Advertisement

कांग्रेस का मेनिफेस्टो-बीजेपी का प्रचार, कर्नाटक के चुनावी मुद्दों पर कैसे हावी हो गए 'बजरंग बली'

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करप्शन का मुद्दा उठाकर बीजेपी को घेरा, चुनावी प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ा तो मुद्दे भी बदलते गए. कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने की बात की गई तो बीजेपी ने उसे बजरंग बली से जोड़ दिया. इसके बाद पीएम मोदी की हर चुनावी सभा में जय बजरंग बली का नारा गूंजने लगा.

कर्नाटक चुनाव: जेपी नड्डा और मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक चुनाव: जेपी नड्डा और मल्लिकार्जुन खड़गे
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 09 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:32 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार सोमवार को समाप्त हो गया. सियासी दलों के नेताओं ने राज्य की जनता को लुभाने की हरसंभव कोशिश की. बीजेपी की ओर से चुनावी कमान पीएम मोदी और अमित शाह ने संभाल रखी थी तो कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाले रखा. बीजेपी के लिए कई बार परफेक्ट फिनिशर की भूमिका निभा चुके पीएम मोदी ने 16 जनसभाएं और 6 रोड शो किए तो कांग्रेस के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी जमकर पसीना बहाया और दो सप्ताह तक कैंप किए रखा. 

Advertisement

करप्शन से कम्युनलिज्म तक पहुंचा मुद्दा

कर्नाटक चुनाव के ऐलान से पहले कांग्रेस ने बीजेपी को घेरने के लिए भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था. वहीं, बीजेपी अपने विकास कार्यों पर फोकस कर रही थी. हालांकि, चुनावी तपिश जैसे-जैसे बढ़ती गई, वैसे-वैसे अलग-अलग मुद्दे भी हावी होते गए. भ्रष्टाचार के मुद्दे से होते हुए प्रचार जहरीला सांप, विषकन्या, आरक्षण और बजरंग दल पर बैन से होते हुए बजरंग बली तक आ गया. इस तरह करप्शन के मुद्दे से शुरू हुआ कर्नाटक चुनाव कम्युनलिज्म के मुद्दे पर जाकर खत्म हुआ.

चुनावी प्रचार के दौरान बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस ने बहुमत हासिल करने के लिए मतदाताओं को लुभाने के साथ-साथ एक-दूसरे पर कई आरोप लगाने की पूरी कोशिश की. कांग्रेस ने चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमले से बचने की रणनीति बनाई और ध्रुवीकरण की स्थिति भी न आने देने का प्रयास किया, लेकिन आखिरकार बीजेपी की उसी हिंदुत्व की पिच पर खड़ी नजर आई, जिसे बीजेपी अपने लिए मुफीद मानती है. 

Advertisement

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को मतदान होना है. बीजेपी साढ़े तीन दशकों से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को तोड़ने और दक्षिण भारत में अपने एकलौते दुर्ग के बचाने की कोशिश में जुटी है. वहीं, कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में वापसी कर खुद को 2024 के लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित करने की कवायद में है. ऐसे में जेडीएस एक बार फिर से किंगमेकर बनने का सपना संजोए हुए है. ऐसे में देखना है कि कर्नाटक की चुनावी जंग कौन फतह करता है?  

करप्शन से शुरू हुआ कर्नाटक चुनाव प्रचार 
कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले कांग्रेस ने बीजेपी को घेरने के लिए भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया था. कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया गया जो धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे तक ने चुनावी रैलियों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया. करप्शन के चलते ही एस. ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो बीजेपी विधायक को जेल जाना पड़ा. स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने इसे लेकर पीएम तक से शिकायत कर डाली थी. बीजेपी के लिए यह मुद्दा गले की फांस बना रहा और कांग्रेस इसे धार देती रही. 

Advertisement


आरक्षण पर चुनावी रार 
कर्नाटक चुनाव घोषणा से ठीक पहले बीजेपी सरकार ने मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर उसे लिंगायत और वोक्कालिंगा के बीच बांट दिया था. बोम्मई सरकार के इस फैसले का कांग्रेस ने विरोध किया, बीजेपी ने इसके खिलाफ आक्रामक तरीके से मोर्चा खोल दिया. चुनाव के दौरान यह मुद्दा छाया रहा. सीएम बोम्मई से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक खुलकर कहते रहे कि धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. वहीं, कांग्रेस आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की पैरवी करती रही और आरक्षण के दायरे को 75 फीसदी करने का वादा किया. इस तरह से आरक्षण का मुद्दे दोनों ओर से हावी रहा. 


जहरीला सांप बनाम विषकन्या 
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 'जहरीला सांप' बनाम 'विषकन्या' तक का जिक्र किया गया. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कलबुर्गी की रैली में पीएम मोदी की तुलना जहरीले सांप से की थी. इसके बाद  बीजेपी ने कांग्रेस को घेरना शुरू किया. जहरीले सांप वाले बयान के जवाब में बीजेपी के विधायक यतनाल ने कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की तुलना 'विषकन्या' से कर दी. इस तरह से कर्नाटक के चुनावी घमासान में जहरीला सांप और विषकन्या वाले बयान पर संग्राम छिड़ा रहा. 


बजरंग दल पर बैन बना मुद्दा
कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए जारी घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने की बात रखी. इसे लेकर बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पीएम मोदी ने अपनी रैली में कहा कि कांग्रेस ने पहले श्रीराम को बंद किया और अब हनुमानजी को ताले में बंद करने की तैयारी है. इस तरह बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. इस तरह बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड को खुलकर खेलना शुरू कर दिया और बजरंग बली के नाम पर ध्रुवीकरण की जमकर कोशिश की गई. 

Advertisement

द केरल स्टोरी पर सियासत
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बीच धर्म परिवर्तन पर आधारित फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर सियासत तेज हो गई है. इस फिल्म को कांग्रेस सहित विपक्षी दल बकवास और प्रोपेगेंडा बता रहे हैं तो पीएम मोदी चुनावी मंच से इस फिल्म का जिक्र कर रहे हैं. इतना ही नहीं उनका कहना है कि केरल की हकीकत को बयां करने वाली फिल्म है. बीजेपी नेता इस फिल्म को उसी तरह से देखने की अपील कर रहे हैं, जिस तरह से द कश्मीर फाइल्स को लेकर किया था. इस तरह बीजेपी ने हिंदुत्व पॉलिटिक्स के जरिए ध्रुवीकरण करने का दांव चला है. ऐसे में देखना है कि कर्नाटक की चुनावी जंग में कौन किस पर भारी पड़ता है? 

कांग्रेस कैसे पार पाएगी? 

कर्नाटक चुनावों में बीजेपी को बजरंग बली का सहारा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर चुनावी सभा में जय बजरंग बली का नारा गूंज रहा है. मोदी और भाजपा के इन तेवरों से साफ जाहिर है कोई भी चुनाव हो बीजेपी आखिर तक आते-आते हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के हथियार से ही अपने विरोधी की चुनौती का सामना करती है. कर्नाटक के रण में भी उसी हथियार से बीजेपी ने कांग्रेस को सियासी मात देने का खाका खींचा. हालांकि, बीजेपी के इस दांव से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के मुद्दे पर एजेंडा सेट किया है. 

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement