
बैरकपुर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का अहम गवाह है. बैरकपुर की धरती आजादी की लड़ाई की तमाम घटनाओं की चश्मदीद है. इस शहर में बने स्मारक इसकी तस्दीक करते हैं. बैरकपुर के मौनीरामपुर में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के जनक कहे जाने वाले सुरेंद्रनाथ बनर्जी का जन्म हुआ था. मुगल काल में आनंद मंगल लिखने वाले बांग्ला के सुप्रसिद्ध लेखक भारत चंद्र राय गुनाकर बैरकपुर के मुलाजोर में रहते थे. विभिन्न धार्मिक गीतों के रचयिता राम प्रसाद सेन हालीसहर में पैदा हुए थे. जबकि भारतीय राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के लेखक बंकीम चंद्र चटर्जी का जन्म नैहाटी में हुआ था. इस महत्व को देखते हुए यहां नेता जी बोस ओपन यूनिवर्सिटी स्थापित की गई.
आजादी की लड़ाई में अहम हिस्सेदार रहे बैरकपुर कोलकाता के उत्तरी छोर से लेकर उत्तर 24-परगना तक पसरा हुआ है. हुगली नदी के किनारे बसा यह शहर पश्चिम बंगाल में औद्योगिक गढ़ के तौर पर जाना जाता है, जहां चिमनियों से निकलने वाला धुआं अक्सर आसमान पर छाया रहता है. बैरकपुर खासकर जूट उद्योग के लिए प्रसिद्ध है. यहां हथियारों का भी निर्माण होता है. बंदूक बनाने की कई फैक्ट्रियां यहां चल रही हैं.
कांग्रेस और माकपा के बीच सीधा मुकाबला
लोकसभा क्षेत्र के तौर पर 1952 में अस्तित्व में आए बैरकपुर में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है. हालांकि ज्यादातर समय यहां से माकपा के सदस्य चुने जाते रहे हैं. 1952 में पहले आम चुनाव के दौरान कांग्रेस के रामनंद दास सांसद चुने गए थे. 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बिमल कुमार घोष चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 1962 के चुनावों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की रेणु चक्रवर्ती सांसद चुनी गई थीं. मगर 1967 और 1971 के आम चुनावों में माकपा के मोहम्मद इस्माइल लगातार चुनाव जीते. 1977 के चुनावों में कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर वापसी की और उसके प्रत्याशी सौगत रॉय सांसद चुने गए थे.
साल 1980 में हुए चुनाव में मोहम्मद इस्माइल माकपा के टिकट पर मैदान में दोबारा उतरे और जीत हासिल की. मगर 1984 के चुनावों में कांग्रेस ने फिर वापसी की और उसके प्रत्याशी देबी घोषाल चुनाव जीते. लेकिन उसके बाद 1989, 1991,1996,1998 और 1999 के चुनावों में तड़ित तोपदार माकपा के टिकट पर लगातार लोकसभा सदस्य चुने जाते रहे. लेकिन इस सीट पर पहली बार 2009 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को सफलता मिली और उसके प्रत्याशी दिनेश त्रिवेदी चुनकर संसद पहुंचे. 2009 में दिनेश त्रिवेदी ने करीब 4.5 लाख मत पाकर माकपा के तड़ित तोपदार को करीब 90 हजार वोटों से हराया था. मगर 2004 में माकपा के उम्मीदवार ने तृणमूल के प्रत्याशी को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से शिकस्त दी थी.
सामाजिक ताना बाना
औद्योगिक इलाका होने की वजह से बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में आधी से ज्यादा आबादी कामकाजी है. इसमें में भी हिंदी बोलने वालों की हिस्सेदारी तकरीबन 35 फीसदी मानी जाती है. जाहिर है कोलकाता से महज चालीस किलोमीटर दूर बैरकपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में हिंदी भाषियों में से सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की है. जनगणना 2011 के आंकड़े बताते हैं कि बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र की आबादी 19,27,596 है जिनमें 16.78% गांव जबकि 83.22% आबादी शहर में रहती है. इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 16.14 और 1.44 फीसदी है. मतदाता सूची 2017 के अनुसार 13,88,832 मतदाता 1530 मतदान केंद्रों पर वोटिंग करते हैं. बैरकपुर में 2014 के आम चुनावों में 81.77% मतदान हुआ था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 80.46% है. बैरक संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं जिनमें अम्दांगा (Amdanga), बिजपुर (Bijpur), नैहाटी (Naihati), भाटपाड़ा (Bhatpara), जगतदल (Jagatdal), नौपारा (Noapara) और बैरकपुर (Barrackpur) शामिल हैं.
2014 का जनादेश
कहा जाता है कि बैरकपुर में जूट मिलों में काम करने वाले मजदूर नेताओं की किस्मत का फैसला करते हैं. इसलिए 2014 के चुनावों में माकपा ने 1989 में कानपुर से सांसद रहीं सुभाषिनी अली को दिनेश त्रिवेदी के खिलाफ मैदान में उतारा था. लेकिन सुभाषिनी अली को शिकस्त का सामना करना पड़ा था. वहीं बीजेपी के प्रत्याशी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरके हांडा तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें मोदी लहर का भी कोई लाभ नहीं मिल सका. उस दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी हांडा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी. बीजेपी को उम्मीद थी कि बिहार और उत्तर प्रदेश से आकर बैरकपुर में बसे हिंदीभाषी मतदाताओं की वजह से उसे लाभ मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
वहीं कांग्रेस के तोपदार चौथे स्थान पर रहे थे. बता दें कि दिनेश त्रिवेदी यूपीए सरकार में रेल मंत्री भी रहे. उन्होंने रेलमंत्री के पद से 18 मार्च 2012 को इस्तीफा दे दिया था. दिनेश त्रिवेदी ने तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री नियुक्त होने के बाद रिक्त हुए रेलमंत्री का पदभार 13 जुलाई 2011 को संभाला था. आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी रेलमंत्री ने संसद में रेलबजट पेश करने के ठीक पांच दिन के बाद रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया हो.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बैरकपुर संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए सांसद निधि के तहत 25 करोड़ रुपये आवंटित है. इसमें 22.47 करोड़ रुपये को मंजूर किया गया है जिसमें 87.87 फीसदी रकम खर्च हो चुकी है.