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सपा-बसपा के गठबंधन से BJP चिंतित, नई रणनीति पर कर रही विचार

BJP strategy over SP-BSP alliance प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि यूपी में 2014 के मुकाबले अगर 2019 के चुनाव में पार्टी को ज़्यादा नुकसान हुआ तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इसलिए बीजेपी साम, दाम, दंड और भेद की नीतियों का प्रयोग करने से भी परहेज नहीं करेगी.

अमित शाह (फाइल फोटो-रॉयटर्स) अमित शाह (फाइल फोटो-रॉयटर्स)
हिमांशु मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 6:42 PM IST

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के चुनाव पूर्व गठबंधन के ऐलान से भारतीय जनता पार्टी को अपना सोशल इंजीनियरिंग का समीकरण बिगड़ता हुआ दिख रहा है. पार्टी पिछले आम चुनावों में यूपी की 80 में से 71 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इनमें से 2 सांसद अपना दल (एस) के थे. हालांकि बाद में हुए लोकसभा उप चुनावों में बीजेपी गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट गंवा बैठी थी, लेकिन इसके बावजूद उसके पास 68 सीटें बची हुई हैं. मगर यूपी में प्रमुख विपक्षी दलों के एक साथ आने से बीजेपी को अपनी राह मुश्किल नजर आ रही है. इसलिए पार्टी नई रणनीति पर विचार कर रही है.

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उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सभासपा) अभी बीजेपी से नाराज चल रही हैं. लिहाजा इस स्थिति को देखते हुए बीजेपी राज्य में अन्य दलों मसलन अजित सिंह की राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), निषाद पार्टी और महान दल के साथ-साथ समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के ऐसे नेताओं से संपर्क साधने में जुटी हुई है जो अपनी पार्टी से नाराज हैं और अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी को जीत दिला सकते हैं.

बीजेपी की रणनीति

गौरतलब है कि अजित सिंह पहले भी 2 बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में रह चुके हैं. इसलिए न अजित सिंह को बीजेपी से और न बीजेपी को उनसे ज्यादा पहरेज है. सपा और बसपा के गठबंधन के बाद अजित सिंह ने चुप्पी साध ली है. अजित सिंह की इस चुप्पी में बीजेपी अपने लिए संभावनाएं तलाश रही है. वहीं महान दल और निषाद पार्टी के नेताओं से कहा गया है कि उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में सीट नहीं मिलेगी, लेकिन उनके पसंद के उम्मीदवारों को पार्टी के एक दो सीटों पर टिकट दी जा सकती है.

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क्यों है नए विकल्प की तलाश?

पिछले दिनों से जिस तरह से अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार और प्रदेश बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है, इसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी नेतृत्व अन्य छोटे दलों से बातचीत की थी. पिछले दिनों कृष्णा पटेल के अपना दल से बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने मुलाक़ात की थी. बीजेपी उत्तर प्रदेश में अलग अलग जातियों के सामाजिक संगठनों के नेताओं से भी संपर्क करेगी. बीजेपी उनसे पार्टी के पक्ष में प्रचार करने की अपील करेगी.

साम, दाम, दंड और भेद की नीति

बीजेपी को लोकसभा चुनावों 2014 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी 42.63 प्रतिशत वोट के 71 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही थी. वहीं बसपा 19.7 प्रतिशत मत हासिल करने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई थी जबकि सपा 22.35 प्रतिशत वोट के साथ पांच सीट जीतने में सफल रही थी. इन धुर विरोधी दलों के एक साथ आने से इनकी ताकत स्वतः बढ़ जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि यूपी में 2014 के मुकाबले अगर 2019 के चुनाव में पार्टी को ज़्यादा नुक़सान हुआ तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इसलिए बीजेपी साम, दाम, दंड और भेद की नीतियों का प्रयोग करने से भी परहेज नहीं करेगी.

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