
कर्नाटक विधानसभा चुनाव की सियासी जंग का बिगुल बज चुका है. बीजेपी बीएस येदियुरप्पा के सहारे दोबारा से सत्ता में वापसी की जद्दोजहद कर रही है, तो वहीं कांग्रेस अपनी सत्ता को बचाने के सिद्धारमैया के चेहरे के सहारे मैदान में उतरी है. 'कर्नाटक का किंग कौन?' जानने के लिए देश का सबसे बड़ा न्यूज चैनल 'आजतक' इंडिया टुडे ने सबसे बड़ा ओपिनियन पोल किया. कर्नाटक की सिद्धारमैया की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले लिंगायत समुदाय को अलग धर्म दर्जा दिए जाने का मास्टर स्ट्रोक चला है. सर्वे के मुताबिक 52 फीसदी लोगों का मानना है कि लिंगायत समुदाय के अलग धर्म दर्जा दिए जाना एक बड़ा मुद्दा साबित होगा.
52 लोग मानते हैं लिंगायत समुदाय बड़ा मुद्दा होगा
इंडिया टुडे ग्रुप और कार्वी इनसाइट्स द्वारा किए ओपिनियन पोल के लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने को 52 फीसदी लोग मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा होगा. जबकि 28 लोग मानते हैं कि ये मुद्दा नहीं होगा.वहीं 20 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जिनकी इस मुद्दे पर कोई राय नहीं है.
लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने को लेकर इंडिया टुडे ग्रुप और कार्वी इनसाइट्स ने राज्य के राज्य में अलग-अलग जातीय के लोगो के बीच सर्वे किया. ओपिनियन पोल मुताबिक कुरबस समाज के 57 फीसदी लोग मानते कि ये बड़ा मुद्दा होगा. जबकि वोक्कालिगा समुदाय के 54 फीसदी, लिंगायत समुदाय के 61 फीसदी, ब्राह्णण समुदाय के 57 फीसदी, एडिगा समुदाय के 46 फीसदी और दलित समुदाय के 49 फीसदी लोग मानते हैं कि लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय को दर्जा दिए जाने का मुद्दा विधानसभा चुनाव में बनेगा.
27,919 लोगों से किया गया सर्वे
कर्नाटक की सभी 224 विधानसभा सीटों पर कराए गए सघन सर्वे पर आधारित है. इस सर्वे के लिए कुल 27,919 लोगों का इंटरव्यू किया गया जिसमें 62 फीसदी ग्रामीण और 38 फीसदी शहरी इलाकों के लोग शामिल हैं.
लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. कर्नाटक में लंबे समय से लिंगायत समुदाय की मांग थी कि उन्हें हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिया जाए.
लिंगायत का इतिहास
लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था. बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया. वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई है.