Advertisement

कर्नाटक में जिसकी सरकार, उसकी वापसी की कितनी गारंटी? क्या कहता है यहां का चुनावी ट्रेंड

बस कुछ दिन और... फिर पता चल जाएगा कि कर्नाटक में किसकी सरकार होगी? बीजेपी अपनी सरकार बचा पाएगी या कांग्रेस बाजी मार जाएगी? कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का ट्रेंड बताता है कि जिसकी सरकार होती है, उसका वापसी कर पाना मुश्किल होता है.

कर्नाटक में 10 मई को वोटिंग होनी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर) कर्नाटक में 10 मई को वोटिंग होनी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 7:26 AM IST

कर्नाटक का किंग कौन होगा? 13 मई को इसका पता चल जाएगा. बीजेपी सत्ता वापसी का दावा कर रही है. तो कांग्रेस भी अपनी सरकार बनाने का दम भर रही है. हालांकि, जब नतीजे आएंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी. लेकिन उससे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहता है?

सबसे पहले कर्नाटक चुनाव से जुड़ी बड़ी बातेंः

Advertisement

- 1978 तक हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ही जीत हुई.
- 1983 
- 1985 के बाद कर्नाटक ने कभी भी मौजूदा सत्ताधारी पार्टी को नहीं जिताया.
- पिछले नौ विधानसभा चुनावों का ट्रेंड बताता है कि अगर सत्ता में कांग्रेस रही है तो उसके वोट शेयर में औसतन चार फीसदी की गिरावट आई है, लेकिन दूसरी ओर अगर बीजेपी सत्ता में है तो उसका वोट प्रतिशत थोड़ा सुधरा है.

बाकी दक्षिणी राज्यों की तुलना में कर्नाटक में कोई भी क्षेत्रीय पार्टी राज्य में केंद्र बनकर नहीं उभरी है. हालांकि, देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सेक्युलर) की पहचान कर्नाटक में क्षेत्रीय पार्टी से कहीं ज्यादा है. इसकी जड़ें जनता पार्टी और जनता दल तक जातीं हैं.

1983 के बाद हाई एंटी-इन्कम्बेंसी

- 1957 से 1982 तकः 1957 से लेकर 1982 तक कर्नाटक में कांग्रेस ने एकतरफा राज किया. इस दौरान आठ मुख्यमंत्री आए. आखिरी मुख्यमंत्री देवराज उर्स थे. हालांकि, 1983 के चुनाव में अहम बदलाव आया. कांग्रेस 224 में से सिर्फ 82 सीट ही जीत सकी. पार्टी का वोट शेयर भी 3.8 फीसदी कम होकर 40.4 फीसदी पर आ गया. जनता पार्टी ने इस चुनाव में एक-तिहाई वोट हासिल कर 95 सीटों पर जीत हासिल की. बीजेपी को 18 सीटें मिलीं. जनता पार्टी ने बीजेपी और दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई. उत्तर कन्नड़ जिले के ब्राह्मण चेहरा रहे रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने.

Advertisement

- 1985: इस विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने 139 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की. उसका वोट शेयर भी 10.5 फीसदी बढ़ा. हालांकि, फोन टैपिंग मामले में हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद 1988 में हेगड़े को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उनके बाद एसआर बोम्मई मुख्यमंत्री बने. हालांकि, कांग्रेस ने दावा किया कि बोम्मई सरकार ने बहुमत खो दिया है, जिस कारण राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और 21 अप्रैल 1989 को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि राज्य सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका दिए बगैर बर्खास्त करना असंवैधानिक है. हालांकि, जब सुप्रीम कोर्ट का जब फैसला आया तब तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका था.

- 1989: इस चुनाव में कांग्रेस ने जोरदार वापसी करते हुए 178 सीटों पर जीत दर्ज की. जनता पार्टी के नए अवतार जनता दल को मात्र 24 सीटें मिलीं. उसका वोट शेयर भी 16.5 फीसदी कम हो गया. हालांकि, भारी बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस स्थिर सरकार नहीं चला सकी. 10 महीनों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद वीरेंद्र पाटिल को हटाकर बंगारप्पा को सीएम बनाया गया. दो साल बाद बंगारप्पा को हटाकर वीरप्पा मोइली को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

Advertisement

- 1994: इस चुनाव में कांग्रेस को जोरदार झटका लगा. कांग्रेस सिर्फ 34 सीट ही जीत सकी. उसका वोट शेयर भी 16.8 फीसदी तक घट गया.

- 1999: इस बार फिर कांग्रेस ने जोरदार वापसी करते हुए 132 सीटों पर जीत हासिल की. सत्ताधारी जनता परिवार मात्र 28 सीटें ही जीत सकी. इनमें जेडीयू ने 18 और जेडीएस ने 10 सीटों जीत दर्ज की. संयुक्त रूप से इनका वोट शेयर 24 फीसदी तक गिर गया. एनडीए के हिस्से के रूप में बीजेपी और जेडीयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 20.7 फीसदी वोट हासिल कर 44 सीटें जीतीं.

- 2004: इस चुनाव में किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. कांग्रेस के धरम सिंह मुख्यमंत्री बने. उस समय सिद्धारमैया जेडीएस में थे और उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया. हालांकि, दो साल में ही ये गठबंधन टूट गया, क्योंकि जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने गुपचुप तरीके से बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा से हाथ मिला लिया. इसके बाद येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. 2006 में जेडीएस ने समर्थन वापस ले लिया. बाद में कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा डिप्टी सीएम. हालांकि, दो साल में ही ये गठबंधन फिर टूट गया.

- 2008: इस चुनाव में 110 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर बनाई. येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. 2011 में येदियुरप्पा की जगह सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, सदानंद गौड़ा बहुत ही कम समय तक इस पद पर रहे और जुलाई 2012 में उनकी जगह जगदीश शेट्टार सीएम बन गए. इस चुनाव में जेडीएस ने 28 और कांग्रेस ने 80 सीटें जीती थीं.

Advertisement

- 2013: कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर जोरदार वापसी की. उसका वोट शेयर भी 1.8 फीसदी बढ़ गया. पार्टी में टूट की वजह से बीजेपी को भारी नुकसान हुआ. बीजेपी और जेडीएस ने 40-40 सीटें जीतीं. हालांकि, बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 19 फीसदी से बढ़कर 20.1 फीसदी हो गया. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

- 2018: इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में जोरदार मुकाबला हुआ. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. दोनों ने 117 सीटें जीतीं. कांग्रेस ने 80 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, इस चुनाव में 104 सीटें जीतक बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार नहीं बना सकी.

इस बार क्या...?

आजादी के बाद सात दशकों में कर्नाटक में चार दशकों से ज्यादा लंबे समय तक कांग्रेस ने सरकार चलाई है. ऐसे में जब एक बार फिर कर्नाटक चुनाव के लिए तैयार है तो सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिल रहा है. सत्ताधारी पार्टी की जीत के मिले-जुले परिणामों के साथ, कर्नाटक में चुनावी माहौल बहुत जटिल दिखाई दे रहा है. क्या हमें पहले जैसे ही नतीजे देखने को मिलेंगे या कुछ चौंकाने वाले नतीजे आएंगे. इसके लिए 13 मई तक का इंतजार करना पड़ेगा.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement