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कांग्रेस का हाथ या महागठबंधन के साथ, क्या है चंद्रशेखर आजाद की स्ट्रेटजी?

यूपी में महागठबंधन से मुंह की खाने के बाद कांग्रेस, अब बसपा को सबक सिखाने के साथ लोकसभा के नतीजों में अपने लिए बेहतर गुंजाइश चाहिए. कांग्रेस को लग रहा है कि इस काम में चंद्रशेखर उसके काम आ सकते हैं.

मेरठ में चंद्रशेखर आजाद से मिलीं प्रियंका गांधी मेरठ में चंद्रशेखर आजाद से मिलीं प्रियंका गांधी
अनुज कुमार शुक्ला
  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

भीम आर्मी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन के पोस्टर बॉय बन चुके चंद्रशेखर आजाद लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में अचानक महत्वपूर्ण हो गए हैं. दरअसल, बुधवार को कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने चंद्रशेखर से मुलाक़ात की. इसके कुछ ही देर बाद लखनऊ में अखिलेश यादव ने भी मायावती से मीटिंग की.

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दलित नेता से प्रियंका की मुलाक़ात के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि चंद्रशेखर, लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का हाथ थामने जा रहे हैं. उन्हें पार्टी की ओर से लोकसभा का उम्मीदवार भी बनाया जा सकता है. या दलित नेता के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है. हालांकि दोनों नेताओं की मीटिंग महत्वपूर्ण है. लेकिन ये बिल्कुल साफ़ है कि चंद्रशेखर, लोकसभा का चुनाव तो लड़ना चाहते हैं, पर "कांग्रेसी" बनकर नहीं. भीम आर्मी के संस्थापक को लेकर कांग्रेस का भी रुख कुछ ऐसा ही है.

प्रियंका से जुड़े करीबी सूत्र ने बताया भी, "हम न तो चंद्रशेखर को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहते हैं और न ही उन्हें अपने टिकट पर कहीं से चुनाव लड़ाना चाहते हैं." हालांकि वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले चंद्रशेखर की मांग है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उन्हें समर्थन दे. कांग्रेस, दलित नेता की मांग पर राजी भी है. पर उसकी अपनी भी कुछ शर्तें हैं. हालांकि इस सहयोग के बदले कांग्रेस, दलित नेता का इस्तेमाल अपने चुनावी कैम्पेन में "मन मुताबिक़" करना चाहती है. कांग्रेस की यही शर्त चंद्रशेखर और कांग्रेस के बीच किसी राजनीतिक समझौते की अड़चन बन रही है.

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समझौते में अड़चन क्यों ?

दरअसल, चंद्रशेखर सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के महागठबंधन से भी लोकसभा चुनाव में समर्थन चाहते हैं. इसके बदले वो अपने मुताबिक़ बीजेपी के खिलाफ लड़ रही पार्टियों को चुनाव के दौरान मदद करेंगे. दिक्कत यह है कि यूपी में महागठबंधन से मुंह की खाने के बाद कांग्रेस, अब बसपा को सबक सिखाने के साथ लोकसभा के नतीजों में अपने लिए बेहतर गुंजाइश चाहिए. कांग्रेस को लग रहा है कि इस काम में चंद्रशेखर उसके काम आ सकते हैं.

समझौता मुकाम तक नहीं पहुंच पाया है. संभव है कि पंद्रह मार्च के बाद दिल्ली में भीम आर्मी की रैली के बाद कोई नतीजा निकले. वैसे समझौते के लिए कांग्रेस के अंदर चंद्रशेखर के भरोसेमंद दिग्गज नेता काम कर रहे हैं.

राहुल से दो कदम आगे निकलीं प्रियंका

सहारनपुर आंदोलन के बाद चंद्रशेखर दबंग दलित नेता के तौर पर उभरे हैं. तब राहुल गांधी, चंद्रशेखर से मुलाक़ात करना चाहते थे. लेकिन मायावती की वजह से उन्होंने इसे टाल दिया. कांग्रेस को यह उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन हो सकता है. चूंकि चंद्रशेखर को लेकर मायावती उस वक्त काफी संकुचित थीं, इस वजह से कांग्रेस ने कोई जोखिम नहीं उठाया. लेकिन जब उत्तर प्रदेश में बसपा या सपा से कांग्रेस की बात नहीं बनी तो, प्रियंका ने चंद्रशेखर से मुलाक़ात की है. इस बहाने पार्टी बसपा को सबक सिखाना चाहती है. मुलाक़ात में इमरान मसूद का बहुत बड़ा रोल है. माना जाता है कि चंद्रशेखर के आंदोलन के पीछे मसूद बहुत मजबूती से खड़े थे.

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जिग्नेश मेवाणी की तरह चंद्रशेखर की मदद चाहती है कांग्रेस

चंद्रशेखर को कांग्रेस में शामिल कराने के लिए पार्टी का थिंक टैंक तैयार नहीं है. पार्टी को इस बात का डर है कि प्रदेश में सवर्णों के खिलाफ आक्रामक राजनीति करने वाले चंद्रशेखर को शामिल कराने से नुकसान हो सकता है. थिंक टैंक का मानना है कि युवा दलित नेता का इस्तेमाल वैसे ही किया जाए जैसे हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवाणी का किया गया था. इससे पार्टी दलितों वोटों को आकर्षित कर सकती है. जबकि सवर्ण वोटों के लिहाज से विपक्ष के पास चंदशेखर के बहाने सीधे कांग्रेस पर हमला करने का मौका कम होगा.

जो भी हो एक बात तय है कि चंद्रशेखर के मैदान में आने के बाद यूपी में बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे समूचे विपक्ष की रणनीति में बहुत बड़ा बदलाव हो सकता है. एक हफ्ते में साफ़ हो जाएगा कि राजनीति का यह ऊंट किस करवट बैठेगा.

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