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वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर होने के बावजूद भारत में क्यों नहीं बना चुनावी मुद्दा?

वायु और जल प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं, लेकिन फिर भी इनको चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है. हर साल प्रदूषण के चलते कई लोगों की जान तक चली जाती है, लेकिन यह अब भी चुनावी एजेंडे से गायब रहता है. आखिर इसकी वजह क्या है, जिसके चलते राजनीतिक दल प्रदूषण को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते हैं? पढ़िए पूरी खबर...

प्रतीकात्मक तस्वीर ( Photo:aajtak) प्रतीकात्मक तस्वीर ( Photo:aajtak)
सिद्धार्थ तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2019,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

भारत में प्रदूषण बड़ी समस्या बनता जा रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव के मुद्दे से यह एकदम गायब है. उत्तर भारत के तमाम इलाकों में पराली जलाने की वजह से हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में न नेताओं के लिए और न ही आम आदमी के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है. चुनाव के दौरान इसकी चर्चा तक नहीं की जा रही है. वहीं, पर्यावरणविदों का कहना है कि आज वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, लेकिन आम लोगों में अभी तक इसके प्रति जागरूकता उस स्तर तक नहीं आई है, जिससे यह चुनावी मुद्दा बन सके.

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पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही राजस्थान में जब धान की पराली जलाई जाती है, तो दिल्ली-एनसीआर में लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ होती है. दिवाली पर तो वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर चला जाता है और तमाम लोग इसके शिकार हो जाते हैं. पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे महीन कण हवा में सामान्य के मुकाबले 10 गुना तक बढ़ जाते हैं. इस वजह से दिल्ली-एनसीआर की हवा अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने में जहरीली हो जाती है.

जाड़े के सीजन में तो इस समस्या को लेकर दिल्ली जैसे मेट्रोपॉलिटन शहर में सरकार को तमाम कदम उठाने पड़ते हैं. अगर जल प्रदूषण की बात करें, तो दिल्ली में यमुना नदी की हालत एक गंदे नाले की तरह हो गई है. यमुना के पानी के अंदर रहने वाले जीव-जंतु मर चुके हैं और पानी पूरी तरीके से क्षारीय हो गया है. दिल्ली-एनसीआर की दूसरे इलाकों की बात करें, गाजियाबाद में हिंडन नदी की स्थिति प्रदूषण के मामले में बद से बदतर हो चुकी है. हापुड़ के पास की काली नदी अब नाला बन चुकी है. इन सबके बावजूद इन नदियों के प्रति उदासीनता बेहद चिंताजनक है.

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दिल्ली निवासी कुंदन कुमार का कहना है कि जब नदी से लोगों का लेना-देना ही नहीं रहा, तो उसके प्रति लोगों का प्यार कैसे हो सकता है? जाने-माने पर्यावरणविद् और यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के साइंटिस्ट इंचार्ज फयाज खुदसर के मुताबिक यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बार किसी भी राजनीतिक दल ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह नहीं दी. उनका मानना है कि लोगों को साफ हवा और पानी से भरी हुई नदी को अब चुनाव का मुद्दा बनाना चाहिए, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.

उनका मानना है कि वायु और जल प्रदूषण को लेकर लोगों में और ज्यादा जागरूकता की जरूरत है. हमारे जैसे पर्यावरणविद् आम लोगों के बीच पर्यावरण के महत्व को बताने में कहीं ना कहीं नाकाम रहे हैं. जाने-माने पर्यावरणविद् विलास गोकटे के मुताबिक आम लोगों में पर्यावरण को लेकर चिंता तो जरूर है, लेकिन यह चुनाव का मुद्दा बने, इसके लिए अभी इतनी जागरूकता लोगों में नहीं आई है.

उनका कहना है कि वायु प्रदूषण से लोग प्रभावित हो रहे हैं और नदियां पूरी तरीके से खत्म हो रही हैं. इससे हमारा अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है. ऐसे में राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर सोचना होगा. उनको पर्यावरण के मसले पर अपनी रणनीति लोगों के बीच रखनी होगी. इस बार यह चुनाव का मुद्दा तो नहीं रहा, लेकिन आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर चुनाव का मुद्दा बनेगा.

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आपको बता दें कि लोकसभा की 543 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. अब तक 6 चरणों के मतदान हो चुके हैं और आखिरी चरण के मतदान 19 मई को होंगे. इसके बाद 23 मई को वोटों की गिनती होगी और चुनाव के नतीजे जारी किए जाएंगे.

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