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कर्नाटक में कौन बनेगा मुख्यमंत्री? किस पार्टी से कौन दावेदार... नया चेहरा मिलेगा या पुराने की लगेगी 'लॉटरी'

देशभर में प्रत्येक विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ दिलचस्प भी होता है. विविधताओं से भरे देश में हर जगह के अपने अलग मुद्दे और चुनौतियां देखने को मिलती रही हैं. ऐसे में किसी रिजल्ट की भविष्यवाणी करना कभी आसान नहीं कहा जा सकता है. कर्नाटक में चुनावी शोर के बीच अलग-अलग पार्टियों से बड़े-बड़े चेहरे मुख्यमंत्री की रेस में खुद को आगे करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं. यहां हम इन दावेदारों के सकारात्मक और नकारात्मक पॉइंट पर चर्चा करेंगे.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सीएम फेस को लेकर बड़े नेताओं में रेस चल रही है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सीएम फेस को लेकर बड़े नेताओं में रेस चल रही है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 मई 2023,
  • अपडेटेड 10:43 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए हाई-वोल्टेज प्रचार अभियान 8 मई को समाप्त हो जाएगा. मतदान 10 मई को होगा और वोटों की गिनती 13 मई को होगी. लेकिन, यह अभी भी अनिश्चित है कि कौन सरकार बनाएगा और कौन मुख्यमंत्री बनेगा? क्योंकि चुनाव से पहले सर्वे एक तरफ से दूसरी तरफ झूल रहे हैं. फिलहाल, नतीजे क्या आते हैं, इस पर निर्भर करते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए जिन दावेदारों के नाम सबसे आगे चल रहे हैं, उनकी तस्वीरें लगभग साफ होती दिख रही हैं. ऐसे में कर्नाटक का कौन मुख्यमंत्री बन सकता है? आइए जानते हैं- मुख्यमंत्री की कुर्सी के उम्मीदवारों के प्लस और माइनस पॉइंट.

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सिद्धारमैया: लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ा दांव हो सकते

पूर्व सीएम सिद्धारमैया मैसूरु जिले के सिद्धारमनहुंडी से आते हैं और 2013 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहे हैं. अगर कांग्रेस को राज्य में 113 सीटों का साधारण बहुमत मिलता है तो सिद्धारमैया कांग्रेस पार्टी की शीर्ष पसंद हो सकते हैं. हालांकि, 2018 के चुनाव में जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे और कैंपेन की कमान खुद संभाले थे, तब कांग्रेस पार्टी 122 सीटों से 80 सीटों पर आकर सिमट गई थी और हार का सामना करना पड़ा था. फिर भी 'गांधी परिवार', विशेष रूप से राहुल गांधी का मानना ​​है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने और कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सिद्धारमैया सबसे बड़ा दांव होंगे.

सिद्धारमैया: लिंगायत और वोक्कालिगा समाज में विरोध, हिंदू भी नाराज?

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नकारात्मक पक्ष पर बात करें तो सिद्धारमैया पहले से ही 76 वर्ष के हैं और एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. लोग जानते हैं कि उनके पास कितना 'बैगेज' है. अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने कुरुबा समुदाय के अधिकारियों को (चाहे वे प्रशासन में हों या पुलिस विभाग में) विशेष महत्व दिया है. दूसरा, लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच विरोध देखा गया. लिंगायत उनके खिलाफ दुर्भावना रखते हैं क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए 'वीरशैव' और 'लिंगायत' में विभाजित करने की कोशिश की. मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के कुछ कार्यों- टीपू सुल्तान को इतिहास से हटाना और उनका महिमामंडन करना, जेल से आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे पीएफआई और एसडीपीआई के कई कार्यकर्ताओं को रिहा करने के फैसले ने हिंदुओं के बीच नाराजगी बढ़ाई है और एक अच्छा प्रशासन देने में विफल रहे हैं. पार्टी आलाकमान का भी उनके खिलाफ जा सकता है.

