक की सियासी जंग को फतह करने और बीजेपी को पटखनी देने के लिए सिद्धारमैया पीएम नरेंद्र मोदी के दांव को ही आजमाने में जुटे हैं. 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने गुजरात की वड़ोदरा और यूपी की वाराणसी सीट से चुनाव लड़कर विपक्ष का सफाया कर दिया था. सिद्धारमैया भी मोदी की तर्ज पर कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में दो सीटों से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अब ये देखना होगा कि सिद्धारमैया मोदी के दांव से बीजेपी को पटखनी दे पाते हैं या फिर खुद ही इस चक्रव्यूह का शिकार बनते हैं?

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2014 में मोदी दो सीट से लड़े थे चुनाव

बता दें कि नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने गृहराज्य गुजरात के साथ ही देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को साधने का बड़ा दांव चला था. इसका नतीजा रहा कि गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं, साथ ही यूपी में बीजेपी ने 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर जीत दर्ज करके इतिहास रचा था. जबकि दो सीटें बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल को मिलीं, जिन्हें मिलाकर एनडीए ने सूबे में 73 सीटें जीती थी.

सिद्धारमैया के दो सीट पर लड़ने के पीछे का गणित

मोदी के इसी दांव को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया विधानसभा चुनाव में आजमा रहे हैं. वे दक्षिण कर्नाटक की विधानसभा सीट चामुंडेश्वरी और दूसरी नार्थ कर्नाटक की बादामी विधानसभा सीट से चुनावी रणभूमि में उतरे हैं. बीजेपी इसे सिद्धारमैया के हार का डर बता रही है. जबकि कांग्रेस की सिद्धारमैया को दो सीटों से चुनाव मैदान में उतारकर नार्थ और साउथ दोनों क्षेत्र को एक साथ साधकर सियासी फायदा उठाने की सोची समझी रणनीति है. 

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सिद्धारमैया ने किया पलटवार

सिद्धारमैया के दो सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है. ऐसे में सिद्धारमैया ने ट्वीट करके लिखा कि पूरे कर्नाटक में जिस नेता को पसंद किया जाता है वो राज्य में कहीं भी लड़ने से डरता नहीं. दोनों सीटों पर जनता मेरा भाग्य तय करेगी, इसकी चिंता न करें. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात और वाराणसी दोनों जगहों से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था? क्या कुमारस्वामी खुद दो क्षेत्रों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं (चन्नपटना और रामनगरम)? सिद्धारमैया ने कहा कि मैं यहां से चुनाव में खड़ा हो रहा हूं क्योंकि बगलकोट, विजयपुरा, बेलगवी और दूसरे उत्तर कर्नाटक क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि मैं यहां से लड़ूं. 

उत्तर कर्नाटक में 12 जिले, 80 सीटें

सिद्धारमैया को बादामी विधानसभा सीट से उतारने के फैसले के पीछे उत्तर कर्नाटक क्षेत्र को साधने की मंशा के तहत माना जा रहा है. उत्तर कर्नाटक के तहत 12 जिले की करीब 80 विधानसभा सीटें आती हैं. सिद्धारमैया के इस इस इलाके से उतारने से कांग्रेस बागलकोट, बीजापुर, हावेरी, बेलगावी, धारवाड़, बेलगाम, हुबली और गदग जिले के आने वाली सीटों पर जीत का परचम लहराने का प्लान है.

उत्तर कर्नाटक बीजेपी का दुर्ग

उत्तर कर्नाटक का इलाका बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाती है. बीजेपी के दिग्गज नेताओं में जगदीश शेट्टर और प्रह्लाद जोशी इसी क्षेत्र से आते हैं. बीजेपी ने पहली बार 1985 में कर्नाटक में 18 सीटें जीती थी, उनमें 11 सीटें उत्तर कर्नाटक से थी. बीजेपी ने 1994 में 11 सीटें, 1999 में 15 सीटें उत्तर कर्नाटक इलाके से जीती थी. बीजेपी 2004 के चुनाव में 41 सीटें  और 2008 में  56 सीटें उत्तर कर्नाटक से जीतकर अपना सियासी वर्चस्व कायम किया था. 

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कर्नाटक की सत्ता में उत्तर कर्नाटक की भूमिका

उत्तर कर्नाटक ने राज्य की सत्ता को तय करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में 1985 में बनी जनता पार्टी की सरकार में उत्तर कर्नाटक की अहम रोल रहा. जनता पार्टी को मिली 139 सीटों में से 60 सीटें नार्थ कर्नाटक से जीतकर आई थी. इसी तरह से कांग्रेस ने 1989 में उत्तर कर्नाटक 176 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की तो उसमें भी 68 सीटें उत्तर कर्नाटक की शामिल रहीं.

सिद्धारमैया की 1989 के इतिहास को दोहराने की मंशा

सिद्धारमैया जिस कुरुबा समुदाय (चरवाहा समुदाय) से सिद्धारमैया आते हैं, उनकी उत्तर कर्नाटक के कई क्षेत्रों में अच्छी संख्या है. इसी मद्देनजर सिद्धारमैया ने नॉर्थ कर्नाटक की बादामी सीट से उतरने का फैसला किया है ताकि 1989 के इतिहास को दोहरा सकें.

चामुंडेश्वरी सिद्धारमैया का गृह सीट

सिद्धारमैया दक्षिण कर्नाटक की विधानसभा सीट चामुंडेश्वरी से भी मैदान में हैं. ये सीट उनके गृह जिले से आती हैं, चामुंडेश्वरी सीट उनकी पुरानी और परंपरागत सीट है. सिद्धारमैया ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत इसी सीट से 1983 में किया था. ये उनका आखिरी विधानसभा चुनाव है, ऐसे में उन्होंने अपनी पुरानी सीट से अपनी राजनीतिक सफर को पूर्णविराम लगाना चाहते हैं. इसी मद्देनजर वे चामुंडेश्वरी से चुनाव रणभूमि में उतरे हैं.

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दक्षिण कर्नाटक की 7 जिले 52 सीट

दक्षिण कर्नाटक के तहत 7 जिलों की 52 विधानसभा सीटें आती है. चामराज नगर, हासन, मांड्या, मैसूर, कोलार, तुमकुर और चिक्कबल्लपुर जिले आते हैं. मौजूदा समय में मैसूर की 11 सीटों में से 8 पर कांग्रेस का कब्जा है. जेडीएस के पास तीन सीटें और बीजेपी को एक मिली थी. जेडीएस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा हासन जिले से आते हैं. जेडीएस का सबसे ज्यादा प्रभाव वाला क्षेत्र दक्षिण कर्नाटक माना जाता है.

जेडीएस का मजबूत गढ़

दक्षिणी कर्नाटक में वोक्कालिंगा और दलित वोटर ही हार और जीत तय करने की निर्णायक भूमिका अदा करते आ रहे हैं. कांग्रेस और जेडीएस के बीच सीधा मुकाबला होता आ रहा है. चामुंडेश्वरी से सिद्धारमैया उतरकर जेडीएस के दुर्ग में सेंधमारी करने की जुगत है. दक्षिण कर्नाटक के विधानसभा क्षेत्र चामुंडेश्वरी में सिद्धारमैया को घेरने के लिए जेडीएस एचडी देवेगौड़ा, उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी डेरा जमाए हुए हैं.

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