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ज्यादा वोटिंग और सत्ता पलट... कर्नाटक का वोटिंग ट्रेंड देता है चुनावी नतीजों को लेकर ये संकेत

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है तो जेडीएस इसे त्रिकोणीय बनाने की जंग लड़ रही है. ऐसे में कर्नाटक के वोटिंग पैटर्न और ट्रेंड देखें तो राज्य के चुनावी मिजाज का एहसास साफ तौर पर हो रहा है. राज्य में जब-जब ज्यादा वोटिंग हुई है तो सत्ता परिवर्तन हुआ है.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न कर्नाटक विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न
दीपू राय
  • नई दिल्ली ,
  • 04 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस सहित सभी दल अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हैं, लेकिन कर्नाटक में अब तक हुए 14 चुनाव के वोटिंग पैटर्न और ट्रेंड को देखकर सूबे के सियासी मूड को बखूबी तरीके से समझा जा सकता है. कर्नाटक में हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन की रिवाज भी रहा है. इसके अलावा कर्नाटक में वोटिंग फीसदी कम होने और ज्यादा होने से चुनाव नतीजे कैसे प्रभावित होते हैं, आइए समझते हैं.  

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कर्नाटक में अब तक कुल 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. आठ चुनावों में वोटिंग परसेंटेज में इजाफा हुआ, जिसमें सिर्फ एक बार 1962 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई है. वहीं, पांच चुनावों में वोट प्रतिशत कम रहा जिसमें बीजेपी एक बार सत्ता में लौटी है. 

कर्नाटक में वोटिंग से कोई संकेत मिलता है?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि अधिक या फिर कम मतदान प्रतिशत के बावजूद सत्ता में वापस आने की संभावना कम रहती है. चुनाव में एक आम धारणा है कि ज्यादा मतदान होने का अर्थ सत्ता विरोधी लहर और कम वोटिंग के होने का मतलब राज्य में सत्ता समर्थक लहर नहीं है. 

कर्नाटक में पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न के विभिन्न रुझान देखे गए हैं. चुनाव के आंकड़ों के अनुसार राज्य में अभी तक कुल 14 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से करीब आठ मौकों पर पिछले चुनाव की तुलना में मतदान फीसदी में बढ़ोतरी दिखी. 

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हालांकि, इन आठ विधानसभा चुनाव में से सत्ताधारी दल केवल एक चुनाव में सत्ता में पांच साल का कार्यकाल हासिल करने में सफल रहा. इसके अलावा बाकी चुनावों में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी या तो किसी के समर्थन वापस लेने से या पद छोड़ने के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. 

साल 1983 में विधानसभा चुनाव में 6.2 फीसदी कम वोटिंग हुई थी. अगर पांच विधानसभा चुनावों के ट्रेंड को देखा जाए तो मौजूदा सत्ताधारी दल केवल साल 2008 के चुनाव में ही जीत हासिल करने में सफल रहा, जहां वोटिंग परसेंटेज में बहुत मामूली गिरावट आई थी.

2018 चुनाव का वोटिंग ट्रेंड

2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में सबसे अधिक 72.1 फीसदी मतदान हुआ था. राज्य की राजधानी बेंगलुरु के बाहरी इलाके में स्थित होसकोटे निर्वाचन क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनाव में लगभग 90 फीसदी का सबसे ज्यादा वोटिंग पर्सेंटेज दर्ज किया गया था. वहीं, सबसे कम वोटिंग बेंगलुरु शहर के दशरहल्ली सीट पर देखी गई, जिसमें लगभग 48 फीसदी मतदान हुआ था. 

कर्नाटक में पिछले चुनावों की तुलना में अब वोटिंग पैटर्न देखें तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ्ज्यादा वोटिंग हो रही है. राज्य के लोगों का वोटिंग में रुझान बढ़ा है. साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में 58.49 फीसदी वोटिंग हुई थी जो 2019 में 68.1 फीसदी हो गई. 

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वहीं, राज्य में अब तक के सभी विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो तुलनात्मक रूप से  पर्सेंटेज बढ़ता जा रहा है.  राज्य में 1989 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों में औसतन 64.3 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. इसी अवधि के दौरान विधानसभा चुनावों में औसत मतदान 68.4 प्रतिशत रहा है. 

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वहीं, कर्नाटक के पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के वोटिंग पैटर्न को देखें तो विपरीत ट्रेंड देखने को मिल रहा है. लोकसभा चुनाव में 67.9 प्रतिशत का औसत मतदान हुआ तो इसी अवधि में विधानसभा चुनावों में औसत मतदान 63.2 प्रतिशत रहा है. 

हाल के कुछ वर्षों में कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में समग्र मतदान की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ रही है, जो लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है. इस बार के चुनाव ऐलान से काफी पहले ही राजनीतिक दल एक्टिव हो गए थे. बीजेपी छोड़कर जेडीएस और कांग्रेस ने ज्यादातर सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान भी कर दिया है. ऐसे में राज्य की सियासी तपिश बढ़ गई है. देखना है कि इस बार नतीजे क्या रहते हैं? 

 

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