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वरुणा सीट: सिद्धारमैया के बेटे के सामने पिता की विरासत बचाने की चुनौती

कर्नाटक के मैसूर जिले के तहत आने वाली वरुणा विधानसभा सीट 2008 में वजूद में आई थी. मार्च 2007 में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय परिसीमन आयोग (डीसीआई) ने बन्नूर विधानसभा क्षेत्र को खत्म कर वरुणा विधानसभा क्षेत्र के गठन को मंजूरी दी थी

सिद्धारमैया और यतींद्र सिद्धारमैया और यतींद्र
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 10 मई 2018,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की हाईप्रोफाइल मानी जाने वाली वरुणा विधानसभा सीट का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है. कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी दो बार की जीती हुई वरुणा विधानसभा सीट से अपने बेटे डॉक्टर यतींद्र सिद्धारमैया को उतारा है. कांग्रेस के इस दुर्ग में विपक्ष सेंधमारी की हरसंभव कोशिश में है.

वरुणा सीट पर 23 प्रत्याशी

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वरुणा विधानसभा से यतींद्र सिद्धारमैया को मात देने के लिए बीजेपी ने थोटाडप्पा बस्वाराजू और जेडीएस ने अभिषेक एस मानेगर को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा कर्नाटक जनता पक्ष के उमेश सी, इंडियन न्यू कांग्रेस पार्टी के गुरुलिंघैया, सपा से निर्मला कुमारी सहित 23 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं.

2008 में वरुणा सीट को मिली पहचान

कर्नाटक के मैसूर जिले के तहत आने वाली वरुणा विधानसभा सीट 2008 में वजूद में आई थी. मार्च 2007 में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय परिसीमन आयोग (डीसीआई) ने बन्नूर विधानसभा क्षेत्र को खत्म कर वरुणा विधानसभा क्षेत्र के गठन को मंजूरी दी थी. 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया ने वरुणा सीट से उतरकर जीत हासिल की.

सिद्धारमैया दो बार जीते

राज्य के 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में वरुणा सीट से कांग्रेस नेता सिद्धारमैया को 71 हजार 908 वोट मिले. जबकि बीजेपी उम्मीदवार एल रवीनसिद्धैया को 53 हजार 71 वोट मिले. इस तरह से सिद्धारमैया ने 18 हजार 837 मतों से बीजेपी को मात दी थी.

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2013 में हुए विधानसभा चुनावों में सिद्धारमैया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कर्नाटक जनता पक्ष (केजीपी) के उम्मीदवार कापू सिद्धा लिंगास्वामी को 29 हजार 641 वोटों से हराया था. पिछले चुनाव में सिद्धारमैया को 84 हजार 385 वोट हासिल मिले थे.

सियासी विरासत बेटे के नाम

2013 में कर्नाटक की सत्ता की कमान संभालने वाले सिद्धारमैया ने अपने बड़े बेटे राकेश सिद्धारमैया को राजनीति में लाने की इच्छा जताई थी. लेकिन पिछले साल जुलाई माह में राकेश का निधन हो जाने के चलते वो सपना साकार नहीं हो सका. इसके बाद सिद्धारमैया ने अपने छोटे बेटे यतींद्र सिद्धारमैया को विधानसभा क्षेत्र में पार्टी की कमान सौंपी.

पेशे से चिकित्सक यतींद्र को राज्य सरकार ने पहले वरुणा विधानसभा क्षेत्र की सतर्कता समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया. उन्हें क्षेत्र में विकास कार्यों की निगरानी करने के लिए सशक्त बनाया गया. इसके बाद इस बार उन्हें कांग्रेस ने प्रत्याशी के तौर पर उतारा है.

बीजेपी ने उतारा बस्वाराजू को

सिद्धारमैया का दुर्ग कही जाने वाली वरुणा सीट पर उनके बेटे को मात देने के लिए बीजेपी ने थोटाडप्पा बस्वाराजू को चुनाव मैदान में उतारा है. थोटाडप्पा बस्वाराजू लिंगायत समुदाय से हैं और 1980 से बीजेपी में हैं. नरसिंहपुर के रहने वाले बस्वाराजू क्षेत्र में 'थोटाडप्पा होम नेस्ट' नाम के एक होटल के मालिक हैं.

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येदियुरप्पा के बेटे की साख दांव पर

वरुणा सीट पर पहले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे और बीजेपी के युवा मोर्चा के महासचिव बीवाई विजयेंद्र को यहां से टिकट दिए जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन आलाकमान ने उनका टिकट काटकर बस्वाराजू को दे दिया. इस फैसले से पार्टी को आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन विजयेंद्र पार्टी उम्मीदवार को जिताने के लिए पसीना बहाते दिख रहे हैं.  

पिता की सीट जीतने की चुनौती

वरुणा विधानसभा सीट पर एक तरफ जहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र के सामने अपने पिता की सीट को बचाने का दबाव है. तो दूसरी तरफ बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा के बेटे को टिकट नहीं मिलने के कारण प्रत्याशी के रूप में उभरे थोटाडप्पा बस्वाराजू पर खुद को साबित करने की चुनौती है.

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इतेहदुल मुस्लमीन पहले ही जनता दल (सेक्युलर) को अपना समर्थन देने की बात कह चुकी है. इससे मुस्लिम वोटों के कांग्रेस और जेडीएस में बंटने की संभावना है. ऐसे में सीएम के डॉक्टर बेटे अपने पिता की विरासत कैसे बचाएंगे, ये देखने वाली बात होगी.

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