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छोटे पर्दे की हर दिल अजीज बहू 'तुलसी' और 'गांधी परिवार' के गढ़ अमेठी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में 55120 मतों के अंतर से ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली स्मृति ईरानी ने एक बड़ा उलटफेर करके राजनीति के गलियारों में अपना कद काफी ऊंचा कर लिया है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पिछली बार राहुल से अमेठी में एक लाख से अधिक मतों से हार गई थीं. इस बार फिर उसी संसदीय क्षेत्र से बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया और पिछले पांच साल से अमेठी में सक्रिय ईरानी ने राहुल गांधी से उस हार का बदला ले लिया.
राहुल ने औपचारिक नतीजे घोषित होने से पहले ही अपनी हार स्वीकार करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्मृति ईरानी को जीत की बधाई भी दे डाली. ईरानी ने अपनी जीत के बाद ट्वीट करके दुष्यंत कुमार की कविता की पंक्तियां लिखी, 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता.' राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह भी कहना है कि अमेठी में अपनी हार की सुगबुगाहट पाने के बाद ही गांधी ने केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया था.
पिछली बार चुनाव हारने के बावजूद उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया और बाद में वह सूचना प्रसारण और फिर कपड़ा मंत्री रहीं.अमेठी में चुनाव अभियान के दौरान अक्सर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से उनका वाकयुद्ध भी हुआ जिन्होंने उन्हें 'बाहरी' करार दिया था. पिछले महीने प्रियंका गांधी ने उन पर आरोप लगाया था कि राहुल का अपमान करने के लिए उन्होंने जूते बांटे और कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष की लोकसभा सीट के मतदाता भिखारी नहीं है. चुनावी राजनीति में उनका पदार्पण 2004 में हुआ जब दिल्ली के चांदनी चौक इलाके से वह कांग्रेस के कपिल सिब्बल से हार गई थीं.
कब और कितनी हुई वोटिंग
अमेठी सीट पर वोटिंग पांचवें चरण में 6 मई 2019 को हुई थी. इस सीट पर 54.05 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. इस सीट पर कुल 17,41,033 मतदाता हैं, जिनमें से 9,40,947 मतदाताओं ने अपने वोट डाले हैं.
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कौन-कौन हैं प्रमुख उम्मीदवार
सामान्य वर्ग वाली इस सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मुख्य मुकाबला बीजेपी की स्मृति ईरानी से था. इस सीट पर कुल 15 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. सपा और बसपा ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे.
2014 का चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट पर 52.38 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें कांग्रेस के राहुल गांधी 46.71 फीसदी (4,08,651) वोट मिले थे और और उनके निकटतम बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी को 34.38 फीसदी (3,00,748) मिले थे. इसके अलावा बसपा के धर्मेंद्र प्रताप सिंह को महज 6.60 फीसदी (57,716) वोट मिले थे. इस सीट पर कांग्रेस के राहुल गांधी ने 1,07,903 मतों से जीत दर्ज की थी.
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अमेठी सीट का इतिहास
आजादी के बार पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी संसदीय सीट वजूद में ही नहीं थी. पहले ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था और यहां से कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर जीते थे. इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना सीट अस्तित्व में आई, जो फिलहाल अमेठी जिले की तहसील है. केशकर यहां से जीतने में भी सफल रहे. 1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे.
अमेठी लोकसभा सीट 1967 में परिसीमन के बाद वजूद में आई. अमेठी से पहली बार कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने. इसके 1971 में भी उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन 1977 में कांग्रेस ने संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह जीत नहीं सके. इसके बाद 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी चुनावी मैदान में उतरे और इस तरह से इस सीट को गांधी परिवार की सीट में तब्दील कर दिया. हालांकि 1980 में ही उनका विमान दुर्घटना में निधन हो गया. इसके बाद 1981 में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए.
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी एक बार फिर उतरे तो उनके सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें महज 50 हजार ही वोट मिल सके. जबकि राजीव गांधी 3 लाख वोटों से जीते. इसके बाद राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में चुनाव जीते. लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1996 में शर्मा ने जीत हासिल की, लेकिन 1998 में बीजेपी के संजय सिंह हाथों हार गए.
सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने 1999 में अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया. वह इस सीट से जीतकर पहली बार सांसद चुनी गईं, लेकिन 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए ये सीट छोड़ दी. इसके बाद से राहुल ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की.
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