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यूपी में गठबंधन से बाहर रहकर भी क्या सपा-बसपा के साथ है कांग्रेस?

पश्चिम यूपी की सबसे लोकप्रिय सीट मेरठ है, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकसभा चुनाव प्रचार का आगाज किया है. यहां से सपा-बसपा गठबंधन के खाते से बसपा के टिकट पर हाजी याकूब कुरैशी मैदान हैं, और उनका सीधा मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी व सिटिंग सांसद राजेंद्र अग्रवाल से है. कांग्रेस ने भी मेरठ सीट से अग्रवाल समाज का प्रत्याशी उतारा है और हरेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
नीलांशु शुक्ला
  • लखनऊ,
  • 30 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 10:27 AM IST

उत्तर प्रदेश में भले ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को अपने गठबंधन से आउट कर दिया हो, लेकिन कांग्रेस ने अपने कुछ प्रत्याशियों का चुनाव ऐसे किया, जो गठबंधन को मदद पहुंचाने की ओर इशारा कर रहा है. खासकर, पश्चिम यूपी में ऐसी तस्वीर उभरकर आ रही है, जहां कांग्रेस ने ऐसे प्रत्याशी उतारे हैं जो सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी के मतों का बंटवारा करने वाले माने जा रहे हैं. इन सीटों में मेरठ, कैराना, रामपुर, मथुरा और गाजियाबाद शामिल हैं, जहां से कांग्रेस ने बीजेपी प्रत्याशी के वर्ग या समुदाय का ही प्रत्याशी उतारकर जातिगत समीकरण साधने के प्रयास किए हैं.

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पश्चिम यूपी की सबसे लोकप्रिय सीट मेरठ है, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकसभा चुनाव प्रचार का आगाज किया है. यहां से सपा-बसपा गठबंधन के खाते से बसपा के टिकट पर हाजी याकूब कुरैशी मैदान हैं, और उनका सीधा मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी व सिटिंग सांसद राजेंद्र अग्रवाल से है. कांग्रेस ने भी मेरठ सीट से अग्रवाल समाज का प्रत्याशी उतारा है और हरेंद्र अग्रवाल को टिकट दिया है.

जाट बाहुल्य कैराना सीट पर भी कांग्रेस ने ऐसा ही प्रत्याशी उतारा जो बीजेपी के लिए नुकसानदायक बन सकता है, जिसका फायदा सिटिंग सांसद और गठबंधन उम्मीदवार तबस्सुम हसन को मिल सकता है. कांग्रेस ने इस सीट से हरेंद्र मलिक को टिकट दिया है, जो एक जाट नेता हैं. हालांकि, पिछले साल यहां हुए उपचुनाव में तबस्सुम हसन जाटों के समर्थन वाली आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और उसमें उन्हें जाट समुदाय का वोट भी मिला था.

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सिर्फ बसपा या सपा उम्मीदवार ही नहीं, कांग्रेस के प्रत्याशी गठबंधन के तीसरे घटक आरएलडी को भी लाभ पहुंचाते दिख रहे हैं. सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन में मथुरा सीट आरएलडी के खाते में गई है और यहां से कांग्रेस के टिकट पर अपर कास्ट उम्मीदवार महेश पाठक चुनाव लड़ रहे हैं. माना जा रहा है कि महेश पाठक इस सीट पर सामान्य वर्ग के मतों में सेंधमारी कर सकते हैं, जिससे बीजेपी प्रत्याशी हेमा मालिनी को नुकसान पहुंच सकता है. दूसरी तरफ आरएलडी प्रत्याशी कुंवर नागेंद्र सिंह को जाट, मुस्लिम और जाटव मतों का समर्थन मिलने की उम्मीद है.

रामपुर में भी सपा की मदद!

रामपुर सीट से इस बार सपा ने अपने वरिष्ठ नेता आजम खान को उतारा है. आजम खान के सामने बीजेपी के टिकट पर अभिनेत्री व पूर्व सांसद जया प्रदा हैं. दोनों नेताओं की अदावत काफी पुरानी है, ऐसे में यहां कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. कांग्रेस ने रामपुर लोकसभा सीट से संजय कपूर को उतारा है. जानकारों का मानना है कि अगर इस सीट से कांग्रेस किसी मुस्लिम चेहरे को लेकर आती तो इसका नुकसान आजम खान को हो सकता है, लेकिन पार्टी ने संजय कपूर के रूप में अपना प्रत्याशी उतारकर आजम खान की लड़ाई कुछ आसान जरूर कर दिया है. गाजियाबाद सीट पर भी कांग्रेस ने बीजेपी के वीके सिंह के खिलाफ डॉली शर्मा के रूप में अपर कास्ट उम्मीदवार उतारा है.

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पश्चिम और पूर्वी यूपी के कांग्रेस प्रभारी ज्योतिरादित्य व प्रियंका गांधी

कांग्रेस प्रत्याशी भले ही जातिगत समीकरण में बीजेपी के खिलाफ नजर आ रहे हों, लेकिन कांग्रेस का कहना है कि वो जीत के हिसाब से अपने कैंडिडेट उतार रही है. कांग्रेस प्रवक्ता जीशान हैदर का कहना है कि उनकी पार्टी राज्य में छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ रही है और विनिंग फैक्टर के आधार पर प्रत्याशियों का चुनाव किया गया है. मुरादाबाद, बिजनौर और सहारनपुर सीट पर देखा जाए तो कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और इमरान मसूद के रूप में मजबूत प्रत्याशी उतारे हैं. हालांकि, एक सच ये भी है कि पश्चिमी यूपी में कांग्रेस ने अब तक अपना चुनाव प्रचार भी शुरू नहीं किया है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी या प्रियंका गांधी किसी भी नेता ने अब तक पश्चिम यूपी में प्रचार नहीं किया है और न ही उनका कोई कार्यक्रम अभी नजर आ रहा है. दूसरी तरफ पश्चिम यूपी के कांग्रेस प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता भी कम ही देखने को मिल रही है. ये स्थिति तब है कि जबकि पश्चिम यूपी की इन महत्वपूर्ण सीटों पर पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान होना है. जबकि दूसरी तरफ पूर्व यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी जोर-शोर से प्रचार में जुटी हैं, जिससे ये माना जा रहा है कि कांग्रेस जो कि पश्चिम यूपी में पहले से ही कमजोर है वहां गठबंधन के खिलाफ फ्रंट फुट पर नहीं लड़ना चाहती है, जबकि पूर्वी यूपी में वह अपना दम दिखाने के मूड में है. ऐसे में बीजेपी के खिलाफ जिस बड़ी लड़ाई को कांग्रेस पूरे देश में लेकर चली थी, उससे भले ही कांग्रेस को यूपी में अलग कर दिया गया हो, लेकिन पार्टी अघोषित रूप से अपने एजेंडे पर चलती दिखाई दे रही है.

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