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पश्चिमी यूपी में दांव पुराने चेहरों पर, जातीय समीकरण में कहां तक फिट बीजेपी के सूरमा?

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 28 प्रत्याशी के नामों की घोषणा बीजेपी ने कर दी है. बीजेपी एक बार फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश में सियासी जंग फतह करने के लिए पुराने चेहरों के सहारे मैदान में उतरी है. बीजेपी ने जाट, राजपूत और वैश्य समुदाय के लोगों को उतार कर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है.

संजीव बालियान संजीव बालियान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 22 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 10:30 AM IST

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने 184 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान गुरुवार को कर दिया. इनमें से उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 28 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा हो गईं. बीजेपी एक बार फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासी जंग फतह के लिए पुराने चेहरों के सहारे मैदान में उतरी है. बीजेपी ने जाट, राजपूत और वैश्य समुदाय के लोगों को उतार कर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. जाट के सामने जाट, वैश्य के सामने वैश्य और दलित के सामने दलित का दांव खेला है.

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पश्चिम यूपी में बीजेपी के चेहरे

पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर सीट पर बीजेपी ने संजीव बालियान, बागपत से सत्यपाल सिंह, बिजनौर से कुंवर भारतेन्द्र, सहारनपुर से राघव लखनपाल, मुरादाबाद से कुंवर सर्वेश कुमार, अमरोहा से कंवर सिंह तंवर, मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल, गाजियाबाद से वीके सिंह, गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) डॉ. महेश शर्मा, अलीगढ़ से सतीश कुमार गौतम, मथुरा से हेमा मालिनी, एटा से राजवीर सिंह, आंवला से धर्मेंद्र कुमार कश्यप, बरेली से संतोष गंगवार और लखीमपुर खीरी से अजय कुमार मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है.

जाट बनाम जाट के बीच लड़ाई

यूपी में जाट लैंड माने जाने वाली मुजफ्फरनगर और बागपत सीट पर बीजेपी का सीधा मुकाबला आरएलडी से है. बागपत सीट पर बीजेपी ने सत्यपाल सिंह को उतारा है तो आरएलडी से चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी मैदान में है. ऐसे ही मुजफ्फरनगर सीट से बीजेपी ने संजीव बालियान के सामने आरएलडी के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह सियासी रण में उतरे हैं. इस तरह से इन सीटों पर जाट बनाम जाट के बीच लड़ाई का मैदान बना है.

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जबकि पिछले चुनाव में बागपत से सत्यपाल सिंह ने मोदी लहर के सहारे बागपत सीट पर जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह को मात देकर सांसद बनें और फिर मंत्री. वहीं, मुजफ्फरनगर दंगे के चलते ध्रुवीकरण का फायदा संजीव बालियान को मिला था. इस बार दोनों नेताओं की राह आसान नहीं है, क्योंकि आरएलडी को जहां सपा-बसपा गठबंधन का सियासी फायदा मिल सकता है. वहीं, कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया है.

वैश्य बनाम वैश्य की लड़ाई

मेरठ सीट से बीजेपी ने अपने दो बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल पर एक बार फिर दांव लगाया है. जबकि कांग्रेस ने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र अग्रवाल को उतारा है. इस तरह वैश्य बनाम वैश्य की लड़ाई बनती दिख रही है. हालांकि सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन ने हाजी याकूब कुरैशी पर दांव लगाया है.

राजपूतों पर जताया बड़ा भरोसा

पश्चिम यूपी में जाट ही नहीं बल्कि राजपूत समुदाय भी किंगमेकर की भूमिका में है. यही वजह है कि पश्चिम यूपी में बीजेपी ने जाट के साथ-साथ राजपूतों को भी साधने की कवायद की है. गाजियाबाद से वीके सिंह, बिजनौर से कुंवर भारतेन्दु, मुरादाबाद से कुंवर सर्वेश सिंह और अलीगढ़ से सतीश कुमार गौतम पर दांव लगाया है. हालांकि सूबे के राजनीतिक समीकरण के लिहाज से मौजूदा दौर में राजपूत मतदाता बीजेपी का प्रमुख वोटबैंक है.

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ओबीसी को साधने की कवायद

पश्चिम यूपी में ओबीसी मतदाताओं में गुर्जर और सैनी समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं. बीजेपी ने गुर्जर समुदाय को साधने के मद्देनजर अमरोहा से कंवर सिंह तंवर पर दांव लगाया है. सैनी और मौर्य मतदाताओं को अपने पाले में जोड़े रखने के लिए संभल सीट से परमेश्वर लाल सैनी और बदायूं से स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को मैदान में उतारा है. ऐसे ही कश्यप मतदाताओं को साधने के लिए आंवला से धर्मेंद्र कश्यप और कुर्मी वोट के लिए एक बार फिर बरेली से संतोष गंगवार पर पार्टी ने भरोसा जताया है. इसके अलावा लोध समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए फिर से एटा सीट से फिर राजवीर सिंह पर दांव खेला है.

 

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