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बांदाः इस धार्मिक नगरी पर रहा कांग्रेस से लेफ्ट तक का कब्जा

उत्तर प्रदेश की बांदा लोकसभा सीट प्रदेश की ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस से लेकर बसपा, सपा, बीजेपी और वामपंथी दल भी चुनावी परचम लहरा चुके हैं. मध्यप्रदेश से सटा बांदा जिला चित्रकूट मंडल का हिस्सा है, इस शहर का नाम महर्षि वामदेव के नाम पर रखा गया था.

बीजेपी प्रतीकात्मक फोटो बीजेपी प्रतीकात्मक फोटो
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 10:06 AM IST

उत्तर प्रदेश की बांदा लोकसभा सीट प्रदेश की ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस से लेकर बसपा, सपा, बीजेपी और वामपंथी दल भी चुनावी परचम लहरा चुके हैं. मध्यप्रदेश से सटा बांदा जिला चित्रकूट मंडल का हिस्सा है, इस शहर का नाम महर्षि वामदेव के नाम पर रखा गया था. यहां 'शजर' के पत्थर पाए जाते हैं जिनका उपयोग गहने बनाने में किया जाता है. बांदा के चारों तरफ अनेक पर्यटक स्थल हैं. इस शहर से लगे चित्रकूट और कालिंजर को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं. मौजूदा समय में बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है.

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2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने श्यामा चरण गुप्ता को मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया है. 

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बांदा लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अभी तक 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं जिसमें कांग्रेस को 4 बार जीत मिली है. इसके अलावा बीजेपी (3 बार), सीपीआई (2 बार), बसपा (2 बार), सपा (2 बार), लोकदल (एक बार) और जनसंघ (एक बार) भी यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रही है.

बांदा लोकसभा सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा चुनाव हुए और राजा दिनेश सिंह सांसद चुने गए. इसके बाद 1962 में हुए चुनाव में सावित्री निगम कांग्रेस से सांसद बनीं. बांदा में कांग्रेस के विजयी रथ पर 1967 में ब्रेक लगा और यहां से वामपंथी दल सीपीआई के जागेश्वर सांसद चुने गए. इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में जनसंघ अपना खाते खोलने में कामयाब रहा.

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1977 में यहां फिर से उलटफेर देखने को मिला और लोकदल के अंबिका प्रसाद ने जीत हासिल की. हालांकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और रामनाथ दूबे सांसद बने. इसके बाद 1984 में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन इसके बाद से अभी तक कांग्रेस वापसी नहीं कर सकी है. 1989 में सीपीआई दूसरी बार जीत हासिल करने में कामयाब रही.

बांदा लोकसभा सीट पर बीजेपी का कमल पहली बार 1991 में खिला. प्रकाश नारायण यहां से सासंद चुने गए, लेकिन 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के राम सजीवन सिंह सांसद बने. इसके बाद 1998 में बीजेपी ने रमेश चंद्र द्विवेदी को मैदान में उतारकर वापसी की, लेकिन एक साल के बाद ही 1999 में हुए चुनाव में बसपा ने बीजेपी को मात देकर ये सीट छीन ली.

2004 के लोकसभा चुनाव में सपा ने श्यामाचरण गुप्ता को मैदान में उतारा और चुनाव जीतकर वो संसद तक पहुंचे. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा के आरके पटेल सांसद बने. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी के टिकट पर भैरो प्रसाद मिश्रा यहां से सांसद चुने गए.

सामाजिक ताना-बाना

बांदा लोकसभा सीट पर 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 23,55,901 है. इसमें 85.08 फीसदी ग्रामीण और 14.92 फीसदी शहरी आबादी है. अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 24.2 फीसदी है. इसके अलावा ब्राह्मण और कुर्मी मतदाता निर्णयक भूमिका में हैं. दिलचस्प बात ये है कि करीब 21 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.

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बांदा संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें बाबेरु, नारैनी, बांदा, चित्रकूट और माणिकपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं. नारैनी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. मौजूदा समय में सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में बांदा संसदीय सीट पर 53.59  फीसदी मतदान हुआ था. इस सीट पर बीजेपी के भैरो प्रसाद मिश्रा ने बसपा के आरके सिंह पटेल को एक लाख 15 हजार 788 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी.

बीजेपी के भैरो प्रसाद मिश्रा को 3,42,066 वोट मिले

बसपा के आरके पटेल को 2,26,278 वोट मिले

सपा के बाल कुमार पटेल को 1,89,730 वोट मिले

कांग्रेस के विवेक सिंह को 36,650  वोट मिले

सीपीआई (एम) रामचंद्र सारस को 15,156 वोट मिले

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

बांदा लोकसभा सीट से 2014 में चुनाव जीतने वाले भैरो प्रसाद मिश्रा का लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन रहा है. इस लोकसभा के 331 दिन चले सदन की कार्यवाही के दौरान उन्होंने 546 सवाल सदन में उठाए और 2,038 बहस में हिस्सा लिया. दिलचस्प बात यह है कि भैरो प्रसाद 21 निजी बिल लेकर भी आए. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 15.59 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया.

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