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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने मंगलवार को उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी. राज्य की कुल 224 सीटों में से 189 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया गया है. बीजेपी ने प्रत्याशियों के जरिए जातीय समीकरण साधने की कवायद जरूर की है, लेकिन साथ ही पार्टी के लिए मुश्किलें भी खड़ी होनी शुरू हो गई हैं. बीजेपी के बड़े नेता जगदीश शेट्टार ने बगावत का झंडा उठा लिया है तो टिकट कटने से कई विधायक नाराज हो गए हैं. ऐसे में बीजेपी क्या दक्षिण के अपने एकलौते दुर्ग को कैसे बचा पाएगी?
बीजेपी ने कर्नाटक की सियासी जंग फतह करने के लिए अपने सिपहसलारों को उतार दिया है. बीजेपी ने उम्मीदवारों के जरिए सूबे के जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. बीजेपी ने पहली लिस्ट में पुराने नेताओं पर दांव लगाने के बजाय नए चेहरों को तवज्जो दी है. पार्टी ने 27 फीसदी सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जो पहली बार चुनावी मैदान में होंगे. इतना ही नहीं, बीजेपी ने जिस तरह से लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय पर सबसे ज्यादा दांव खेला है, उससे पार्टी की जातीय सियासत को समझा जा सकता है.
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बीजेपी ने ओबीसी समुदाय को करीब 18 फीसदी टिकट देकर जातीय समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है. साथ ही पार्टी ने दलित और आदिवासी समुदाय को उनके लिए आरक्षित से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी बनाए हैं यानि अनारक्षित सीटों पर चार एससी-एसटी के उम्मीदवार उतारे हैं. कर्नाटक की सियासत में लिंगायत, वोक्कालिगा और दलित मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका में हैं और बीजेपी ने इन तीनों ही समुदाय पर खास फोकस किया है.
10 प्वाइंट्स में समझें बीजेपी के टिकट की केमिस्ट्री
बीजेपी में टिकट को लेकर कलह
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आते ही पार्टी में कलह तेज हो गई है. जगदीश शेट्टार का नाम पहली लिस्ट में नहीं रखा गया, जिसके चलते उन्होंने पार्टी से दोबारा फैसले पर विचार करने की मांग करते हुए कहा, 'मैं चुनाव लड़ूंगा, भले मुझे टिकट मिले या नहीं. पिछले छह चुनावों में मैंने 21,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की. आखिर मेरे माइनस पॉइंट क्या है?' उन्होंने कहा कि चुनाव से दूर रहने का कोई सवाल ही नहीं है. इसके अलावा बीजेपी के एक अन्य वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा ने भले ही बीजेपी अध्यक्ष को पत्र लिखकर चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया हो, लेकिन टिकट वितरण को लेकर नाराज माने जा रहे हैं.
जगदीश शेट्टार की सियासी ताकत
टिकट कटने से विरोध तेज
कर्नाटक में बीजेपी ने अपने मौजूदा 11 विधायकों के टिकट काट दिए हैं और उनकी जगह नए चेहरे उतारे हैं. जयनगर सीट से बीजेपी नेता एनआर रमेश की जगह केसी राममूर्ति को प्रत्याशी बनाया है. रमेश का टिकट कटने से उनके समर्थक नाराज हैं और बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन किया. ऐसे ही गोकक से विधायक और पूर्व मंत्री रमेश जरकिहोली ने 2019 के ऑपरेशन लोटस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने भाजपा से अपने सहयोगियों के लिए कागवाड़, अथानी और बेलगाम ग्रामीण के लिए तीन टिकटों की मांग की थी, लेकिन पार्टी ने उनकी मर्जी के मुताबिक टिकट नहीं दिए. ऐसे में वह नाराज माने जा रहे हैं.
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बेलगावी उत्तर से बीजेपी विधायक अनिल बेनाके का टिकट काटे जाने से उनके समर्थक सड़क पर उतर गए हैं. रामदुर्ग सीट से बीजेपी विधायक महादेवप्पा यादवाद का टिकट काटने से समर्थकों ने जमकर विरोध किया. रानीबेन्नूर से पार्टी एमएलसी आर शंकर टिकट मांग रहे थे, लेकिन ने बीजेपी अरुण कुमार को टिकट दिया. आर शंकर अब बगावत की राह पर हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. बेलगावी का कुट्टी परिवार भी नाराज माना जा रहा है. शिरहट्टी से विधायक रामप्पा लमानी का टिकट काट दिया गया है, जिसके चलते उन्होंने बागी रुख अपना रखा है.
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बेलगाम सीट से बीजेपी ने रवि पाटिल की जगह अनिल बेनके, सुल्या सीट से एस अंगार की जगह भागीरथी, पुत्तूर में संजीव मथांदूर के स्थान पर आशा थिम्मप्पा, उड्डपी से रघुपति भट्ट की जगह यशपाल सुवर्णा, कुंदापुर सीट पर हलदी की जगह किरण कोडागु, कापू से सुरेश शेट्टी की जगह लालाजी मेंडन को टिकट दिया है. इसके चलते जिन विधायकों के टिकट कटे हैं, उनके समर्थक नाराज हैं और बीजेपी के खिलाफ विरोध जता रहे हैं.
बीजेपी के लिए मुसीबत न बन जाए
कर्नाटक में बीजेपी पहले से ही भ्रष्टाचार को लेकर घिरी हुई है और अब पार्टी नेताओं की बगावत ने चिंता और बढ़ा दी है. बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने में देरी का बड़ा कारण है राज्य में पार्टी के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा की नाराजगी. वो प्रत्याशियों के चयन को लेकर शनिवार से ही दिल्ली में डेरा डाले हुए थे, लेकिन मंगलवार को नाराज होकर बेंगलुरु वापस लौट गए. हालांकि, बीजेपी ने येदियुरप्पा की नाराजगी की खबरों का खंडन करते हुए कहा कि उन्हें अपने किसी निजी काम के चलते अचानक बेंगलुरु लौटना पड़ा. इसके बावजूद जिस तरह से टिकट कटने के बाद विधायकों के समर्थक नाराज हैं, वो पार्टी की मुसीबत बढ़ा सकती है.
बीजेपी का कैसे गड़बड़ा सकता गेम?
दक्षिण के एकलौते दुर्ग को बचाने का सकंट
बीजेपी भले ही उत्तर भारत में अपने सियासी जड़ें जमाने में कामयाब रही हो, लेकिन दक्षिण भारत में सिर्फ कर्नाटक तक ही पार्टी का आधार सीमित है. कर्नाटक ही दक्षिण का एकलौत राज्य है, जहां पर बीजेपी की सरकार है. कर्नाटक चुनाव बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में पार्टी किसी भी सूरत में अपनी सत्ता नहीं गंवाना चाहती है, जिसके लिए पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा तक पूरा फोकस कर्नाटक में लगा रखे हैं. बोम्मई भले ही सीएम हैं, लेकिन पार्टी उनके चेहरे को आगे करके चुनावी मैदान में नहीं उतरी है. सियासी चक्रव्यूह से घिरी बीजेपी के लिए अपने दक्षिण के दुर्ग को बचाए रखने का संकट खड़ा हो गया है.