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डीके शिवकुमार: पार्टी के लिए सबसे ज्यादा वफादार, फंड भी जुटा सकते

डीके शिवकुमार का मानना ​​है कि मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने का यह उनके लिए सबसे अच्छा मौका है. नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद उन्होंने और उनकी पत्नी ने आधा दर्जन 'शक्तिशाली' मंदिरों में देवताओं का आह्वान करते हुए हवन और पूजन किया और जीत की प्रार्थना की. वो कनकपुरा से आठ बार के विधायक हैं और सिद्धारमैया के विपरीत उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक ठोस आधार बनाया है. वो कांग्रेस पार्टी में सबसे ज्यादा वफादार हैं और संकट के समय अन्य राज्यों के कांग्रेस विधायकों को कर्नाटक में सुरक्षित रखने के लिए 'गो-टू-मैन' रहे हैं. डीके शिवकुमार देश के सबसे अमीर राजनेताओं में से एक हैं. इसके अलावा, कांग्रेस नेतृत्व जानता है कि शिवकुमार पर दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने और आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए धन जुटाने के लिए भरोसा किया जा सकता है.

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डीके शिवकुमार: कानूनी दायरों में उलझे, संगठन के फैसले पर निर्भर

नकारात्मक पक्ष पर बात करें तो वो सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग की जांच के दायरे में हैं. उन्हें 104 दिन जेल में भी बिताने पड़े. फिलहाल, वो जमानत पर बाहर हैं. चूंकि कई मामले पेंडिंग हैं. कांग्रेस नेतृत्व को डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने के सभी फायदे और नुकसान पर विचार करना होगा. क्योंकि केंद्र संभावित रूप से पार्टी को शर्मिंदा करने के लिए पेंडिंग केसों की जांच और कार्रवाई में तेजी ला सकता है. इसके अलावा, वो विधायकों को भी मैनेज कर सकते हैं. सिद्धारमैया की तरह डीके के खिलाफ विधायकों के जाने की कम संभावना है.

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बसवराज बोम्मई: जेडीयू से बीजेपी में आए, 22 महीने से मुख्यमंत्री

बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई हर किसी के पसंदीदा चेहरा नहीं हैं, भले ही पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल कर ले. बोम्मई भाजपा और आरएसएस के लिए एक 'बाहरी' हैं. 2006 में बीएस येदियुरप्पा के कहने पर जनता दल (यूनाइटेड) छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. जुलाई 2021 में येदियुरप्पा को हटाने के बाद पार्टी हाइकमान ने सरकार का नेतृत्व करने के लिए बोम्मई को चुना. उन्होंने पिछले 22 महीनों से खुद को मेहनती साबित किया है और एक अच्छा 'होल्डिंग ऑपरेशन' किया है.

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बसवराज बोम्मई: विवादों से माहौल गरमाया, शांति व्यवस्था गड़बड़ाई

नकारात्मक पक्ष की बात करें वो एक मुख्यमंत्री के रूप में अपना खुद का कद बढ़ाने की कोशिश में विफल रहे हैं. उन्होंने एक दयनीय शुरुआत की, क्योंकि वे पार्टी में कट्टरपंथी तत्वों को नियंत्रित करने में विफल रहे और हिजाब-हलाल-अजान मुद्दों से विवाद और शांति व्यवस्था भी गड़बड़ाई. भाजपा के किसी दिग्गज नेता को मुख्यमंत्री बनाने का बड़ा दबाव होगा, लेकिन अगर भाजपा आधे रास्ते को पार कर जाती है तो बोम्मई कम से कम मई 2024 के लोकसभा चुनाव तक पद पर बने रह सकते हैं.

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प्रह्लाद जोशी: मोदी और शाह के भरोसेमंद

हुबली-धारवाड़ क्षेत्र से 4 बार के सांसद प्रह्लाद जोशी का कद 2019 में मोदी कैबिनेट में मंत्री बनने के बाद से बढ़ा है. भाजपा ने संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी को पूरी तरह से उम्मीदों पर खरा उतरते हुए पाया है. उन्होंने मोदी और अमित शाह दोनों का विश्वास और निकटता हासिल की है. येदियुरप्पा को दरकिनार किए जाने के बाद यह चर्चा थी कि जोशी मुख्यमंत्री के रूप में उनकी जगह लेंगे, लेकिन एक लिंगायत दिग्गज को दूसरे लिंगायत से बदलने की मांग के परिणामस्वरूप बोम्मई को वह अवसर मिला. जोशी के समर्थक उम्मीद कर रहे हैं कि 13 मई के नतीजों के बाद बीजेपी उन्हें सत्ता में लाने के लिए पूरी तरह से बदलाव करेगी.

