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बेरहामपुर लोकसभा सीटः कांग्रेस, बीजद और बीजेपी के नए उम्मीदवारों में है मुकाबला

ओडिशा में बीजेपी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए जोर लगा रही है. बीजेपी का इस राज्य पर काफी फोकस है. तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों कई रैलियां कर चुके हैं. बीजेपी को लगता है कि राज्य की सत्ता पर कई साल से कायम बीजद के नवीन पटनायक को बेदखल करने का अच्छा मौका है.

नवीन पटनायक (फोटो-इंडिया टुडे अर्काइव) नवीन पटनायक (फोटो-इंडिया टुडे अर्काइव)
वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 5:32 AM IST

ओडिशा के बेरहामपुर लोकसभा सीट पर पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होना है. यहां चौतरफा मुकाबला देखने को मिल सकता है. कांग्रेस ने वी. चंद्रशेखर नायडू, बीजू जनता दल (बीजद) ने चंद्र शेखर साहू, बहुजन समाज पार्टी ने तिरुपति राव करनम और बीजेपी ने भ्रुगू बक्सीपात्रा को चुनाव मैदान में उतारा है. इसके अलावा सोशलिस्ट यूनिट सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के सोमनाथ बेहरा, ओडिशा प्रगति दल के श्रीहरि पटनायक के साथ साथ दो निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में हैं. खास बात यह है कि बीजद सहित बीजेपी और कांग्रेस ने इस चुनाव में नए चेहरों को उतारा है.

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इस सीट पर चुनाव 1952 से ही होते आए हैं, लेकिन इस लोकसभा क्षेत्र का नाम बेरहामपुर 1977 में पड़ा. तब इस सीट का नाम घुमसुर था. 1952 में यहां से उमा चरण पटनायक चुनाव जीते. 1952 में ही यहां उपचुनाव की नौबत भी आ गई और इस बार सीपीआई के बिजय चंद्र दास चुनाव जीते. 1957 में इस सीट का नाम गंजाम हो गया. इस बार चुनाव में बतौर निर्दलीय उमा चरण पटनायक विजयी रहे. 1962 में इस सीट का नाम बदलकर छतरपुर रखा गया. इस बार यहां कांग्रेस उम्मीदवार का डंका बजा.

वर्ष 1971 में भी यहां पर कांग्रेस को जीत मिली. 1977, 80, 84 में यहां से कांग्रेस कैंडिडेट जगन्नाथ राव ने अपना परचम बुलंद किया. 1989 और 91 में कांग्रेस के गोपीनाथ गजपति यहां से चुने गए. 1996 में यहां से पूर्व PM पीवी नरसिम्हा राव कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीते. दरअसल नरसिम्हा राव 1996 में आंध्र के नंदयाल से भी जीते थे, लेकिन उन्होंने इसी सीट से अपनी उम्मीदवारी कायम रखी. 1998 के लोकसभा इलेक्शन में भी यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा और जयंती पटनायक विजय रथ पर सवार हुए. 1999 में इस सीट पर बीजेपी ने अपना खाता खोला. आनंदी चरण साहू ने यहां कमल खिलाया. 2004 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और चंद्र शेखर साहू चुनावी रेस में अग्रणी रहे. हालांकि 2009 में बीजू जनता दल ने इस सीट पर घुसपैठ कर ही ली. सिद्धांत महापात्रा इस सीट से विजयी रहे. 2014 में भी उनकी सीट का सिलसिला बरकरार रहा.

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गौरतलब है कि 2009 में इस सीट पर दाखिल होने वाली बीजद ने 2014 आते आते इस क्षेत्र में अपनी जड़ें अच्छी तरह जमा ली. 2014 में बीजू जनता दल के सिद्धांत महापात्रा को 3 लाख 98 हजार 107 वोट मिले. वह 127720 वोटों से चुनाव जीते. दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के चंद्र शेखर साहू को 270387 वोट मिले. इस सीट पर बीजेपी तीसरे नंबर पर रही. पार्टी कैंडिडेट रामचंद्र पांडा को 158811 वोट मिले.

बहरहाल, ओडिशा में बीजेपी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए जोर लगा रही है. बीजेपी का इस राज्य पर काफी फोकस है. तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों कई रैलियां कर चुके हैं. बीजेपी को लगता है कि राज्य की सत्ता पर कई साल से कायम बीजद के नवीन पटनायक को बेदखल करने का अच्छा मौका है. इसलिए पार्टी बीजद के नेताओं का हाथ थामने में कोई हिचक नहीं दिखा रही है. बीजेपी बैजयंत पांडा सहित बीजद के कई सासंदों को पार्टी की सदस्यता दिला चुकी है. इनमें भद्रक से बीजद के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सेठी, नबरंगपुर के सांसद बलभद्र माझी, कंधमाल की सांसद प्रत्युषा राजेश्वरी सिंह और कालाहांडी के सांसद अरका केशरी देव शामिल हैं.

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