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प्रह्लाद जोशी: पार्टी को लिंगायत को ध्यान में रखकर लेना होगा फैसला

नकारात्मक पहलू की बात करें तो लोकसभा चुनाव केवल एक साल दूर होने के कारण भाजपा को मुख्यमंत्री का पद लिंगायतों के अलावा किसी और को सौंपने से पहले दो बार सोचना पड़ सकता है, जो राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है. जिस तरह जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए, वह भी यादों में ताजा है. इसके अलावा, पार्टी सोच सकती है कि जोशी को राज्य में भेजने से ज्यादा केंद्र सरकार में रहते महत्वपूर्ण काम करना है.

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एचडी कुमारस्वामी: सौदेबाजी की स्थिति बनी तो फिर लग सकती है लॉटरी

भाग्य के बल पर पहले से ही दो बार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की निगाहें एक और कार्यकाल पर टिकी हैं. अगर भाजपा और कांग्रेस दोनों 113 सीटों के आधे-अधूरे बहुमत को पार कर पाती हैं तो एचडी कुमारस्वामी के हाथ लॉटरी लग सकती है. बेशक, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि जद (एस) कितनी सीटें हासिल कर पाएगी और सरकार बनाने के लिए कांग्रेस या भाजपा को उसके समर्थन की कितनी जरूरत होगी. यदि जद (एस) 30-35 से ज्यादा सीटें जीतकर आती है और जोरदार सौदेबाजी करने की स्थिति में होती है तो देवगौड़ा परिवार मुख्यमंत्री पद की मांग करने की स्थिति में हो सकता है. लेकिन, अगर कांग्रेस या बीजेपी में से कोई भी जादू की संख्या के करीब है तो कुमारस्वामी की उम्मीदें धराशायी हो सकती हैं और जेडी (एस) अपने विधायकों के दल-बदल से जूझ सकती है.

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एचडी कुमारस्वामी: 14 महीने की सरकार चला पाए

नकारात्मक पक्ष की बात करें तो कुमारस्वामी को 2019 में कांग्रेस के साथ एक बुरा अनुभव झेलना पड़ा. तब उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी और अपनी ताकत से चार गुना आकार वाले विधायकों को साथ लेकर सरकार चलाने की नाकाम कोशिश की थी. हालांकि, यह सरकार केवल 14 महीनों में ही गिर गई थी. प्रशासनिक कार्यों में भी उनकी परफॉर्मेंस ठीक नहीं रही.

त्रिशंकु विधानसभा में इन नामों की भी संभावना

'त्रिशंकु' विधानसभा की स्थिति में अन्य आश्चर्यजनक दावेदार हो सकते हैं, इनमें कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे, जी परमेश्वर और एमबी पाटिल प्रमुख हैं, जबकि कांग्रेस से आगे भाजपा दौड़ में आती है तो एसएन संतोष, आर अशोक या सीटी रवि का नाम आ सकता है. 

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तो 'कौन बनेगा कर्नाटक का मुख्यमंत्री...' फिलहाल, ये 13 मई को काउंटिंग के बाद स्पष्ट हो पाएगा.

2024 के चुनाव का माना जा रहा है सेमीफाइनल

कर्नाटक विधानसभा चुनाव को 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जहां बीजेपी दक्षिण भारत में अपने इकलौते दुर्ग को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है तो कांग्रेस मिशन-साउथ के तहत कर्नाटक की सत्ता में वापसी के लिए बेताब है. जेडीएस एक बार फिर से किंगमेकर बनने के लिए हाथ-पैर मार रही है. कर्नाटक के चुनाव पर सिर्फ राज्य के लोगों की ही नहीं बल्कि देश भर की निगाहें हैं.

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2018 में किसी पार्टी को नहीं मिला था पूर्ण बहुमत

पिछली बार मई 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे. कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटें हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 104 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, कांग्रेस ने 80 और जेडी(एस) ने 37 सीटें जीती थीं. 2018 में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी. जेडीएस नेता कुमारस्वामी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन करीब 14 महीने बाद कई कांग्रेसी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और बीजेपी के साथ आ गए थे. इससे कुमारस्वामी सरकार गिर गई थी. इसके बाद बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. हालांकि, दो साल बाद येदियुरप्पा ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद बसवराज बोम्मई राज्य के सीएम बने.

(रिपोर्ट- रामकृष्ण उपाध्याय)

 

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